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मानसिक शक्तियों

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श्रृंगार एवं प्रेम
यह मानसिक शक्ति कपाल के पीछे की ओर निचले भाग मे जहाँ गर्दन का प्रारम्भ होता है,स्थित होती है| इसका उभार उस भाग के साधारण विकास को देखकर अनुभव किया जा सकता है | यदि मन की यह शक्ति बहुत अधिक विकसित हो तो व्यक्ति काम वासना तथा विलासिता का दीवाना हो जाता है और लम्पट एवं व्यम्भिचारी बन जाता सामान्य रूप से बलवती होने पर यह मानसिक शक्ति,स्फूर्ति एवं प्रेरणा प्रदान करती है | इस प्रकार के व्यक्ति अपने विपरीत सैक्स के प्राणियों मे लोकप्रिय होने के लिए सब कुछ करने तथा उन्हें सब कुछ भेट करने के लिए सदैव प्रस्तुत रहते हैं । इनके जीवन मे प्रेम को सर्वोच्च स्थान प्राप्त है । प्रेम ही इनका जीवन और कार्यक्षेत्र होता है ।
सन्तान प्रेम
मन की यह शक्ति ऊपर वर्णन की गई प्रथम शक्ति के ठीक ऊपर होती है और मस्तक के पीछे के भाग का सबसे अंश इससे प्रभावित होता है । इस क्षेत्र का विकास पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों के मस्तक में अधिक देखा जाता है । यह शक्ति वात्सल्य अर्थात सन्तान के प्रति बहुत स्नेह करने के लिए प्रेरित करती है, इसलिए नारी पूरुष की अपेक्षा सन्तान के प्रति अधिक स्नेहशील एवं वात्सल्यमयी होती है । इसी शक्ति के प्रभाव से माता-पिता अपने अबोध, छोटे, शक्तिहीन बच्चों का लालन-पालन करने तथा उन्हें सब प्रकार की सुविधा प्रदान करने के लिए प्रेरित होते है ।
ध्यान केन्द्रीकरण
मनुष्य के ध्यान को किसी भी बिन्दू पर केन्द्रित करने वाली मन की शक्ति मस्तक के पीछे की ओर सर्वाधिक उन्नत भाग के बिलकुल ऊपर दूसरी शक्ति अर्थात वात्सल्य एवं स्नेह की शक्ति के ऊपर स्थित होती है| इस प्रकार के व्यक्ति साधारणतया बुद्धिजीवी होते हैं । शारीरिक कार्य काने मे वे कम ही आत्मनिर्भर होते हैं । वे शारीरिक श्रम करने से कतराते है । अपने मित्रों का चुनाव प्राय: सुशिक्षित,सभ्य, बुद्धिजीवी एवं सुसंस्कृत लोगो में से करते है । आनी महत्ता का प्रदर्शन शब्दों से नहीं बल्कि अपने कार्यों से करते है ।
स्नेह एवं मिलनसारिता
मन की यह शक्ति सन्तान प्रेम अर्थात वात्सल्य की शक्ति के बगल मे कुछ ऊपर की ओर अवस्थित है । वैसे तो यह मानसिक शक्ति पुरुषों और स्त्रियों दोनों में विद्यमान होती हैं, परन्तु प्राय: ऐसा देख गया है कि पुरुषों को अपेक्षा स्त्रियों में यह अधिक विकसित होती है । ऐसे व्यक्तियो को मित्रो एवं-सगे सम्बन्धियों की संगति विशेष रुप से प्रिय होती है और वे उनसे बार-बार मिलने की चेष्टा करते है ।
झगड़ालू शक्ति
झगड़ालू शक्ति को इंद्रिय कान के पीछे लगभग डेढ़ इंच की दूरी पर स्थित होती है । ध्यान से देखने या हाथ से टटोलने पर ज्ञात होगा कि कानों के बीच में तथा पीछे मस्तक का एक भाग अन्य स्थानों की अपेक्षा चौड़ा होता है । यह मानसिक शक्ति मनुष्य में झगड़ालु प्रवृति तथा कलहप्रियता की भावना को जाग्रत करती है । इस प्रकार के लोग वाद-विवाद और तर्क-विर्तक करने को सदा तत्पर रहते हैं । ऐसे व्यक्तियों की जबान जितनी तेज होती है, उनका शरीर भी उतना ही हुष्ट-पुष्ट और सबल होता है। शरीरिक भ्रम खेलों में इनकी विशेष रूचि रहती है ।
विध्वंशक शक्ति
विध्वंसात्मक शक्ति की ग्रंथि कान के ठीक ऊपर और कुछ-कुछ उसके आस-पास विद्यमान होती है । इस ग्रंथि के विकसित रूप का अनुमान इस स्थान पर मस्तक की चौडाई से लगाया जा सकता हैं। ऐसे व्यक्ति के मन मे किसी व्यक्ति के प्रति दया, ममता, सहानुभूति आदि के भाव नहीं होते । निर्मम से निर्मम हत्या करते समय भी उसका हुदय विचलित नहीं होगा ।
यह सौभाग्य से परोपकारिता शक्ति के अत्यधिक विकसित होने के फलस्वरुप यह विध्वंसक शक्ति प्रभावित होकर दुर्बल पड़ जाए तो व्यक्ति की विध्वंसात्मक प्रवृत्ति पर कुछ अंकुश लग जाता है ।
गोपनीयता
गोपनीयता को मानसिक शक्ति मस्तक के पार्शव भाग के मध्य में विध्वंसक शक्ति के केन्द्र के ठीक ऊपर स्थित है तथा उसके बदुत आगे बढी हुई है। जब ये दोनों शक्तियां पूर्णतया विकसित होती हैं, तो मस्तक के पार्श्व भाग का नीचे का एवं मध्य का भाग साधारणतया भरा हुआ दिखाई देता है । इस शक्ति का मुख्य कार्य अन्य शक्तियों पर अंकुश लगाकर उन्हें नियंत्रित करना है । यदि यह शक्ति का विकसित हो, तो मनुष्य को गोयनीयता की शक्ति का हास हो जता है । ऐसे व्यक्ति अपना भेद भी दुसरे के सामने खोल देते है ।
प्राप्ति की लालसा
प्राप्ति की लालसा की मानसिक शक्ति का केन्द्र गोपनीयता की शक्ति के क्षेत्र में होता है । यह शक्ति मनुष्य को अधिकाधिक भौतिक संपत्ति अर्जित करने और उसका संचय करने के लिए प्रेरित करती है । मनुष्य मे यह मानसिक शक्ति अत्यधिक बलवती हो और विवेक शक्ति दुर्बल हो, तो वह धन-प्राप्ति की अपनी लालसा को वैधानिक एवं नैतिक सीमाओं में बांधकर नहीं रखता, अपितु जल्दी से जल्दी तथा अधिक से अधिक धन प्राप्त करने के लिए चोरी-डकैती जैसे अनैतिक उपायों का भी सहारा लेने से भी नहीं चुकता है|
सृजन-शक्ति
मनुष्य को सृजन-शक्ति जो रचना या निर्माण करने के लिए प्रेरित करती है, कनपटी के नोचे के भाग में प्राप्ति की लालसा के बिलकुल सामने उससे कुछ नीचे की ओर ही होती है। इसकी स्थिति का संबंध मस्तिष्क की आकृति से भी है। यदि मस्तिष्क का आधार संकीर्ण होता है तो इस ग्रन्थि का स्थान सामान्य से कुछ ऊपर होता है|मन की इस स्थिति का कार्य मनुष्य के अन्दर निहित रचना अर्थात निर्माण की इच्छा एवं प्रवृत्ति को जाग्रत करना है। जो लोग यंत्रों सम्बन्धी कार्यों को सीखने प्रज्ञा उनका निर्माण करने ने विशेष रुचि लेते हैं, उनमे यह शक्ति विकसित रूप मे देखि जा सकती है|
आत्म सम्मान
मनुष्य के जीवन मे आत्म-सम्मान का विशेष महत्व होता है । इसी के द्वारा वह जीवन मे सर्वोच्च स्थान प्राप्त करता है । इसलिए मनुष्य के शरीर मे इस शक्ति की ग्रन्थि को उच्च स्थान प्राप्त है अर्थात् यह ग्रन्धि मस्तक के पिछले भाग की चोटी पर जहाँ शिखर (चोटी) होती है ।जब यह भाग बड़ा होता है तो इस शक्ति का क्षेत्र कान से बहुत ऊपर तथा पीछे की ओर विकसित होता है। यह शक्ति स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषों में अधिक विकसित होती है ।
प्रशंसा की चाह
प्रशंसा की चाह को ग्रन्थि आत्म-सम्मान की ग्रन्थि के दोनों पाश्वों में सिरे के ऊपर की ओंर पिछले भाग मे होती है । जब यह पर्याप्त उन्नत और विकसित होती है तो उस भाग के असाधारण रूप से उन्नत होने के साथ-साथ उसकी चौड़ाई भी बढ़ जाती है । देखा गया है, कि ग्रंथि पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अधिक बलवती होती है । ऐसे व्यक्ति की चेष्टा रहती है कि वह ऐसा कार्य करे जिसकी लोग प्रशंसा करे और जिसके लिए अधिक से अधिक आदर प्राप्त हो। यही कारण है, कि वह अपने मित्रों एवं परिजनों पर सदा ऐसा प्रभाव डालने का प्रयत्न करता है कि वह उनकी दृष्टि में सम्मान का पात्र बने ।
सर्तकता
मन की यह शक्ति मस्तिष्क के पिछले भाग के दोनों पाशर्वों के ऊपर की ओर विद्यमान होती है। यह ग्रंथि विकसित हो, या अविकसित दोनों आवस्थाओं में उसके उभार की मोटाई मे एक इंच तक का अन्तर पड़ जाता है । यह मानसिक शक्ति मनुष्य को इस बात के लिए प्रेरित करती है, कि वह अगला कदम उठाने से पहले प्रत्येक बात को भली-भांति सोच-समझ ले ।
यह शक्ति मनुष्य को बुद्धिमान, विवेकशील, सदा सर्तक और कभी-कभी भोरु भी बना देती है । यही शक्ति व्यक्ति को झगड़ालू प्रवृत्ति पर अंकुश लगाती है ।
परोपंकारिता
परोपकारिता की मानसिक शक्ति मस्तक के सामने वाले क्षेत्र में ऊपर की ओंर स्थित है, जिसका आभास उस भाग की ऊंचाई से मिलता है। मन की यह शक्ति मनुष्य में परोपकारिता की भावना को जन्म देती है । ऐसे मनुष्य की हार्दिक इच्छा होती है, की वह दुखी और विपत्तिग्रस्त लोगो की सहायता करे। वह जन साधारण को चाहे उसके साथ उसका व्यक्तिगत अथवा पारिवारिक संबंध हो या न हो, सुखी देखने की इच्छा रखता है ।
श्रद्धा
श्रद्धा की मानसिक शक्ति मस्तक के उपरी भाग के मध्य में परोपकारिता की मानसिक शक्ति के ठीक पीछे की ओर विधमान है। यदि मनुष्य में परोपकारिता के साथ-साथ श्रद्धा की शक्ति भी पूर्ण रूप से विकसित हो, तो मस्तक का यह भाग इतना उन्नत हो जाता है, कि इसे सरलता से पहचाना जा सकता है । मन की इस शक्ति का मुख्य कार्य श्रद्धा की भावना को जन्म देना है । यही कारण है, कि इस शक्ति से मुक्त व्यक्ति जिस मनुष्य एवं वस्तु को अपने से श्रेष्ठ समझता है, उसी के प्रति वह श्रद्धा रखने लगता है ।
दृढता
दृढता का परिचय देने वाली मानसिक शक्ति मस्तक की चोटी पर आत्म सम्मान की शक्ति के ठीक सामने होती है। इसके कारण मस्तक का वह आसपास के भाग से ऊंचा दिखता है ।
यह शक्ति मनुष्य को विभिन्न प्रकार की विघ्न-बाधाओं से झूझने के लिए दृढ़ता प्रदान करती है । जिस कार्य को करने का वह मन में संकल्प कर लेता है, उससे वह विचलित नहीं होता । उसे प्रत्येक स्तिथि में पूरा करके रहता है । कोई भी लालच, रिश्वत या अन्य प्रभाव उसे सच्चाई तौर ईमानदारी के मार्ग से नहीं हटा सकता । वह वही कार्य करती है जिसे उचित समझे ।
अन्त:करण की शुद्धता
अन्त: करण की शुद्धता नाम की मानसिक शक्ति दृढ़ता को शक्ति दोनों ओर सतर्कता से ऊपर तथा सामने की ओर एवं प्रशंसा की चाह नामक शक्ति के भी सम्मुख और आशा के पीछे की ओर स्थित है । यह शक्ति मनुष्य मे न्याय तथा औचित्य की भावना को जन्म देती है । नैतिक तथा न्याय को दृष्टि से सर्वथा उचित बातो को स्वीकार करने एवं उन्हे समर्थन देने के स्मिट प्रेरित करती है । ऐसा व्यक्ति नाना प्रकार कठिनाइयों एवं बाघाओं के मध्य में भी अपने सिद्धान्त पर निष्ठापूर्वक अडिग रहता है । –
आशा
आशा की मानसिक शक्ति श्रद्धा की शक्ति के दोनों ओर विद्यमान है, तथा मस्तक के सामने के कुछ भाग के नीचे को ओर फैली हुई है । मन की इस शक्ति का उदृदेश्य मनुष्य के मन में किसी कार्य अथवा इच्छा की पूर्ति होने की भावना जाग्रत करना है ।इसके फलस्वरूप व्यक्ति के मन में यह विश्वास जमने लगता है, कि उसे उसके उदृदेश्य में सफलता प्राप्त हो जायेगी । अन्य शक्तियों का सहयोग पाकर आशा की शक्ति और भी अधिक बलवती हो जाती है ।
विस्मय
विस्मय की मानसिक शक्ति का स्थान मस्तक के शिखर के निकट तथा कनपटी के ठीक उपर है। यह शक्ति जितनी अधिक विकसित होगी, मनुष्य का ललाट उतना ही प्रशस्त तया उन्नत होता है । यह शक्ति अपने धारणकर्ता के अन्दर विस्मय की भावना उत्पन्न करती है । संसार में ऐसे व्यक्ति को जो भी वस्तु उसे असाधारण प्रतीत होती है, उसे वह विस्मय एवं उत्सुकता से देखता है । उसे चमत्कार मानकर उस पर विश्वास करने लगता है । ऐसे लोग भूत-प्रेत, जादू-टोनों आदि पर विशेष रूप से विश्वास करते है ।
आदर्शवादिता
मन की इस शक्ति अर्थात आदर्शवादिता का स्थान विस्मय की शक्ति के निचे तथा कनपटियों तौर प्राप्ति की लालसा की शक्ति के कुछ ऊपर होता है । ऐसा व्यक्ति एक महान कलाकार होता है । उसके साहित्य,चित्र, शिल्प, संगीत आदि मे उसके आदर्श रुप के दर्शन किये जाते है । वह प्राकृतिक सरिता,निर्झरों, उपत्यकाओं, पक्षियों के क्लरव तथा फूल पौधों को एक नया सुन्दर रूप प्रदान करता है| रमणीयता उसका प्रमुख गुण है । वह एक सफल कवि, चित्रकार तथा शिल्पकार होता है ।
विनोदप्रियता
विनोदप्रियता को मानसिक शक्ति ललाट के उपरी तया पाशर्व भागों में आदर्शवादिता के ठीक सामने अवस्थित है, उपरी क्षेत्र मे ललाट की जो चौडाई होती है, उसे देखकर इसे शक्ति के विकास का अनुमान लगाया जा सक्ता है । यदि विनोदप्रिबता की शक्ति के साथ गोपनीयता का भी सहयोग हो जाये, तो उसका विनोद द्वि-अर्यक हो जाता जब इस शक्ति के साथ झाहालु शक्ति संयुक्त हो जाती है, तो यह ऐसे तीखे व्यंग्य बाग छोडने लगता है कि उसका शिकार तिलमिला जाता है ।
अनुकरणीयता
अनुकरणीता अथवा अनुकरण करने की शक्ति मस्तक के उपरी भाग मे दोनों नेत्रों की सीध में परोपकारिता की शक्ति के दोनो ओंर होती है। जब यह शक्ति अधिक विकसित होती है तो ललाट का वह भाग वृत्त्कार रूप मे उभरा दुआ दिखाई देता है । इस शक्ति की प्रेरणा से ही मन मे अनुकरण की भावना जाग्रत होती है और मनुष्य उस कार्यं का अनुकरण करने के लिये प्रेरित हो जाता है, जो उसके मन को भा जाती है अथवा जिसका अनुकरण करने से उसे धन, मान, प्रतिष्ठा आदि पाने की आशा होती है ।
वैयक्तिकता
वैयक्तिकता की शक्ति नाक के ऊपर दोनों भृकुटीयों के मध्य मे अवस्थित है। इसके अघिक विकसित होने पर भृकूटियो के मध्य की चौडाई और ललाट के उस क्षेत्र ने वृद्वि हो जाती है। जब यह शक्ति अर्द्धविकसित अथवा अविकसित रह जाती है, तो वह क्षेत्र दब सा जाता है तथा वहां स्पष्ट स्प से गड्ढा दिखाई देने लगता है । जब यह शक्ति अपने पूर्व विकास पर होती है, तो वह किसी भी वस्तु की सूक्ष्मतम विशेषताओं को ढूंढ़ निकालता है ।
स्वरुप
स्वरुप मन की वह शक्ति है, जिसका निवास नेत्रों के भीतरी कोनों के पास होता है और जो पुतलियों को किनारों की ओर दबाती है । इस स्थिति के परिणाम स्वरुप दोनों नेत्रों के मध्य में पर्याप्त दूरी बन जाती है । इस शक्ति का मुख्य कार्य स्पर्श एवं दृष्टि की ज्ञानेन्द्रियों में समन्वय स्थापित करना है ।
आकार
आकार का ज्ञान कराने वाली मानसिक शक्ति नासिका के दोनों पाशर्वो के विपरीत अवस्थित है। यह सरलता से परिलक्षित नहीं होती है। क्योंकि सामने को दरार से बहुधा छिपा लेती है। मनुष्य विभिन्न शरीरों के आकारों को देखने की क्षमता प्राप्त करता है, वह इसी शक्ति को देन है ।
भार
भार का ज्ञान कराने वाली मानसिक शक्ति भृकुटि की पहाड़ी के अंतर्गत नासिका के मूल भाग में निवास करती है। जब यह शक्ति समुचित रूप से विकसित होती है, तो मनुष्य में सन्तुलन स्थापित करने की अदृभुत शक्ति की क्षमता आ जाती है । वह अपना कार्य बड़े सन्तुलित रूप से करता है । चलते समय उसके पैर बड़े सधे हुए ढंग से सैनिको की भांति पडते है, हाथों को अंगुलियाँ हलकी और तीव्र गति से चलती है। उसके सम्पूर्ण चाल-ढाल मे उल्लेखनीय शालीनता रहती है ।
व्यवस्था
व्यवस्था मन की यह शक्ति है जिसका स्थान भृकुटि की पहाडी के अंतर्ग्रत आंख की पुतली के ठीक ऊपर है । इसकी ही प्रेरणा से मंनुष्य चाहता है कि प्रत्येक वास्तु अपने स्थान पर सफाई से सजी संवारी रखी हुई मिले । वह स्वयं भी सभी वस्तुओं को सजाकर रखता है । स्स बात का ध्यान वह सर्वत्र रखता है ।
स्थानीयता
स्थानीयता की मानसिक शक्ति व्यक्तिकता की शक्ति के दोनो पाश्वों में होती है और इसका विस्तार विनिद्प्रियता की शक्ति के क्षेत्र तक होता है। इस शक्ति के विकास को दो स्थानों पर स्पष्ट स्य से देख जा सक्ता है । वे स्थान है, नासिका के मूल के प्रत्येक पार्श्व के निकट से आरम्भ होकर ऊपर की ओर तिस्वे जाकर तथा बाहर की ओर ललाट के मध्य भाग तक की ऊचाई पर । पशुओं एवं पक्षियों मे इस शक्ति का अच्छा विकास होता है। यही कारण है कि कुत्ते या कबूतर को अपने घर से काफी दूरी पर छोड़ दिये जाने पर भी यह अपने घर पहुच जाता है ।
संख्या बोध
संख्या बोध का मानसिक शक्ति का निवास नेत्र के बाहय कोण में होता है। जब इस शक्ति का विकास बहुत अघिक होता है तो भृकुटि के सामने के सिरे बाहर की ओर दब जाते है । जिन व्यक्तियों में मन की इस शक्ति का समुचित विकास होता है, वे संख्याओं का शीघ्रता से और जल्दी-जल्दी जोड,घटा,गुणा,भाग कर लेते हैं ।ऐसे लोगो को इस प्रकार के साधारण प्रश्न हल करने में कागज पेन्सिल आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती। कुछ लोगों में इस शक्ति का असाधारण विकास देखा गया है । वे कई अंको का गुणा-भाग मौखिक रुप से कर सकते हैं ।
रंग-प्रियता
रंग-प्रियता की मानसिक शक्ति भृकुटि की कमानी के मध्य ने होती है। इस शक्ति के पूर्व विकास का बोध अच्छी सुघड़ बाहर क्या ऊपरी ओर खिंची हुई, कमानीदार भ्रिकूटी से होता है । उस समय उसका बाहरी भाग नासिका के निकट वाले भाग के अपेक्षा उन्नत दिखाई देता है। रंगप्रियता की यह शक्ति पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियों में अघिक पायी जाती है। ईरान, पूर्वी द्वीप समूह, चीन, जापान जैसे पूर्वीय देशों के लोगों में अधिक लोकप्रियता होती है ।
सम्भावित सम्बन्ध
मन की यह शक्ति, ललाट के मध्य मे वैय्क्तिकता तथा स्थानीयता की शक्तियों से ऊपर की ओर स्थित है । जिस व्यक्ति में इस शक्ति का सम्यक विकास होता है, वह किसी एक विषय मे पारंगत तो नहीं होता, परन्तु प्राय प्रत्येक वस्तु के विषय मे थोडा-थोड़ा ज्ञान रखता है । इसकी विशेषता यह है कि मनुष्य किसी पल विषय का अध्ययन करने लगता है |इस शक्ति का स्वामी अन्य लोगों को सदैव कार्यरत देखना चाहता है । इसकी जिज्ञासा-वृत्ति बहुत बलवती होती है |
समय बोध
समय बोध की मानसिक शक्ति भृकुटि के ऊपर तथा संभावित सम्बन्ध की शक्ति के दोनों पाश्वों में अवस्थित होती है । मन की इस शक्ति को धारण करने वाला व्यक्ति तारीखों को भली-भीति स्मरण रख सकता है । तिथियों के सम्बन्ध में उसकी स्मरण-शक्ति इतनी विशद और सटीक होती है कि वह वर्षों पुरानी बात को विवरण के साथ याद रखता है । जो अपने भावी कार्यक्रमों को काफी पहले से निर्धारित पर लेते हैं, कि अमुक-अमुक तिथि को अमुक-अमुक कार्यं करना है, उनकी मानसिक शक्ति विशेष रूप से लाभदायक सिद्ध होती है ।
स्वर बोध
स्वर बोध की शक्ति ललाट के नीचे के क्षेत्र में भृकुटि के अन्तिम भाग से प्रारम्भ होकर कनपटी तक फैली हुई है। जिन लोगों के मस्तिष्क आधार पर संकरे होते हैं, उनमे यह ग्रन्थि कुछ ऊंचाई पर होती है। ऐसा व्यक्ति यदि संगीत को व्यवसाय के रुप ने अपनाता है तो वह प्रख्यात संगीतकार बन जाता है ।
भाषा
भाषा, मन की वह शक्ति है, जो नेत्र के ऊपर एवं पिछले भाग में स्थित है । जब यह शक्ति अधिक विकसित होती है, तो नेत्र सामने की ओर उभर जाते है तथा कभी-कभी नेत्रो का निचे का भाग थोडा दब जाता है । यदि भृकुटि में स्थित शक्तियां भली-भांति विकसित हो, तो उस व्यक्ति के नेत्र गड्ढों में धंस जाते है ।
तुलना
तुलना को मानसिक शक्ति ललाट के ऊपरी भाग के मध्य में होती है । इसके ऊपर परोपकारिता, निचे सम्भावित संबंध तथा दोनों ओर कार्य-करण सम्बन्ध की मानसिक शक्तियाँ होती है । असमान वस्तुओं एवं परिस्थितियों की तुलना करना इस शक्ति का कार्य है। यह विभिन्न शक्तियों द्ररा सम्प्रन्न किये गये कार्यों के परिणामों की जाँच-पड़ताल करती है । फिर समस्त परिणामों का तुलनात्मक अध्ययन करती है ।
लाथीकारण
कार्य-कारण सम्बन्ध शक्ति ललाट के ऊपरी भाग मे तुलना कीं॰शक्ति के दोनों ओंर स्थिर होती है। किसी ने इस शक्ति का विकास अघिक होता है और किसी में कम जिस व्यक्ति में इसका विकास सम्यक रूप से होता है, उसके लालट का वह भाग वृताकार दिखाई देता है । जिन व्यक्तियों की यह शक्ति पूर्णतया विकसित होती है, उनमें तर्क सम्बन्धी योग्यता असाधारण होती है । वे प्रख्यात तार्किक एवं महान शास्त्री होते है। वे जिस वस्तु की जिस रुप में देखते है, उसके उस रूप को देखकर ही सन्तुष्ट नहीं हो जाते। वे यह जानने का प्रयत्न करते है कि उसे यह रूप कैसे प्राप्त दुआ ।
Pt.P.S.Tripathi
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