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“निषाद कन्या और महाकाल का वरदान”

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“निषाद कन्या और महाकाल का वरदान”

बहुत समय पहले, जब खारून नदी अपने तटों पर शांति बिखेरती थी और श्रीअमलेश्वर महाकाल मंदिर तपस्वियों की साधना से गुंजायमान रहता था, उस वनांचल में एक निषाद कन्या नलिनी रहती थी। निषादों का जीवन कठिन था, पर नलिनी जन्म से ही अत्यंत तेजस्विनी, परम भक्त और सरल स्वभाव की थी। उसकी भक्ति महाकाल के प्रति इतनी गहरी थी कि वह प्रतिदिन खारून नदी में स्नान कर “ॐ नमः शिवाय” का जाप करते हुए अमलेश्वर धाम की परिक्रमा करती।

एक बार, आषाढ़ की अंधेरी रात्रि में, जब श्मशान के समीप वटवृक्ष पर गहन तांडव हो रहा था, नलिनी को स्वप्न आया — महाकाल स्वयं भस्म से अलंकृत रूप में प्रकट हुए। उन्होंने कहा:

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“वत्से! तव भक्ति निरीहं मम हृदय स्पर्शिनी। तव पतिं अहं वीरं शिवतुल्यं दास्यामि, यः कुलं न केवलं त्रायते, अपितु इतिहासे कीर्तिं च दास्यति॥”*

अर्थात — हे वत्से! तेरी भक्ति ने मेरे हृदय को स्पर्श किया है। मैं तुझे एक ऐसा पति दूँगा जो शिव के समान वीर, धर्मनिष्ठ और यशस्वी होगा। वह केवल तेरा नहीं, अपितु संपूर्ण वंश का उद्धार करेगा।

कुछ ही समय बाद, वन यात्रा पर निकला एक युवा राजकुमार, जिसे अपने ही राजपुरोहित ने “पत्नी प्राप्ति हेतु अमलेश्वर में अर्चन” का परामर्श दिया था, वही वहाँ आया। राजकुमार विक्रांत देव एक शूरवीर, पर विनम्र और धर्मप्रेमी — ने महाकाल की उपासना की और उसी समय नलिनी से भेंट हुई।

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ध्यानावस्था में, दोनों ने एक-दूसरे को पूर्वजन्म के साथी रूप में अनुभव किया। तत्कालीन ऋषि विश्वनाथ ने यह योग्यता देख विवाह संपन्न कराया। विवाह के समय महाकाल स्वयं अग्नि रूप में प्रकट हुए और एक श्लोक से आशीष दिया:

“निषादकन्ये शिवभक्ते, कुलदीप भव भूधरे।

पतिस्तव भवेद्वीर्यवान्, धर्मराज्यं करिष्यति॥”

परिणति:

राजकुमार विक्रांत देव और निषाद कन्या नलिनी ने एक सशक्त राज्य की स्थापना की जहाँ शूद्र-वर्ण की स्त्रियाँ भी सम्मान और अधिकार में समान थीं। यह वंश बाद में “शिववंश” के नाम से इतिहास में प्रसिद्ध हुआ। इस विवाह को आज भी “महाकाल के प्रत्यक्ष वरदान” का जीवंत प्रमाण माना जाता है।

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