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जानें,तुला लग्न का रहस्य…

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तुला लग्न

तुला लग्न वाले जातकों के लिए शनि राजयोग कारक ग्रह माना जाता है क्योकि यह ग्रह लग्न का मित्र होने के साथ-साथ यह चतुर्थ भाव व पंचम भाव का स्वामी हो जाता है । चतुर्थ व पंचम स्थान दोनों ही शुभ स्थान होते है तथा शनि का केन्द्र व त्रिकोण स्थान का स्वामी होना ही राजयोग बनाता है।

अगर शनि आपकी कुण्डली में लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, नवम, दशम व एकादश स्थान में बैठा हो तो इस लग्न के जातकों को नीलम धारण करने से सब प्रकार का सुख, इस ग्रह की दशा व अन्तरदशा में प्राप्त होंगे।अगर शनि 3, 6, 8, 12 व सप्तम स्थान में स्थित हो तो राजयोग मे कमी आ जायेगी तथा यह नाश भी कर सकता है।यदि 3, 6, 7, 8, 12 स्थानों में पीड़ित हो इस रत्न को धारण करने से लाभ होगा।

लाभ

शनि राजयोग कारक होने से हीरे व पन्ने के साथ नीलम को आजीवन धारण किया जा सकता है जिससे धन, पदवी, एम.एल.ए. , एम.पी., आई. एस., आई.पी.एस. चुनाव जीतना, राजनैतिक क्षेत्र में सफलता, जमीन, जायजाद, घर, गाडी, सुख-साधनो में वृद्धि करेगा।
इसके अलावा आप आई.ए.एस. , आई.पी.एस., एम.बी.बी.एस. , इंजीनियरिंग की डिग्रीमें प्रथम भी आ सकते है तथा सरकार में बडें़ पदों पर इस रत्न के धारण करने से आसन हो सकते है।

जिस जातक की प्रोमोशन नही होती हो उनकी प्रमोशन भी अवश्य हो जायेगी। अगर किसी व्यक्ति को किसी भ्ी काम में सफलता मिल रही हो तो उस काम में नीलम धारण करने से सफलता अवश्य मिलेगी लेकिन हीरा इसके साथ अवश्य धारण करना चाहिए।

वृश्चिक लग्न

वृश्चिक लग्न के लिए शनि तृतीय व चतुर्थ भाव का स्वामी होता है तथा लग्नेश मंगल का शत्रु भी है। ज्योतिषके सिद्धांतों के अनुसार शनि इस लग्न के लिए शुभ ग्रह नहीं माना जा सकता है। फिर भी चतुर्थ का स्वामी होने से तथा इसकी मूल त्रिकोण राशि केन्द्र में होने से कुछ शुभता आ जाती है। अगर शनि तृतीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम व एकादश स्थान में बैठा हो तो शनि की महादशा व अन्तर्दशा में नीलम रत्न धारण किया जा सकता है। शनि व लग्नेश मंगल परस्पर मित्र नही है। एक अग्नि व दूसरा वर्फ, अतः हम यही राय देंगें कि इस लग्न के लिए जातक नीलम से दूर रहें तो अच्छा होगा।

लाभ

शनि तृतीय व चतुर्थ भाव का स्वामी बनता है। शनि के बलवान करने से धन में विशेष वृद्धि की आशा नहीं करनी चाहिए। हां क्षेत्र जमीन, जायजाद, मकान में वृद्धि की सम्भावना की जा सकती है।मित्रों से लाभ व सुख रहेगा।छोटे भाई व बहिनों की सुख समृद्धि तथा आयु, मान-सम्मान में वृद्धि होगी। निम्न वर्ग के व्यक्तियों से सम्पर्क अधिक रहेगा। अगर शनि 3, 11 भाव में स्थित हो तो पराक्रम में वृद्धि होगी तथा लाभ भी होगा।मां की आयु में वृद्धि होगी क्योकि बुरे ग्रह 3, 6, 11 के स्वामी होकर अगर 3, 6, 11 भाव में बैठे हो तो धन भाव व लाभ की वृद्धि होती है। अगर शनि पीड़ित हो तो नीलम धारण अवश्य करना चाहिए।

धनु लग्न के लिए नीलम

धनु लग्न के जातकों के लिए द्वितीय (मारक स्थान) व तृतीय (दुःस्थान) को स्वामी होने के कारण अशुभ ग्रह माना गया है। इसके अतिरिक्त शनि पापी ग्रह है तथा लग्नेश गुरू शुभ ग्रह है। दोनों शत्रु है। अतः इस लग्न के जातकों को नीलम धारण नही करना चाहिए। अगर शनि लग्न मेें, द्वितीय भाव, तृतीय भाव, दशम व एकादश मे उच्च का होकर स्थित हो तो जातक शनि की महादशा या अन्तर दशा मे नीलम धारण कर सकता है। अगर 6, 8, 12वें भाव में स्थित हो तो जातक कों भी कभी भी भूलकर नीलम नहीं धारण करना चाहिए क्योकि धनु लग्न में नीलम सत्यानाश कर सकता है।

लाभ

शनि दूसरे व तीसरे भाव का स्वामी बनता है। शनि के रत्न नीलम धारण करने से आशा नहीं करनी चाहिए क्योकिं शनि की मूल त्रिकोण राशि तृतीय भाव में पड़ती है जो कि पराशर ज्योतिष सिद्धांतो के अनुसार अशुभ भाव माना जाता है। हां अगर नीलम धारण किया जाये तो छोटा भाई व बहिन के स्वास्थ्य व आयु में वृद्धि अवश्य होगी। स्त्री के छोटे भाई, पत्नी का स्वास्थ्य अवश्य सुधरेगा। मित्रों से अधिक सहयोग व धन प्राप्त होगा। अगर विपरीत राजयोग बनता है तो नीलम धारण करने से धन अवश्य आयेगा।

मकर लग्न

मकर लग्न के लिए शनि स्वयं लग्नेश व धनेश बनता है और ज्योतिष के सिद्धांत के अनुसार लग्नेश कभी भी बुरा फल नहीं देता है। बशर्ते वह ग्रह शुभ स्थानों में स्थित हो तथा नीच, अस्त व शत्रु राशि में न हो तथा 6, 8, 12 भावों में स्थित न हो।
इस लग्न के जातक नीलम आजीवन पहन सकते है। अगर पूरी जिन्दगी यह रत्न धारण किया जाये तो मान-सम्मान, आयु, धन, सुख समृद्धि में प्रगति होगी
शनि अगर दशम भाव में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति के काम जिन्दगी में कभी रूकेंगें नहीं। इस लग्न वालों के लिए नीलम एक चमत्कारी नग साबित होगा।

लाभ

मकर लग्न में शनि लग्नेश व धनेश बनता है। शनि को बलवान करने से या नीलम धारण करने से आयु, स्वास्थ्य, विद्या, धन, पढ़ाई, परिवार सभी वस्तुओं में वृद्धि होगी। वाणी में सुधार होगा, माता की बडी बहन की आयु व स्वास्थ्य मे सुधार होगा , ताई के स्वास्थ्य व आयु मे वृद्धि होगी जातक की टांगो में मजबूती मिलेगी।

ऐसा जातक अगर नीलम धारण कर लेता है तो उसे नीलम बहुत उचाईयों पर पहुंचा देगा। इसके धारण करने से व्यक्ति के मान-सम्मान ज्ञान, गूढ़ता व एम.एल.ए. एम.पी. मंत्री आई.ए.एस., आई.पी.एस. तथा कमांडिंग पोस्ट पर पहुंचनेपर देर नहीं लगेगी। अगर शनि लग्न में, धनभाव, तृतीय , पंचम, नवम, दशम, व एकादश स्थान में बैठा हो तो ऐसे व्यक्ति को नीलम धारण करने से राजयोग व सरकारी नौकरी तुरंत हीमिलने के अवसर प्राप्त हो जाते है। अगर हीरे के साथ नीलम डाला जाए तो एक चमत्कारी उत्थान व्यक्ति के जीवन मे अवश्य ही आयेगा और वह व्यक्ति विश्वव्यापी यश व मान-सम्मान प्राप्त करेगा।

कुंभ लग्न

कुम्भ लग्न के लिए शनि लग्नेश व द्वादशेश बनता है। लग्नेश होने से शुभ ग्रह माना जायेगा लेकिन द्वादश भाव का स्वामी होने से अशुभ ग्रह की श्रेणी में आ जायेगा। लेकिन पराशर ज्योतिष सिद्धांतो के अनुसार द्वादश भाव का स्वामी अपनी दूसरी राशि का फल देता है।इसलिए इस लग्न के लिए शनि शुभता ही ज्यादा देगा। इसका नग नीलम आजीवन हीरे के साथ धारण करना चाहिए।
अगर शनि लग्न में, द्वितीय, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, व एकादश स्थान में स्थित हो तो शनि अपनी दशा या अन्तरदशा में अच्छा फल देगा।

लेकिन शनि तृतीय, छठे, सप्तम, अष्टम व द्वादश में स्थित होने पर धन के लिए अच्छा नहीं माना जायेगा।
अगर शनि 3, 6, 7, 8, 12वें स्थान में पाप प्रभाव में हो और ज्यादा पीडित हो तो इस नग के धारण से आयु व स्वास्थ्य में वृद्धि अवश्य होगी।

लाभ

शनि यहां लग्नेश और द्वादशेश बनता है परन्तु मुख्य फल लग्न का ही करेगा क्योकि दूसरी मूल त्रिकोण राशि लग्न में होती है। अगर नीलम धारण किया जाए तो स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा व नेत्र रोगो कों दूर करेगा, व्यय को कम करेगा, स्नायु में बल देगा। टांगो तथा पांवो को भी बल देगा। पुत्र की आयु तथा भाग्य में वृद्धि करेगा। इसलिए कुम्भ लग्न वालों को हम यही राय देंगे कि आप हीरे के नीलम धारण करें तो आपकों आशातीत सफलता मिलेगी।

मीन लग्न

शनि मीन लग्न वालों के लिए लाभेश व व्ययेश बनता है। इसलिए इस लग्न वालों के लिए एक अशुभ ग्रह माना जाता है। इसके अतिरिक्त शक्ति लग्न, चतुर्थ, पंचम, नवम, दशम, व एकादश में स्वराशि का स्थित हो तो शनि की महादशा या अन्तर्दशा में धन, व्यवसाय, व्यापार, स्वास्थ्य, लाभ में वृद्धि होगी।

अगर शनि, द्वितीय, तृतीय, छठे, अष्टम, द्वादश में स्थित हो तो नीलम धारण करने से धन व लाभ का सत्यानाश होगा।
अगर शनि लाभ स्थान में स्वराशि में स्थित हो तो ऐसा नीलम धारण से अत्यधिक लाभ होगा। अगर 3, 6, 8, 12 में स्थित शनि वालों को हम नीलम धारण की राय नहीं देगे, अगर 3, 6, 8, 12 में बैठकर रोग दे रहा हो तो आप नीलम धारण कर सकते है, लाभ प्राप्त होगा।

लाभ
शनि एकादश और द्वादश भावों का स्वामी बनता है। बलान्वित शनि लाभ में अत्यधिक वृद्धि करेगा। बड़ी बहन व भाईयों के धन, मान, सम्मान, आयु व स्वास्थ्य में वृद्धि करेगा। नैत्र रोगों मे लाभ देगा।स्नायु रोग को ठीक करेगा। टांगो में घुटनों में बनने वाले गठिया, वायु के रोगो में कमी करेगा। अगर आपको शनि की दशा या अन्तर्दशा में आपको लगता है कि टांगों में रोग की सम्भावना दिखाई देती है तो नीलम तुरन्त धारण करें। आपको लाभ अवश्य मिलेगा।

धारण विधि

नीलम को शनिवार के दिन खरीदे तथा शनिवार को ही अंगूठी में जड़वाकर पूजा या प्राण प्रतिष्ठा कराने के बाद ही धारण करें।
अगर आपने नीलम को मंत्रों के जापों से प्राण-प्रतिष्ठा नही की तो यह पत्थर के समान ही रहेगा, उसका ज्यादा लाभ आपकों नही मिलेगा। नीलम को मध्यमा अंगुली में शनिवार को सूर्य अस्त होने से दो घंटे पहले कच्चे दूध या गंगाजल में शुध्द करके धारण करना चाहिए। नीलम का वनज हमारी खोज के अनुसार आप अपने वनज के हिसाब से धारण करे। 10 किलो वजर पर आप 1 रत्ती का नीलम धारण करे। जैसे आपका वनज अगर 50 किलो है तो सवा पांच रत्ती का तथा आपका वनज 80 किलो है तो सवा आठ रत्ती और आपका वजन 100 किलो है तो सवा दश रत्ती का नग धारण करें।

शनि की प्राण प्रतिष्ठा का वैदिक मंत्र

ऊॅं शं शनैश्चराय नमः (23000)

इस मंत्र को 108 मनके की माला लेकर शनिवार से शुरू करके शनिवार को ही सात दिन में सभी मंत्रों को एक नियमित तरीके (रोजाना समान माला कम ज्यादा न करें) से करना चाहिए। परन्तु नीलम के साथ, माणिक्य, पुखराज, मूंगा, या मोती धारण न करें।
अगर आप बिना सलाह के नीलम धारण करते है तथा नीलम के साथ अगर उसका कोई शत्रु ग्रह का नग धारण करते है तो अगर कोई अनहोनी घटना होती है तो उसकी जिम्मेवारी लेखक की नही होगी।