धार्मिक स्थान

छत्तीसगढ़ का प्रयाग: राजिम कुंभ

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श्रद्घालुओं की अनगिनत आस्था, संतों का आशीर्वाद और कलाकारों के समर्पण का ही परिणाम है कि राजिम-कुंभ ने देश में अपनी पहचान नए धार्मिक और सांस्कृतिक संगम के तौर पर कायम कर की है। गुजिस्ता कुछ सालों में राजिम कुंभ की ख्याति देश-दुनिया में फैली है, यह मध्य भारत का प्रयाग बन चुका है।
रायपुर से दक्षिण-पूर्व में करीब 45 किमी पर राजिम के त्रिवेणी संगम पर हर साल माघ पूर्णिमा से महाशिवरात्रि तक लाखों श्रद्धा के तार एक साथ बजते हैं तब राजीव लोचन की उपस्थिति और ऋषि परम्परा से सारा जगत अर्थवान हो जाता है। अनादि काल से चल रहे चेतना के स्फुरण को, परम्परा और आस्था के इस पर्व को राजिम कुंभ कहा जाता है।
2005 से छत्तीसगढ़ शासन ने राजिम मेले के आयोजन को राजिम कुंभ का स्वरूप देकर लोकव्यापी बनाने की दिशा में एक नई पहल की। यही वजह है कि राजिम कुंभ के अवसर पर पर्यटकों की संख्या बढ़ जाती है। कुंभ में देश भर से पर्यटकों की भीड़ के साथ श्रद्धालु एवं साधु-महात्माओं के अखाड़े विशेष रूप से आमंत्रित रहते हैं।
महानदी पूरे छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी नदी है और इसी के तट पर बसी है राजिम नगरी। राजधानी रायपुर से 45 किलोमीटर दूर सोंढूर, पैरी और महानदी के त्रिवेणी संगम-तट पर बसे इस नगरी को श्रद्घालु श्राद्घ तर्पण, पर्व स्नान, दान आदि धार्मिक कार्यों के लिए उतना ही पवित्र मानते हैं जितना कि अयोध्या और बनारस को। मंदिरों की महानगरी राजिम की मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की यात्रा तब तक संपूर्ण नहीं होती जब तक यात्री राजिम की यात्रा नहीं कर लेता।
अटूट विश्वास है कि यहां स्नान करने मात्र से मनुष्य के समस्त कष्ट नष्ट हो जाते हैं और मृत्युपरांत वह विष्णु लोक को प्राप्त करता है। अंचल के प्रसिद्घ संत और कवि पवन दीवान स्पष्ट करते हैं कि भगवान शिव और विष्णु यहां साक्षात रूप में विराजमान हैं जिन्हें राजीवलोचन और कुलेश्वर महादेव के रूप में जाना जाता है। याद दिलाते चलें कि वैष्णव सम्प्रदाय की शुरुआत करने वाले महाप्रभु वल्लभाचार्य की जन्मस्थली चम्पारण्य भी यहीं है।
कुंभ-पर्व का मेला मुख्यत: साधुओं का ही माना जाता है। साधु मंडली ही कुंभ का जीवन है। राजिम-कुंभ कई दिनों तक इसका साक्षी बनता है। मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के शब्दों में संत देश, धर्म और संस्कृति को जोडऩे का काम करते हैं और राजिम-कुंभ इसका प्रतीक बना है। यह काम सत्ता से नहीं हो सकता।

राजिम कुंभ मेला भिन्न-भिन्न मतों, पंथों, समुदायों और धर्मो का प्रमुख आस्था केंद्र है। मंत्री ने कहा कि इस मेले में विदेश से भी लोग आने लगे हैं। यहां के संत समागम और शाही स्नान में इस बार विदेशी सैलानियों के भी पहुंचने के आसार हैं। राजिम छत्तीसगढ़ में महानदी के तट पर स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का ‘प्रयाग भी कहते हैं। यहां के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं। वर्तमान में राजिम कुंभ भूलोक में विख्यात हो चुका है तथा प्रतिवर्ष कुंभ का विशाल आयोजन किया जा रहा है। राजिम कुंभ साधु संतों के प्रवचन, शंकराचार्यों के आगमन द्वारा हरिद्वार, नासिक, इलाहाबाद व उज्जैन के चार कुंभों के पश्चात पाँचवे कुंभ के रुप में प्रचारित हो रहा है।
किसी भी धार्मिक आयोजन की सफलता या उसे सर्वमान्य रूप से प्रतिष्ठापित करने की यह अनिवार्य शर्त है कि उसे समाज और धर्म दोनों का पर्याप्त समर्थन मिले। इसकी प्रबल अभिव्यक्ति महाशिवरात्रि पर आयोजित अंतिम शाही स्नान में दिखाई देती है।

साथ ही साथ यहां स्थानीय और प्रादेशिक कलाओं को जीवंत करने में भी कुंभ का खासा योगदान रहा है, कह सकते हैं कि आर्थिक समस्या के चलते जिन लोक कलाकारों को बहुत कम अवसर और सम्मान राशि मिलती है, यह कुंभ उनके लिए मददगार साबित होता है।
राजिव लोचन दर्शन करने के पश्चात कुलेश्वर महादेव के दर्शन न हो तो राजिम यात्रा अधूरी ही मानी जाएगी। पुराविद डॉ विष्णु सिंह ठाकुर के अनुसार कुलेश्वर महादेव का प्राचीन नाम उत्पलेश्वर महादेव था जो कि अपभ्रंश के रूप में कुलेश्वर महादेव कहलाता है। कुलेश्वर महादेव मंदिर नदियों के संगम पर स्थित है। यह अष्टभुजाकार जगती पर निर्मित है। नदी के प्रवाह को ध्यान में रखते हुए वास्तुविदों ने इसे अष्टभुजाकार बनाया। इसकी जगती नदी के तल से 17 फुट की ऊंचाई पर है। कुल 31 सीढियों से चढ़ कर मंदिर तक पंहुचा जाता है। कहते हैं कि मंदिर के शिवलिंग को माता सीता ने बनाया था। मंदिर में कार्तिकेय एवं अन्य देवताओं की मूर्तियाँ लगी हैं। किंवदंती है की नदी के किनारे पर स्थित संस्कृत पाठशाला ब्रह्मचर्य आश्रम से कुलेश्वर मंदिर तक सुरंग जाती है। सुरंग का प्रवेश द्वार संस्कृत पाठशाला ब्रह्मचर्य आश्रम में है। जिसके मुख को अब बंद कर दिया गया है।