आज का पंचाग.
दिनांक 28.09.2022
शुभ संवत 2079 शक 1944
सूर्य दक्षिणायन का ..
आश्विन शुक्ल पक्ष तृतीया तिथि … रात्रि को 01 बजकर 27 मिनट से… दिन… बुधवार…
चित्रा नक्षत्र … दिन को 06 बजकर 14 मिनट तक …आज चंद्रमा … तुला राशि में …
आज का राहुकाल दिन को 11 बजकर 54 मिनट से 01 बजकर 24 मिनट तक होगा
माँ की उपासना से पायें वीरता के साथ सौम्यता समृद्धि और उन्नति –
माँ दुर्गा जी के तीसरे शक्तिरूप का नाम ‘‘चंद्रघण्टा" है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इस कारण माता के इस रूप का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं तथा सभी हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित है। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा यु़द्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इनके घण्टे की सी भयानक चण्डध्वनि से अत्याचारी दानव-दैत्य-राक्षस सदैव प्रकम्पित रहते हैं।‘अग्नि’ तत्व की तेजोमयी मूर्ति ‘मां चंद्रघंटा’अमृतमयी, स्वब्रह्मामयी रूपिणी है। चंद्र में प्रकाश सूर्य द्वारा प्रकाशित है। चंद्र अर्थात सोमरस प्रदान करने वाली, श्रेष्ठमयी, घण्टा अर्थात ‘अग्नि’शब्द ध्वनि का परिचायक है, भगवती का अग्निमय, क्रियात्मक स्वरूप है।
घण्टे से ‘ब्रह्मनाद’व अनहत नाद स्वरूपिणी हैं। घण्टे की ध्वनि से प्रेत-बाधादि से रक्षा होती है। इनकी आराधन से होने वाला एक बहुत बड़ा सद्गुण यह भी है कि वीरता-निर्भयता के साथ सौम्यता एवं विनम्रता का भी विकास होता है। माता के इस रूप की साधना करने से समस्त सांसारिक कष्टों से विमुक्त होकर सहज ही परमपद प्राप्त होता है। नवरात्रि उपासना में तीसरे दिन परम शक्तिदायक और कल्याणकारी स्वरूप की आराधना की जाती है। समृद्धि और उन्नति की देवी- माँ कूष्माण्डा – माँ दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है।
अपनी मंद्र हल्की हॅसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। देवी कूष्माण्डा ने ही अपने ‘ईषत्’ हास्य द्वारा ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति की थी, जिसके पूर्व सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं था। इनकी शरीर की कांति तथा प्रभा सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है जिसके कारण इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता केवल इन्हीं के पास है। माँ कूष्माण्डा का स्वरूप है आठ भुजाओं वाली माता के सात हाथों में क्रमषः कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प, अमृतपूर्ण कलष, चक्र तथा गदा है।
आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देनेवाली जपमाला है। कूम्हड़े का भोग इन्हें सर्वाधिक प्रिय है चूकि संस्कृत में कूम्हड़े का नाम कूष्माण्ड है जिसके कारण इनका नाम कूष्माण्डा देवी हुआ। अत्यल्प सेवा और भक्ति से भी प्रसन्न होने वाली माता कूष्माण्डा की साधना से आयु, यष,बल और आरोग्य में वृद्धि होती है।
माँ कूष्माण्डा की सहजभाव से सेवाभक्ति करने पर माँ कूष्माण्डा मनुष्य को आधियों-व्याधियों से सर्वथा विमुक्त करके उसे सुख तथा समृद्धि और उन्नति की ओर ले जाने वाली माता है।
कूष्माण्ड’ अर्थात गति-युक्त, अण्ड, ‘वायु उत्पन्न करने वाली माँ संसार में निष्क्रियता, तमस का नाश कर ‘चरैवति-चरैवति’ का संदेश प्रदान करती है। समस्त चराचर की स्वामिनी माँ कूष्मांडा ही जगत की उत्पत्ति, पोषण व विनाष की अधिकारिणी हैं।