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महाकाल कृपा की तीन कथाएं

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अमावस्या की पार्थिव-पूजा (पिंडदान) से श्री महाकाल अमलेश्वर की साक्षात् प्रकट्‌ता होती है एवं असीम रूप से कामनाएँ पूर्ण होती हैं।

निष्काम भक्ति: वृद्धा सावित्री का प्रकट्‌ दर्शन

कथासार:
वृद्धा सावित्री पूरे जीवन को पति-पूजन में समर्पित होकर भी विधवा-श्राद्ध से अनियंत्रित व्यथित रहती थी। अमावस्या की रात्रि उसने पार्थिव-पिंडदान किया, अंतःकरण से “महाकालो भव” मंत्र जपा। अचानक मंदिरप्रांगण की घनघोर नीरवता टूटकर, गर्भगुहा से ओजस्वी उज्जवल ज्योति प्रकट हुई। सामने खड़ी शिवलिंग के नेत्र से अमृतसलिलों का झरना गिरा और सावित्री के चरणस्पर्श कर स्वयं बोली—

“नमो महाकाले, तव चरणयोः शरणम्।”
वृद्धा की वृद्धावस्था में ही स्वस्थ्य-बल वृद्धि हुई, जीवन में आनंद-शांति लौटी, और अन्त्येष्टि के बाद परलोकीय पुण्यमार्ग स्पष्ट हुआ।

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श्लोकः (विपरीतछन्दः, १९ मात्राः)

अमावस्यायां पिण्डदानकुले, महाकाले स्फुरति विलोचनः ।
भक्ते साक्षात् ददाति मोक्षमार्गं, दुःखहरं च मामणिं ॥

अज्ञानभीत गणिताचार्य: विद्या-विस्तार की प्राप्ति

कथासार:
कुशल गणिताचार्य वैदिकेश्वर को वर्षानुवर्ष सूत्रों की व्याख्या में अव्यवस्था एवं संदेह था। एक अमावस्या, उसने तटवर्ती पिण्डदान कर, गणितसूत्र समाधि के लिए पार्थिव-यज्ञोच्चारण किया। उस रात्रि मंदिरकोण से दिव्यांगना रूपी महाकाली प्रकट हुई और हाथों में अंकगणित-पद्मधराएँ धारण किए, स्वयं समीकरणों का निराकरण दिखाया। जागृत होकर वैदिकेश्वर ने अमलेश्वर से लघुत्रिकोणमिति के सूत्र आत्मसात् किए, बाद में गणित-साहित्यों में क्रांति ला दी।

श्लोकः (उत्पत्तिविभंगछन्दः, १८ मात्राः)

अमावस्यायां यज्ञशूलम् उद्धृतम्, तदन्तः प्रकटितं ज्ञानरूपम् ।
महाकालस्य कृपया युक्तः, सूत्रभेदः स्फुटितः स्म विधेयते ॥

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पराजित योद्धा: वीर बलदेव का पुनरुत्थान

कथासार:
बलदेव नामक वीर योद्धा पराजय के पश्चात् वंचित एवं अपमानित हो कर जीवन-आशा खो चूका था। अमावस्या की रात उसने पार्थिव-पिंडदान के साथ तलवार-नैवेद्य चढ़ाई, “हर हर महाकाल” उद्घोष किया। तभी गर्भगुहा से महाकाल वीररूप में प्रकटित हुए—उनके त्रिशूल से आकाश भेदकर गर्जना गुंजित, और बलदेव के वरदानस्वरूप उसके हाथ में दिव्यशक्ति संचार हुई। अगले प्रातः वह पुनः वैभवशाली रणभूमि में अवतरित हुआ, अपमान का बदला लिया और राज्यसभा में मान-प्रतिष्ठा पुनः स्थापित की।

श्लोकः (त्रिश्चन्द्रछन्दः, २० मात्राः)

पिण्डदानाङ्गणे जयघोषो वा, महाकाले प्रकटितो वीरः ।
सर्वशत्रुशमनशक्तिं ददाति, भक्ते पराक्रमवर्धकं हि ॥

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इन तीनों कथाओं में अमावस्या की पार्थिव-पूजा से महाकालधाम अमलेश्वर की दिव्य साक्षात्‌ता हुई और भक्तों के जीवन में *मोक्ष, ज्ञान* तथा *पराक्रम* की अनन्त धारा प्रवाहित हुई।