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पर्व-त्योहारों की तारीखों में मतांतर क्यों?

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भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की गरिमा के प्रतीक पर्व-त्यौहारों के संबंध में कई बार मतांतर हो जाने से पर्व-त्यौहारों की तिथियों एवं तारीखों के बारे में भ्रांतियां उत्पन्न हो जाती हैं। फलस्वरूप, धर्म परायण लोगों के मन में कई प्रकार की शंकाएं पैदा होने लगती हैं, जिससे उनकी श्रद्धा एवं आस्था को भी ठेस पहुंचती है। अधिसंख्य लोगों को पर्व-त्योहारों एवं छुट्टियां संबंधी जानकारी अलग-अलग प्रांतों से छपने वाले जंत्री/पंचांगों, समाचारपत्र, पत्रिका, कैलेंडर, डायरियां, तिथिपत्र, रेडियो, टेलीविजन आदि संचार साधनों द्वारा प्राप्त होती है। केंद्रीय एवं प्रांतीय सरकारों द्वारा उद्घोषित पर्व-त्योहारों एवं सरकारी छुट्टियों की घोषणा राष्ट्रीय कैलेंडर समिति द्वारा, प्रस्तावित सूची के अनुसार, की जाती है। इनमें राष्ट्रीय स्तर के पर्व, जैसे 15 अगस्त, 26 जनवरी, 2 अक्तूबर आदि छुट्टियों की तारीखों के संबंध में तो कोई मतभेद नहीं होता है, परंतु हिंदुओं के धार्मिक पर्व-त्योहारों की तारीखों के संबंध में कई बार मतांतर की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। पर्व-त्योहारों की तारीखों में भिन्नता के कुछ कारण उल्लेखनीय हैं: 1. देश में छपने वाली विभिन्न जंत्री/पंचांगों की तिथ्यादि पंचांग गणित में अंतर। 2. पर्व-त्योहारों के संबंध में कतिपय कैलेंडरों, पत्रिकाओं आदि में छपने वाली अपुष्ट जानकारी। 3. प्राचीन आचार्यों के वचनों में एकरूपता का अभाव। 4. विभिन्न प्रांतों के सूर्योदय, चंद्रोदय, अस्तादि में अंतर। 5. कुछ धार्मिक संप्रदायों में मतांतर होना। 6. सरकारी तंत्र का प्रभाव। प्रस्तुत लेख में मैं प्रथम कारण का ही विशेष रूप से विवेचन करना चाहूंगा। अन्य 5 कारण तो प्रत्यक्षतः तथ्याधारित हैं। तिथ्यादि पंचांग गणित में अंतर: देश में छपने वाली विभिन्न प्रकार के पंचांग/जंत्रियों, कैलेंडरो/डायरियों इत्यादि में तिथ्यादि के मान में कई बार भारी अंतर पाया जाता है। विशेष कर अप्रामाणिक एवं अस्तरीय पंचांग गणित को आधार मान कर छपने वाली जंत्रियों, पंचांगों, डायरियों अथवा कैलंडरों में तिथि/नक्षत्रों एवं पर्व-त्योहारों संबंधी तिथियों में भारी विसंगतियां एवं अशुद्धियां पायी जाती हंै। उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारतवर्ष में आजकल प्रतिवर्ष लगभग 150 पंचांग/जंत्रियां छप रहे हैं। तिथि-कैलेंडरों की संख्या तो इससे भी अधिक ही होगी। इनमें अधिकांश आधुनिक पंचांगकर्ता चित्रा पक्षीय दृक् गणिताधारित निरयण पंचांग की गणना अनुसार पंचांग गणित करते हैं। यह गणित, शास्त्र अनुमोदित होने के साथ-साथ, प्रत्यक्षतः दृश्य होने से विज्ञान सम्मत भी है। आधुनिक सूक्ष्म संस्कारों पर आधारित कंप्यूटर प्रक्रिया द्वारा तैयार किये जाने वाले पंचांगों के तिथि, नक्षत्र, योग, ग्रह का राशि संचार,, भोगांश, सूर्य-चंद्रोदयास्तादि तथा कंप्यूटरीकृत विस्तृत जन्मपत्री की रचना भी भारतीय दृग्गणित पद्धति द्वारा ही की जाती है। यह अत्यंत खेद का विषय है कि देश के कुछ पंचांगकार प्राचीनता के मोहवश अवैज्ञानिक एवं अशुद्ध पंचांग गणित का आश्रय ले रहे हैं। उनके इस कृत्य से पर्व-त्योहारों की तारीखों में प्रतिवर्ष कहीं न कहीं भेद उत्पन्न हो जाता है, जिससे सामान्य लोगों में भ्रांतियां पैदा होती हैं। ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य: आज से लगभग 90 वर्ष, पूर्व भारतवर्ष में अधिसंख्य पंचांगकर्ता पौराणिक सिद्धांत ग्रंथों में प्रतिपादित सूत्रों के अनुसार तिथ्यादि, पंचांग गणित का कष्ट साध्य कार्य करते थे। विभिन्न स्थानीय पंचांगों के तिथ्यादि मान में भी अंतर रहते थे। परंतु 19वीं शताब्दी में नाभिकीय विज्ञान एवं गणितीय क्षेत्रों में, उत्तरोतर उन्नति के साथ-साथ, सूर्यादि ग्रहों की गत्यादि के संबंध में भी अनेक संशोधनात्मक प्रयास हुए हैं। उदाहरणस्वरूप सूर्य सिद्धांत द्वारा प्रतिपादित वर्षमान तथा आधुनिक वेधसिद्ध अनुसंधान द्वारा प्रमाणित वर्षमान में 8 पलों एवं 37 विपलों, अर्थात् लगभग 3) मिनटों का अंतर प्रतिवर्ष रहता है, जिस कारण प्राचीन सूर्य सिद्धांतीय वर्ष प्रवेश सारिणी तथा आधुनिक वेधसिद्ध सूक्ष्म सारिणी द्वारा वर्ष लग्नों में अंतर आ जाना स्वाभाविक ही है। आधुनिक कंप्यूटरों द्वारा निर्मित वर्ष कुंडलियां भी नवीन वेधसिद्ध संशोधित सिद्धांत की परिपुष्टि करती हैं। मानवकृत ज्ञान प्रशाखा के प्रत्येक क्षेत्र में, युग एवं परिस्थितियों के अनुसार, सुधार एवं यथोचित संस्कारों की संभावना रहती है। गणित ज्योतिष के क्षेत्र में भी समय के भेद एवं काल गति के भेद से ग्रहों के गणित में थोड़ा-थोड़ा अंतर पड़ता जाता है। इस संबंध में भारतीय गणिताचार्य एवं विद्वानों ने भी पंचांग गणित की प्रक्रिया में वेधसिद्ध दृक्तुल्य संशोधन कर के भारतीय पंचांग पद्धति को वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिया है

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