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ज्योतिष विद्या का मेरुदंड “नक्षत्र”

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ज्योतिष विद्या का मेरुदंड ”नक्षत्र“ है। ऋषियों एवं आचार्यों ने सर्वप्रथम नक्षत्र आधारित ज्योतिषीय सिद्धांत ही प्रतिपादित किए थे। ”न क्षरति न सरति इति नक्षत्र“। नक्षत्रों के विभिन्न विभाजनों पर आधारित फलित के सूत्र दिए गए हैं। इसी में एक विभाजन 3020‘ या 200 कला का है। यहां 27 नक्षत्र 108 चरणों में विभक्त हैं। विशेष स्थिति का नक्षत्र विशेष फलद होता है और सूक्ष्मता के लिए नक्षत्र का विशेष चरण महत्वपूर्ण होता है। जैसे 64वां चरण (नवांश) अति प्रचारित है जो आपके संज्ञान में होगा। 27 नक्षत्रों में निम्नलिखित नक्षत्र विशेष फलद् होते हैं। 1. जन्म कालीन चंद्र नक्षत्र जन्म नक्षत्र 2.जन्म नक्षत्र से दसवां नक्षत्र कर्म नक्षत्र 3.जन्म नक्षत्र से सोलहवां नक्षत्र सोद्यतिक नक्षत्र 4. जन्म नक्षत्र से अट्ठारहवां नक्षत्र मुदायिक नक्षत्र 5. जन्म नक्षत्र से तेईसवां नक्षत्र वैनाशिक नक्षत्र 6.जन्म नक्षत्र से पच्चीसवां नक्षत्र मानस नक्षत्र नक्षत्रों को निम्नलिखित सात संज्ञाओं में विभाजित किया गया है: 1.जन्म, 2. सम्पत, 3. विपत, 4. क्षेम, 5. प्रत्यरि, 6. साधक, 7. वध, 8. मैत्र, 9. अतिमैत्र इनमें 3, 5 और 7 कष्टकारी कहलाते हैं और 88वां चरण विशेष रूप से कष्टप्रद बतलाया गया है। ”वैनाशिकं त्रयोविंशं वराहमिहिरोदितम“।। 88 पाद: ”प्रश्न मार्ग“ के प्रथम अध्याय की श्लोक संख्या 30 में भी इस 88वें चरण का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है। प्रश्नमार्ग एक सर्वथा प्रामाणिक ग्रंथ है। यह केवल प्रश्न संबंधी ज्योतिष का ग्रंथ नहीं है जैसा नाम से लगता है। इसमें प्रतिपादित सिद्धांत/सूत्र ज्योतिष की सभी विधाओं में अनुकरणीय हैं। स्व. डाॅ. बी. वी. रमन (जिनका नाम ज्योतिष जगत में प्रकाश पुंज की तरह देदीप्यमान रहेगा) ने ”प्रश्नमार्ग“ की अपनी प्रस्तावना में इसका विशद उल्लेख किया है। इस 88वें चरण की महत्ता से प्रभावित होकर अंग्रेजी साहित्य ने तो इसे अपने शब्द कोष में शामिल कर लिया। यदि 108 चरणों को 12 भावों में रखेंगे तो: प्रथम भाव में जो चरण पड़ेगे: 1,13,25,37,49,61,73,85 और 97वां चरण। चतुर्थ भाव में जो चरण पड़ेंगे: 4, 16, 28, 40, 52, 64, 76, 88 वां एवं 100 वां चरण। अब संज्ञान में लें: चतुर्थ भाव, 64वां एवं 88वां चरण: चतुर्थ भाव को पाताल, कहते हैं। इसी तरह 64वां चरण एक बहुप्रचारित कष्टप्रद बिंदु है। उसी श्रेणी या कुछ अधिक अंशों तक यह 88वां चरण भी है। मेरी व्यक्तिगत गणनाओं में इस विशेष 88वें चरण में (290 से 293.200) गोचरस्थ ग्रह कोई न कोई घटना अवश्य देता है। मैंने अपनी गणना में केवल विशेष प्रभाव के लिए ”गुरु, शनि, राहु और केतु“ के संचरण का विश्लेषण किया है। घटना की गहनता एवं सघनता ग्रहों की तात्कालिक स्थिति, जन्मकालीन ग्रहों से उनकी कोणीय स्थिति एवं ग्रहों के स्वामित्व वाले भावों आदि पर निर्भर करती है। राहु-केतु के संबंध में लघु पाराशरी का सूत्र 13 संज्ञान में रखें। ”यद यद भाव गतोऽपि यद यद भावेश संयुता।“ ़ऋषियों ने सूक्ष्म विवेचन हेतु इस 88वें चरण पर गोचरस्थ ग्रह के केवल नकारात्मक या अशुभ लक्षण ही बताए हैं। परंतु मेरी गणना में सकारामक एवं नकारात्मक (शुभ और अशुभ) दोनों प्रकार के लक्षण मिले। इससे यह अर्थ कदापि न लें कि ऋषियों की बात गलत है। वस्तुतः मेरी विवेचना में ही कलियुगीन प्रभाव है और देश-काल-पात्र का मेरी मान्यताओं पर भी असर है। उदाहरणस्वरूप आजकल आर्थिक संपन्नता एवं भौतिकता को शुभता की श्रेणी में रखा जाता है जबकि पूर्व काल में सांसारिकता एवं भौतिकता को अशुभता के लक्षणों में स्थान दिया जाता था। अंतर मान्यताओं एवं प्राथमिकताओं का है। शुक्र, मंगल, सूर्य, बुध एवं चंद्र का संचरण इस 88वें चरण पर जब-जब होगा उसका भी प्रभाव आप अनुभव करेंगे। प्रत्येक माह इस पर दृष्टि रखें और अंतर अनुभव करें। विशेष: यदि लग्न कुंडली बलवती हो तो लग्न नक्षत्र से और यदि चंद्र कुंडली बलवती हो तो चंद्र नक्षत्र से गणना करें।

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