व्रत एवं त्योहार

करवा चौथ स्पेशल: क्यों करते हैं चाँद की पूजा?

273views

सुहागिनों का सबसे बड़ा पर्व “करवा चौथ” कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाई जाती है। इस दिन विवाहित स्त्रियाँ अपने पति की लंबी उम्र के लिए व्रत रखती है। साल 2020 में करवा चौथ 4 नवंबर, दिन बुधवार को है। अविवाहित स्त्रियां भी अच्छे वर की कामना से करवा चौथ का व्रत रखती है। करवा चौथ का त्यौहार पूरे उत्तर भारत में ज़ोर-शोर से मनाया जाता है। इस दिन सभी सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, और शाम को चाँद को अर्ध्य देकर पानी पीती हैं। इस दिन स्त्रियां चंद्रमा, शिव-पार्वती और गणेश की पूजा करती हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर इस दिन स्त्रियां क्यों चाँद को देखने के बाद ही व्रत खोलती हैं। चलिए आपको इस लेख के ज़रिए बताते हैं कि करवा चौथ की पूजा में चाँद का इतना महत्व क्यों होता है!

ALSO READ  Aaj Ka Rashifal 21 April 2023: आज इन राशियों को व्यावसायिक मामलों में मिलेगी सफलता

क्यों करते हैं चाँद की पूजा?

प्रचलित पौराणिक कथा में ऐसा बताया गया है कि जिस दिन भगवान गणेश का सिर धड़ से अलग किया गया था, उस दौरान उनका सिर सीधे चंद्रलोक में चला गया था। मान्यता है कि आज भी उनका सिर चंद्रलोक में मौजूद है। चूंकि गणपति को यह वरदान मिला था कि किसी भी पूजा से पहले उनकी पूजा की जाएगी, इसलिए करवाचौथ वाले दिन भी सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा तो होती है। गणेश का सिर चंद्रलोक में होने के कारण करवा चौथ वाले दिन चंद्रमा की खास पूजा की जाती है। आपको बता दें कि करवा चौथ वाले दिन स्त्रियां भगवान गणेश, शिव-पार्वती और कार्तिकेय की पूजा करती हैं। मां पार्वती की पूजा इसलिए की जाती है, क्यूंकि पार्वती माँ ने कठिन तपस्या कर भगवान शिव को पाया था और उन्हें अखंड सौभाग्यवती का वरदान मिला था। अखंड सौभाग्य का आर्शीवाद पाने के लिए  ही महिलाएं मां पार्वती की पूजा करती हैं और उपवास रखती हैं।

ALSO READ  श्री महाकाल धाम में महाशिवरात्रि के दुर्लभ महायोग में होगा महारुद्राभिषेक

करवा चौथ व्रत के नियम

  • करवा चौथ का व्रत सूर्योदय से पहले से शुरू हो जाता है और इसे चांद निकलने तक रखना चाहिए। रात्रि के समय चन्द्रमा के दर्शन के बाद ही व्रत को खोला जाता है।
  • शाम के समय चंद्रोदय से पहले पूरे शिव-परिवार यानि शिव जी, पार्वती जी, नंदी जी, गणेश जी और कार्तिकेय जी की पूजा की जाती है।
  • पूजा के समय हमेशा ध्यान रखें कि देव-प्रतिमा का मुख पश्चिम की तरफ़ होना चाहिए और व्रती स्त्री को पूर्व की तरफ़ मुख करके बैठना चाहिए।