16 अगस्त से शुरू होगी वैष्णो देवी की यात्रा, यहाँ जानिए माँ वैष्णो देवी से जुड़ी सर्वाधिक प्रचलित कथा के बारे में
16 अगस्त, रविवार से वैष्णो देवी यात्रा शुरु हो रही है। कटरा में स्थित वैष्णो देवी मंदिर जाने वाले भक्तों का मानना है कि माता रानी हर मुश्किल वक्त में उनका सहारा बनती हैं और उनकी सारी पीड़ायें दूर करती हैं।
जम्मू-कश्मीर के वैष्णो देवी यात्रा की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है, लेकिन कोरोना के बढ़ते प्रकोप की वजह से सरकार ने 18 मार्च के बाद से ही यात्रा पर रोक लगा दी थी। लेकिन अब दोबारा जम्मू कश्मीर प्रशासन ने सीमित संख्या में श्रद्धालुओं को माता के दर्शन की इजाज़त दे दी है, साथ ही यात्रा से जुड़े कुछ दिशानिर्देश जारी किये हैं। चलिए जानते हैं इन दिशानिर्देशों और माँ वैष्णो देवी से जुड़ी सर्वाधिक प्रचलित कथा के बारे में-
यात्रा के संबंध में सरकार के दिशा निर्देश
इस साल होने वाली वैष्णो देवी की यात्रा के संबंध में सरकार ने कुछ दिशानिर्देश जारी किये हैं, जिसके अनुसार 10 साल से कम उम्र के बच्चे, 60 साल के अधिक उम्र के व्यक्ति, गर्भवती महिलाएं और किसी बीमारी से जूझ रहे व्यक्ति यात्रा नहीं कर सकेंगे। साथ ही यात्रियों को भी यात्रा और दर्शन के दौरान मास्क पहनना अनिवार्य है।
माता के भवन मार्ग पर रात के समय यात्रा बंद नहीं होगी और ना ही भवन पर श्रद्धालु रात में ठहर सकेंगे। माता के भवन में होने वाली सुबह और शाम की आरती में भी भक्तों को शामिल होने की इजाज़त नहीं दी जाएगी। माता के दर्शन एक दिन में केवल 5000 लोग ही कर सकेंगे।
मां वैष्णो देवी से जुड़ी कई कथाएं प्रचलित हैं, लेकिन जो कथा सर्वाधिक प्रचलित है, वह कथा कुछ यूं है…
माँ वैष्णो देवी की कथा
कहते हैं कि कटरा से थोड़ी दूरी पर हंसाली गांव में मां वैष्णवी के परम भक्त श्रीधर रहते थे। वे बहुत गरीब थे, और उनकी कोई संतान नहीं थी। एक बार उन्होंने नवरात्रि पूजन के लिए कुंवारी कन्याओं को बुलाया। पूजा उपरांत कन्याओं ने प्रसाद ग्रहण किया और घर लौट गईं लेकिन एक कन्या वहीं रुक गई। वो श्रीधर से बोली कि सबको अपने घर भंडारे का निमंत्रण दे आओ। श्रीधर के पास पैसे नहीं थे लेकिन न जाने किस वजह से उसने कन्या की बात मान ली।
गांव के लोगों को निमंत्रण देने के बाद वो गुरु गोरखनाथ व उनके शिष्य बाबा भैरवनाथ जी के साथ उनके दूसरे शिष्यों को भी भोजन का निमंत्रण दे आया। गांव वाले आए और तभी कन्या रूपी मां वैष्णो देवी ने एक विचित्र पात्र से सभी को भोजन परोसना शुरू किया।
माँ ने ऐसे किया भैरवनाथ का संहार
खाना देते हुए जब कन्या भैरवनाथ के पास गई, तब उसने कहा कि मैं तो खीर- पूड़ी की जगह मांस खाऊंगा और शराब पीऊंगा। कन्या ने काफी समझाया, लेकिन वो नहीं माना। उसी वक्त अचानक भैरवनाथ ने कन्या को पकड़ना चाहा तो मां ने वायु रुप लेकर त्रिकूटा पर्वत की तरफ प्रस्थान कर दिया। भैरवनाथ फिर भी नहीं माना और उनके पीछे चल दिया।
मां उड़कर एक गुफा में पहुंची और नौ महीने तक तपस्या में लीन रहीं। भैरवनाथ भी उनके पीछे पीछे वहां तक आ गया। तब एक साधु ने भैरवनाथ से कहा कि तू जिसे एक कन्या समझ रहा है, वह आदि शक्ति जगदम्बा है, इसलिए उस महाशक्ति का पीछा छोड़ दे।
लेकिन भैरवनाथ को अपनी शक्ति का अहंकार था। इसलिए उसने साधु की बात को स्वीकार नहीं किया। जबकि मां दूसरी तरफ के मार्ग से बाहर निकल गईं। यह गुफा आज भी अर्द्धकुमारी या आदि कुमारी के नाम से जानी जाती है। गुफा से बाहर आकर माता वैष्णवी ने महाकाली का रूप लिया और भैरवनाथ का संहार कर दिया।
माँ जगदम्बा ने भैरवनाथ को दिया आशीर्वाद
भैरवनाथ का सिर कटकर भवन से 8 किमी दूर त्रिकूट पर्वत की भैरव घाटी में गिरा। उस स्थान को भैंरोनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता है। जिस स्थान पर मां वैष्णो देवी ने हठी भैरवनाथ का वध किया, वह स्थान पवित्र गुफा अथवा भवन के नाम से प्रसिद्ध है। इसी स्थान पर मां महाकाली (दाएं), मां महासरस्वती (मध्य) और मां महालक्ष्मी (बाएं) पिंडी के रूप में गुफा में विराजमान हैं। इन तीनों के सम्मिलत रूप को ही मां वैष्णो देवी का रूप कहा जाता है। माना जाता है कि वध के बाद भैरव को अपनी गलती का पछतावा हुआ।
उसने मां से माफी मांगी। माता वैष्णो देवी जानती थीं कि उन पर हमला करने के पीछे भैरव का इरादा दरअसल मोक्ष पाने का था। उन्होंने न केवल भैरव को पुनर्जन्म के चक्र से मुक्ति प्रदान की, बल्कि उसे वरदान देते हुए कहा कि मेरे दर्शन तब तक पूरे नहीं माने जाएंगे, जब तक कोई भक्त, मेरे बाद तुम्हारे दर्शन नहीं करेगा। उसी मान्यता के अनुसार आज भी भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के बाद करीब पौने तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई करके भैरवनाथ के दर्शन करने जाते हैं।
इस बीच वैष्णो देवी ने तीन पिंड (सिर) सहित एक चट्टान का आकार ग्रहण किया और सदा के लिए ध्यानमग्न हो गईं।
पंडित श्रीधर को माँ वैष्णो ने दिए दर्शन
उधर, पंडित श्रीधर कन्या के बारे में जानने को बेचैन थे। एक रात उन्हें सपने में उन्हें माता की गुफा दिखी। वे त्रिकुटा पर्वत की ओर उसी रास्ते आगे बढ़े, जो उन्होंने सपने में देखा था। आखिरकार वे गुफा के द्वार पर पहुंचे। उन्होंने कई विधियों से पिंडों की पूजा को अपनी दिनचर्या बना ली। देवी उनकी पूजा से प्रसन्न हुईं। वे उनके सामने प्रकट हुईं और उन्हें आशीर्वाद दिया। उसके बाद से माता की गुफा की प्रसिद्धि लगातार बढ़ रही है और अब तो हर साल करीब एक करोड़ भक्त दर्शन करने पहुंचते हैं।