आकाश में ग्रह नक्षत्रों की चाल बदलते ही किस्मत बदल जाती है। यह सब नौ ग्रहों के 12 राशियों में संचरण से होता है। इन्ही नौ ग्रहों में से एक है शनि देव। शनि देव सदैव से जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं। पौपौराणिक कथाओं के अनुसार शनिदेव कश्यप वंश की परंपरा में भगवान सूर्य की पत्नी छाया के पुत्र हैं। शनिदेव को सूर्य पुत्र के साथ साथ पितृ शत्रु भी कहा जाता है। शनिदेव के भाई-बहन मृत्यु देव यमराज, पवित्र नदी यमुना व क्रूर स्वभाव की भद्रा हैं। शनिदेव का...
1. केमद्रुम योग ज्योतिष शास्त्र के दुर्लभ ग्रंथ मानसागरी के अनुसार जब चंद्र किसी ग्रह से युत न हो, चंद्र से द्वितीय तथा द्वादश स्थान में जब कोई ग्रह न हो तथा शुभ ग्रह चंद्र को न देखते हों तो ‘‘केमद्रुम योग’’ की रचना होती है। राजयोग और मंगलकारी योग जन्मपत्रिका में चाहे जितने निर्मित होते हों परंतु यदि एक ‘केमद्रुम योग’ बनता है तो सारे राजयोग और मंगलकारी योग उसी प्रकार नष्ट हो जाते हैं जैसे एक सिंह सारे गजसमूह को भगा देता है। यह योग दुःख का मूल...
उत्तम एवं सर्वगुण संतान उत्पन्न करने के लिए हमारे पूर्वजों ने कुछ संस्कारों को करने हेतु अनिवार्य कहा है। जिन्हें संतान उत्पन्न करने से पूर्व करना चाहिए प्रत्येक पति पत्नी की पारस्परिक इच्छा, अभिलाषा होती है कि वह एक बुद्धिमान, मेधावी, धैर्यवान, भाग्यवान संतान के माता-पिता बने, परंतु मालूम न होने के कारण कि एक सर्वगुण संतान का माता-पिता कैसे बना जा सकता है वह चूक जाते हैं और संतान जनम के बाद जीवन भर उससे कष्ट पाते हैं। इसलिए आइये जानें कि सर्वगुण संपन्न संतान प्राप्त करने हेतु उसके...
एक ऊंची सी समुद्र की लहर दूसरी छोटी लहर से इठलाकर बोली कि मुझे देखो, मैं कितनी बड़ी और ताकतवर हूं, और फिर कुछ ही क्षणों उपरांत वह समुद्र के किनारे पड़े एक पत्थर से टकराई और शांत हो गई। उसी के साथ फिर दूसरी लहर आई और वह भी पत्थर से टकराकर शांत हो गई और यह क्रम चलता रहा। क्या अब उस पहली लहर का पुनर्जन्म होगा? एक तालाब के किनारे कुछ बच्चे खेल रहे थे। तालाब में पत्थर फेंक रहे थे जिससे कुछ बुलबुले उठ रहे थे।...
प्रत्येक व्यक्ति किसी शुभ कार्य को शुभ समय में प्रारंभ करना चाहता है ताकि वह कार्य सफल, लाभकारी तथा मंगलमय हो। ऐसे अनेक शुभ समय (अवसर) विभिन्न कालांगों तथा वार, तिथि, नक्षत्र आदि के सम्मिश्रण से बनते हैं जिन्हें योग कहा जाता है। इसी प्रकार के शुभ योग प्रत्येक कार्य के लिए आचार्यों ने निर्धारित किए हैं। शुभ योगों की भांति अशुभ योग (कुयोग) भी इन्हीं कालांगों से मिलकर बनते हैं जिनमें शुभ कार्यों का प्रारंभ वर्जित है। इस आलेख में उन्हीं योगों का वर्णन करेंगे जिनकी रचना में नक्षत्रों...