माघ पौष को शीतऋतु का माह कहा जाता है। हालांकि इन दिनों जाड़ा नहीं पड़ता है। ऋतुओं के मिजाज को देख कर तो कहना मुश्किल है कि ये सर्द दिन हैं, लेकिन वसंत पंचमी अपने देश में मनाया जाने वाला एक त्योहार है। पता नहीं कब से इस दिन विद्या बुद्धि की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। माघ पौष को शीत ऋतु का माह कहते हैं। पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बांटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम है। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने और जौ तथा और गेहूं की बालियां खिलने से लेकर, आमों पर बौर आ जाता है और रंग-बिरंगी तितलियां मंडराने लगतीं हैं। पूर्णिमा माघ के पांचवें दिन विष्णु और कामदेव की पूजा की जाती थी। विद्या बुद्धि और ज्ञान की देवी सरस्वती की वंदना और आविर्भाव का उत्सव ही वसंत उत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। पुराण शास्त्रों और संस्कृत साहित्य में भी अलग-अलग चित्रण मिलता है।
उपनिषदों के अनुसार सृष्टि की शुरुआत में शिव की आज्ञा से जीवों, खासतौर पर मनुष्य की रचना की। कहना नहीं होगा कि उसके रचयिता ब्रह्मा ही थे लेकिन वे अपनी इस रचना में कमी अनुभव कर रहे थे। उनके अवसाद से चारों ओर मौन छाया था। ब्रह्मा ने इस दशा से उबरने के लिए अपने कमंडल से जल लेकर संकल्प की तरह विष्णु पर छिड़कते हुए स्तुति शुरू कर दी। ब्रह्मा की स्तुति से विष्णु वहां प्रकट हुए। शास्त्र कहते हैं कि विष्णु ने दुर्गा का आह्वान किया। विष्णु की बुलाई भगवती दुर्गा वहां तुरंत प्रकट हुर्इं और आसन्न संकट दूर किया। फिर आदिशक्ति के शरीर से एक तेज उत्पन्न हुआ जो चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था, उनके हाथ में वीणा और दूसरा हाथ वर देती हुई मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक और माला थी। आदिशक्ति श्री दुर्गा की उपस्थिति में ही सरस्वती के शरीर से तेज प्रकट हुआ और देवी की वीणा सुनकर सागर उफनने लगा और पवन आंधी तूफान चलाने लगे। तब सभी ने शब्द और रस का संचार कर देने वाली उन देवी को वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती कहा। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। वसंत पंचमी इनके प्रकटोत्सव के रूप में भी मनाते हैं।
ऋग्वेद में कहा है- प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। -अर्थात सरस्वती परम चेतना हैं। वे बुद्धि, प्रज्ञा और मन की वृत्तियों की संरक्षक हैं। पुराणों के अनुसार कृष्ण ने किसी प्रसंग में सरस्वती को वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी। कहते है कि तभी से वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी। वसंत पर्व जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है। जैसे लोग कई लोग इस दिन सरस्वती की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, विलानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारंभ अपने उपकरणों की पूजा और सरस्वती की वंदना से करते हैं।
भारत ही एक ऐसा देश है जहां छह ऋतुएं अपनी छटा बिखेरती हैं। प्रत्येक ऋतु दो मास की होती है। चैत और बैसाख़ में बसंत ऋतु अपनी शोभा का परिचय देती है। इस ऋतु को ऋतुराज की संज्ञा दी गई है। धरती का सौंदर्य इस प्राकृतिक आनंद के स्रोत में बढ़ जाता है। रंगों का त्योहार होली वसंत ऋतु की शोभा को दुगना कर देता है। हमारा जीवन चारों ओर के मोहक वातावरण को देखकर मुस्करा उठता है। ज्येष्ठ और आषाण ग्रीष्म ऋतु के मास हैं। इसमें सर्ू्य उत्तरायण की ओर बढ़ता है। ग्रीष्म ऋतु प्राणी मात्र के लिये कष्टकारी अवश्य है पर तप के बिना सुख-सुविधा को प्राप्त नहीं किया जा सकता। यदि गर्मी न पड़े तो हमें पका हुआ अन्न भी प्राप्त न हो।
श्रावण और भाद्र पद वर्षा ऋतु के मास हैं। वर्षा नया जीवन लेकर आती है। मोर के पांव में नृत्य बंध जाता है। तीज और रक्षाबंधन से त्योहार भी इस ऋतु में आते हैं। अश्विन और कार्तिक के मास शरद ऋतु के मास हैं। शरद ऋतु प्रभाव की दृष्टि से बसंत ऋतु का ही दूसरा रूप है। वातावरण में स्वच्छता का प्रसार दिखा़ई पड़ता है। दशहरा और दीपावली के त्योहार इसी ऋतु में आते हैं। मार्गर्शीर्ष और पौष हेमंत ऋतु के मास हैं। इस ऋतु में शरीर प्राय स्वस्थ रहता है। पाचन शक्ति बढ़ जाती है। माघ और फाल्गुन शिशिर अर्थात पतझड़ के मास हैं। इसका आरंभ मकर संक्राति से होता है। इस ऋतु में प्रकृति पर बुढ़ापा छा जाता है। वृक्षों के पत्ते झड़ने लगते हैं। चारों ओर कुहरा छाया रहता है। भारत को भूलोक का गौरव तथा प्रकृति का पुण्य स्थल कहा गया है। इस प्रकार ये ऋतुएं जीवन रुपी फलक के भिन्न- भिन्न दृश्य हैं, जो जीवन में रोचकता, सरसता और पूर्णता लाती हैं।