वास्तु शास्त्र के अनुसार अगर किसी व्यक्ति के जीवन में इससे यानिि वास्त से संबंधित दोष पैदा हो जाएं तो उसके जीवन नें अनेक तरह की परेशानियां पैदा हो जाती हैं। बल्कि कहा जाता है कि घर और जीवन में पैदा हुए इन वास्तु दोषों के चलते कई बार वैवाहिक जीवन भी अस्त-व्यस्त होने लगता है। क्योंकि वास्तु शास्त्र की मानें तो इन दोषों के चलते हमेशा घर के वैवाहिक जोड़े प्रभावित होते हैं। कभी-कभी तो इसके कारण रिश्ते इतने बुरी तरह से उलझ जाते हैं कि सुलझाने पर भी नहीं सुलझ पाते। पारिवारिक उलझने सामाजिक समस्या आदि वैवाहिक रिश्तों को इतना प्रभावित नहीं करती जितना कि घर के वास्तु दोष प्रभावित करते हैं।
कई बार बना बनाया घर खरीदने से या घर निर्माण में वास्तु के नियमों का पालन न करने से से जाने आनजाने में बना घर असल में वैवाहिक रिश्ते में उलझनों को पैदा करता है। मगर वहां रहने वाले लोग इस बात से पूरी तरह अंजान होते हैं कि आख़िर ये क्यों हो रहा है। और वो इन सबके कारण विभिन्न तरह की परेशानियों का सामना करते हैं। तो बता दें वास्तु शास्त्र के अनुसार इन दोषों का निवारण इसके यानि वास्तु के सिद्धातों के मुताबिक होने से समस्या का निदान भी होना शुरू हो जाता है। क्योंकि वास्तु दोष निदान के बाद पति-पत्नी के आपसी व्यवाहर, आदत और बातचीत आदि में बदलाव आ जाता है।
सूर्योदय काल की किरणों का घर प्रवेश में बिना अपराध के होना अत्यन्त आवश्यक है इससे आरोग्यता और प्रसन्नता बनी रहती है। जहां आरोग्यता और प्रसन्नता होती है वहां आपसी तालमेल का आभाव हो। ऐसा होना असंभव माना जाता है। बल्कि इससे मानिसक स्वास्थ्य सदैव बनी रहती है।
घर में प्राणिक ऊर्जा की उत्पत्ति बराबर होने से घर में उसका सही रूप से प्रवाह होने पर शारीरिक और मानसिक थकान नही होती। इसके लिए शुद्ध आक्सीजन युक्त हवा के प्रवेश मे कोई रूकावट नहीं होनी चाहिए। साथ ही घर का ब्रह्म स्थान खुला होना चाहिए। कहा जाता है इससे मन में अच्छे विचार बने रहते हैं और सहन शक्ति में वृद्धि होती है।
कामकाज में मन लगता है, जिससे रुपये-पैसे का आवागमन हमेशा बना रहता है। ऐसे में पति-पत्नी के संबंधों में मधुरता रहती है और आपसी विवाह नहीं होते हैं। मधुर वातावरण में एक दूसरे के प्रति शारीरिक आकर्षन बना रहता है। कहते हैं भवन चाहे कितना ही खूबसूरत क्यों न हो अगर उसमें प्रातः काल की धूप, हवा और पृथ्वी की चुंबकीय शक्ति का आपस में संतुलन नहीं है तो दांपत्य जीवन खुशहाल नहीं बन सकता।
सुखी वैवाहिक जीवन के उपाय-
घर के ईशान क्षेत्र यानि उत्तर-पूर्व को भारी या गंदा न रखें। यह बृहस्पति ग्रह का स्थान है जो कि पति सुख और धन के कारक हैं। ईशान क्षेत्र को हमेशा साफ़ और हल्का रखें। इससे आपसी संबंधों में मानसिक तनाव नहीं आता। सहन शक्ति और सामाजिक प्रतिष्ठा बनी रहती है। ईशान क्षेत्र अगर खुला हो को सूर्योदय काल किरणें मकान के अंदर आसानी से आ सकेंगे। इससे स्वास्थय, सामाजिक सम्मान प्राप्त होगा।
अग्नि कोण (दक्षिण-पूर्व) में वास्तु दोष होने पर पति-पत्नी में आपसी क्रोध अधिक रहता है। मन मुटाव में बढ़ जाता है। पति-पत्नी एक दूसरे पर दोषारोपन करते हैं। यह स्थान रसोई घर के लिए उपयुक्त है। यहां पर खाना बनाते समय ग्रहणी का मुख पूर्व की ओर होना चाहिए। इससे मन शांत रहता है और शांति से ही रिशतों में मधुरता है।
नैर्ऋत्य क्षेत्र अर्थात (दक्षिण-पश्चिम) में दक्षिण दिशा की तरफ़ सोने की व्यवस्था है तो अति उत्तम है। गहरी और स्वस्थ निद्रा के लिए दक्षिण दिशा की तरफ़ सिर रखकर सोना चाहिए। इसमें मन और दिमाग दोनों शांत रहते हैं। इस तरफ़ की व्यवस्था से पति-पत्नी के आपसी रिश्तों में मधुरता बनी रहती है। साथ ही साथ एक-दूसरे की बातों को समझना और मानना अच्छा लगता है। एक-दूसरे के लिए जीने में ही अलग ही तरह की खुशी का आंनद मिलता है। इसलिए अगर आप इस सभी के इच्छुक हैं तो भूलकर भी ईशान कोण में रसोई घर न बनवाएं।
ईशान या उत्तर क्षेत्र में शयन कक्ष नहीं होना चाहिए। उत्तरी दिशा में पति-पत्नी का शयन कक्ष होने पर मस्तिष्क में हमेशा एक द्द बना रहता है। गहरी नींद नहीं आती ज्यादा समय यहां रहने पर अनिद्रा का शिकार हो जाते हैं। ईशान यां उत्तरी क्षेत्र में पति-पत्नी शयन करते हैं तो उनका आपस का मनमुटाव बढ़ता है। एक-दूसरे पर कटाक्ष करते हैं और संबंध संतोषाजनक नहीं रहते और अंतरंग संबंधों में नीरसता आजाने के कारण रिश्ते उखड़ से जाते हैं।
ईशाण क्षेत्र में शौचालय नहीं बनाना चाहिए। इस क्षेत्र में शौचालय होने पर स्वास्थ्य और जीवन स्तर में गिरावट आती है। पैसा नहीं टिकता जो कि आज के समय में मधुर संबंधों के लिए सबसे ज़रूरी माना जाता है।
वास्तु दोषों का निदान हो जाने के बाद पति पत्नी के बीच आया तनाव धीरे-धीरे नष्ट हो कर फिर से संबंधों में मिठास आ जाती है जो कि शादीशुदा जीवन के लिए अति आवश्यक है।