Other Articles

सम्राट अशोक महान और महाकाल की कथा

0views

 

सम्राट अशोक महान (मौर्य वंश)

कथा:
दीप्ति-युग का मौर्य सम्राट अशोक, कलिंगयुद्ध के पश्चात् अहिंसा मार्ग अवलम्बन के लिए विख्यात हुआ। परन्तु कम ही लोग जानते हैं कि दिल्ली-उत्तराखण्ड मार्ग से निकल कर जब अशोक अमलेश्वर की गुफा में पहुँचा, तब उसने स्वयं को महाकाल के चरणों में अर्पित कर दिया।

उसने प्रत्येक पूर्णिमा को वहाँ ‘अमलेश्वर-स्नान’ किया।
सम्राट ने आदेश दिया कि मौर्य साम्राज्य में सभी जजमानों को वार्षिक पिंडदान-पुण्यश्लोक अर्पित करे।
विजय-पर्वों पर राजा अशोक महाकाल की आरती तथा नंदी-वन्दना अनिवार्य करवा कर स्वकीयं राज्य को पितृदोष-मुक्ति का आदर्श बनाया।

श्लोकः

शार्दूलविक्रीटछन्दः (१९ मात्राः)
कलिंगशान्तौ महायुद्धे धृतमनसो विजयं जितः स्मृतः ।
महाकाले भक्ति नित्या राम्यं प्राप्य मोक्षमार्गं समाश्रितः ॥

सम्राट समुद्रगुप्त (गुप्त वंश)

कथा:
“भारत का नपोलियन” कहलाए समुद्रगुप्त ने उत्तर से दक्षिण तक विजय रचते हुए अमलेश्वर तीर्थ पर विशेष यज्ञ-अनुष्ठान करवाए।

ALSO READ  तपस्वी विश्वामित्र और अमलेश्वर की गाथा

हर विजय जुलूस में ‘महाकाल आरती-घण्टी’ पर हाथ जोड़ कर वह खड़ा रहता।
सम्राट ने अतीत के पापों का प्रायश्चित करते हुए वहाँ १०८ पीपल वृक्षों का रोपण कराया।
गुप्त-काल की मुद्राओं पर अमलेश्वर ज्योतिर्पिंड अंकित करने का काम भी समुद्रगुप्त ने आरंभ किया।

श्लोकः

उत्पत्तिविभंगछन्दः (१८ मात्राः)
गार्ग्यशिरो मुखिणि स्नातो गुप्तवंशज्योतिर्वद्धनः ।
महाकाले तिलकं धृत्वा सर्वपापान् शमयामास मम ॥

वीर पृथ्वीराज चौहान (चौहान वंश)

कथा:
चौहान-शक्ति के शिखर पंहुचे पृथ्वीराज ने मालवा से होकर अमलेश्वर तीर्थ मार्ग निकाला।

युद्ध-पूर्व रात्री वह छतरियों के साथ महाकाल मण्डप में उपवास करता।
रणभूमि में ‘जय जय महाकाल’ का उद्घोष कर अपनी सेना का मनोबल बढ़ाता।
हर युद्ध के बाद स्तुतिमालाएँ उसी मंदिर में निर्वाचित भजन-गायकों को सुनवाई।

ALSO READ  Aaj Ka Rashifal 21 April 2023: आज इन राशियों को व्यावसायिक मामलों में मिलेगी सफलता

श्लोकः

विपरीतछन्दः (१९ मात्राः)*
रणनिष्ठो दण्डनिषेधो यशोनाथशाखाधारिणः ।
महाकाले नमस्कृत्वा विजयकैलासं लभते ध्रुवम् ॥

राजा भोज (प्रतिहार वंश)

कथा:
वीर भोज, जो विद्वान् रचनाकार भी थे, ने अमलेश्वर तीर्थ पर एक कीर्तिकर ग्रंथ “महाकाल पुराण” की रचना प्रारंभ की।

भोज का हर प्रातः स्मरण होता—“महाकाले तपः करो, राज्य करे फलदायी।”
उन्होंने वहाँ स्वर्ण-नैवेद्य अर्पण एवं चार दिवसीय महोत्सव कर सामाजिक समरसता बढ़ाई।
कलाप्रेमी भोज ने ज्योतिर्लिंग के इतिहास और अर्थों पर शिलालेख भी अंकित करवाएं।

श्लोकः

त्रिश्चन्द्रछन्दः (२० मात्राः)
भोजकृतः पुराणरचना महाकालाभक्तिसुनिर्मितम् ।
पठन्ति सर्वजनाः यत्र पुण्यं तस्य विहितं भवेत् ॥

सम्राट सिद्धार्थागुप्त (गुप्त वंश)

कथा:
सिंहासनारोहण से पूर्व सिद्धार्थागुप्त ने अमलेश्वर तीर्थ की यात्रा की—वह वहाँ दिव्यप्रकाश देखें।

ALSO READ  अनन्तशक्तिस्तवः

उन्होंने १२ ज्योतिर्लिंगों की प्रतिकृति बनाकर अमलेश्वर में संयोजित की।
हर अमावस्या को ‘नाग श्राद्ध’ एवं ‘नारायण बलि’ में वे स्वयम् एकाग्रचित्त होते।
ब्राह्मणों को जीवनपर्यन्त के लिए भोजन एवं धान्य-वितरण का उद्घोषित दान किया।

श्लोकः

विषमत्रयछन्दः (१८ मात्राः)

सिद्धार्थ-विजयोत्सवे च निर्विकल्प-मार्गदर्शिनि ।
महाकाले समर्पितं सर्वलोकहितं भवति मम ॥

सम्राट कृष्णदेवराय (विजयनगर साम्राज्य)

कथा:
दक्षिण के ध्रुव सम्राट कृष्णदेवराय ने अमलेश्वर की महिमा जान कर ताम्रपत्र-यात्रा निकाली।

ताम्र-पट्टों पर ‘श्री महाकालामलेश्वराष्टकम्’ की रचना कर दीक्षार्थियों को दी।
विजयपर्वों पर अमलेश्वर में झांकी निकालकर “हर हर महादेव” का उद्घोष कराया।
दक्षिणी मन्दिरों में अमलेश्वर शैली के शिलालेख खुदवाए।

श्लोकः

शूलिनि छन्दः (१७ मात्राः)
देवताभगवन्नाम्ना करुणाम्बुधे संस्थितः ।
कृष्णधर ताम्रपत्त्रं समर्प्य महाकाले नमः ॥