उपाय लेख

जानिए,वैवाहिक विलम्भ के उपाय…

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वैवाहिक विलम्भ

1. यदि सूर्य, चन्द्रमा, सप्तमेश और कारक शुक्र, शनि के प्रभाव में हों, तो विवाह में विलम्ब होता है। यदि सूर्य, चन्द्रमा और कारक शुक्र, शनि के नवांश में स्थित हों, तो भी विवाह में विलम्ब होता है। विवाह के विलम्ब में वक्री ग्रहों की भी महत्वपूर्ण भूमिका होती है। द्वितीय अथवा सप्तम भाव में वक्री ग्रह स्थित हों अथवा वक्री ग्रह द्वितीय अथवा सप्तम भाव पर दृष्टि निक्षेप करते हों या फिर द्वितीयेश अथवा सप्तमेश के साथ वक्री ग्रह संयुक्त हो या उन पर दृष्टि निक्षेप करते हों, तो विवाह में अप्रत्याशित विलम्ब होता है।

शुक्र और चन्द्रमा की युति भी शीघ्र विवाह हेतु बाधक सिद्ध होती है। यदि शुक्र कर्क अथवा सिंह राशिगत हो और सूर्य व चन्द्रमा उसके दोनो ओर स्थित हो अर्थात् शुक्र के साथ सूर्य और चन्द्रमा स्थित हो अथवा सप्तम भाव मे शुक्र-सूर्य एवं चन्द्रमा स्थित हो, शुक्र चन्द्रमा अथवा शुक्र-सूर्य सप्तम भावगत हो, तो भी विवाह में अनापेक्षित विलम्ब होता है। यदि शुक्र सूर्य की राशि सिंह में स्थित हो, तो विवाह में विसंगतियाॅ उत्पन्न होती है। हमारी कृति ’ए कम्पेंडीयम आॅफ मैरिज’ भाग-1 एवं 2 में शुक्र के साथ सूर्य और चन्द्रमा के सम्बन्ध का विवाह के सम्बन्ध में विस्तृत विवेचन और विश्लेषण किया गया है।

2. सप्तम स्थान में, मंगल और शनि की परस्पर दृष्टि अथवा युति विवाह हेतु अनेक बाधाएं  उत्पन्न करती है। विवाह से सम्बन्धित ग्रहों की स्थिर राशि या नवांश में स्थित भी विवाह में विलम्भ कराने वाली होती है। अशुभ ग्रहों की अशुभता का विचार, वैवाहिक विलम्ब हेतु उचित रूप् से किया जाना चाहिए, ताकि सम्भावित दशा और दशाभुक्ति का विचार विवाह हेतु किया जा सके।