Other Articles

शंख और उसकी उपयोगिता

419views

शंख का पूजा में महत्व
शंखों का हिंदू धर्म संस्कृति में प्राचीनकाल से ही विशेष महत्व रहा है। अष्टसिद्धियों एवं नवनिधियों में शंख का महत्वपूर्ण स्थान है। श्री विष्णु के चार आयुधों में शंख को भी स्थान प्राप्त है। शंख पूजन से दरिद्रता निवारण, आर्थिक उन्नति, व्यापारिक वृद्धि और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। पूजा, यज्ञ एवं अन्य विशिष्ट अवसरों पर शंखनाद हमारी परंपरा में है। शंख-ध्वनि के बिना कोई पूजा संपन्न नहीं मानी जाती। मंदिरों में नियमित रूप से और घरों में पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान, व्रत, कथाओं, जन्मोत्सव के अवसरों पर शंख बजाया जाता है। शंख से निकलने वाली वाली ध्वनितरंगों में हानिकारक वायरस को नष्ट करने की क्षमता होती है। शंखनाद से आपके आसपास की नकारात्मक ऊर्जा का नाश तथा सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इससे आशा, आत्मबल, शक्ति व दृढ़ता बढ़ती है व भय दूर होता है।

दक्षिणावर्ती शंख की उपयोगिता
दक्षिणावर्ती शंख से लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है- इसके बिना लक्ष्मी जी की पूजा-आराधना सफल नहीं मानी जाती। दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर गर्भवती स्त्री को सेवन कराने से संतान स्वस्थ व रोग मुक्त होती है। दक्षिणावर्ती शंख से पितृ तर्पण करने पर पितरो की शांति होती है। दक्षिणावर्ती शंख से शालिग्राम व स्फटिक श्रीयंत्र को स्नान कराने से व्यवहायिक जीवन सुखमय और लक्ष्मी का चिरस्थायी वास होता है। चंद्र ग्रह की प्रतिकूलता से होने वाले श्वास व हृदय रोगो की शांति के लिए इसकी नित्य पूजा करे | दक्षिणावर्ती शंख की स्थापना से वास्तु दोषों का निवारण होता है।

पूजा में शंख क्यूँ बजाया जाता है
समुद्र मंथन के समय मिले 14 रत्नों में से एक रत्न शंख भी है। शंख में ओम की ध्वनि प्रतिध्वनित होती है, इसलिए ओम् से ही वेद बने और वेद से ज्ञान का प्रसार हुआ। शंख चंद्रमा और सूर्य के समान ही देव स्वरूप है। इसके मध्य में वरुण, पृष्ठ भाग में ब्रह्मा और अग्र भाग में गंगा व सरस्वती का निवास है। शंख से शिवलिंग, कृष्ण या लक्ष्मी विग्रह पर जल या पंचामृत अभिषेक करने पर देवता प्रसन्न होते हैं। शंख की ध्वनि से भक्तों को पूजा-अर्चना के समय की सूचना मिलती है। आरती के समापन के बाद इसकी ध्वनि से मन को शांति मिलती है। ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मांड एवं शंख की आकृति समान है शंख के अंदर का घेरा ब्रह्मांड की कुंडली की तरह होता है। शंख में गूंजने वाला स्वर ब्रह्मांड की गूंज के समान है। ऊँ शब्द की गूंज भी शंख के द्वारा गूंजायमान ध्वनि जैसी ही होती है।

शंखों की आयुर्वेद में उपयोगिता
वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके प्रभाव से सूर्य की हानिकारक किरणें बाधित होती हैं। शंख नाद करने पर जहां तक इसकी ध्वनि जाती है, वहां तक व्याप्त बीमारियों के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। शंख में गंधक, फास्फोरस और कैल्शियम जैसे उपयोगी पदार्थ मौजूद होते हैं। इससे मौजूद जल सुवासित और रोगाणुरहित हो जाता है। इसी लिए शास्त्रों में इसे महाऔषधि माना जाता है। बच्चों के शरीर पर छोटे-छोटे शंख बांधने व उन्हें शंख-जल पिलाने से वाणी-दोष दूर होते हैं। मूक व श्वास रोगी हमेशा शंख बजाए, तो वे बोलने की शक्ति पा सकते हैं आयुर्वेद के अनुसार हकलाने वाले व्यक्ति यदि नित्य शंख-जल पिएं तो वे ठीक हो जाएंगे। शंख जल स्वास्थ्य, हड्डियों व दांतों के लिए लाभदायक है।

क्या शंख जैविक पदार्थ नहीं हैं ?
शंख समुद्र मे पायें जाने वाले एक प्रकार के घोघें का खोल है जिसे वह अपनी सुरक्षा के लिए बनाता है। घोघें से इसका निर्माण होने के कारण यह एक समुद्री जैविक पदार्थ है। जैसे- नाखून और बाल मानव शरीर से ही जीवन पाते है। परंतु जैसे ही इन्हे काटकर अलग किया जाता हैं तो ये निर्जीव हो जाते है इसी प्रंकार मूगा रत्न भी एक जैंविक उत्पाद है। यह भी शंख की तरह सामुद्रिक पदार्थ है औंर जब इसे इसकी श्रृखला ं से अलग कर दिया जाता है तब यह बढ़ना बंद कर देता है। शंख भी घोघें से अलग होने पर आकार-वृद्धि करना बंद कर देते है। अतः शंख एक जैविक पदार्थ होते हुए भी अजैविक पदार्थ है।

शंख की मौलिकता की पहचान किस प्रकार की जाती है ?
शंख की मौलिकता की पहचान एक्स-रे द्वारा की जाती है। कभी-कभी शंख के दोषों को दूर करने के लिए कृत्रिम रूप से उसकी पाउडर द्वारा फिलिंग कर दी जाती है या कोने आदि बना दिये जाते हैं। शंख समुद्र की मिट्टी में दबे होते हैं इनकी मिट्टी हटाकर, इन्हें तेजाब से साफ किया जाता है जिससे इनकी वास्तविक चमक प्राप्त होती है। इसके पश्चात् इन्हें गंगाजल से शुद्ध किया जाता है।
दुर्लभ शंख ?
दुर्लभ शंख सामान्यतः मालदीव, अंडमान-निकोबार द्व ीपसमूह, हिंद महासागर और प्रशांत महासागर से प्राप्त होते है। इनका आकार एक मिली मीटर सें लेकर 5 फीट हो सकता है व शंख एक ग्राम से कई लेकर कई किलो तक वजन मे पायें जाते है।

दुर्लभ शंखों के नाम व उपयोगिता
गणेश शंख सर्वाधिक शक्तिशाली शंख है। इस शंख को विद्या-प्राप्ति और सौभाग्य तथा पारिवारिक उन्नति के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। शंख शनि दोष का निवारण करता है। यह काले रंग का बहुत ही प्रभावशाली शंख है। शनि देव का प्रकोप शांत करके उनकी कृपा-दृष्टि प्राप्त करने के लिए यह अत्यंत महत्वपूर्ण शंख है। जिन पर शनि साढ़ेसाती, शनि ढैया व शनि महादशा चल रही हो या शुरु होने वाली हो उनको यह शंख अपने साथ रखने चाहिए या इसे सरसों के तेल में डुबोकर घर के मंदिर में रखना चाहिए।

दक्षिणावर्ती शंख धन के देवता कुबेर का शंख है। इस शंख के पूजन से धन, संपत्ति व ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। मोती जैसी आभा वाला मोती शंख दुर्लभ शंख है। यह सौभाग्यवर्द्धक शंखों की श्रेणी में आता है।

मोती शंख का पूजन मानसिक अशांति दूर करता है। कौड़ी शंख को संतान, संपत्ति मान-सम्मान, वैवाहिक सुख व ऐश्वर्य का प्रतीक माना जाता है।

गौमुखी शंख सफेद रंग और पीतवर्ण के विशेष रूप से पाये जाते हैं।गौमुखी शंख की उपासना से सुख, सौभाग्य, सौंदर्य व समृद्धि प्राप्ति होती है।

अन्नपूर्णा शंख अपने ज्ञान के अनुरूप फल देता है। यह दिव्य व चमत्कारी शंख है। जिस घर में अन्नपूर्णा शंख स्थापित होता है वह घर अन्न-धन से परिपूर्ण और चंहुमुखी विकास की ओर अग्रसर होता है।