संसार में भूत-प्रेतादि आत्माओं के ’’अस्तित्व’’
भूत-प्रेतादि के आत्माओं के ’’अस्तित्व’’ को संसार के सभी समाज और धर्मों में माना गया है। मानव जब मृत्यु को प्राप्त होता है तो सहज ही यह प्रश्न उठता है कि उसमें जो ’’शक्ति’’ अब तक कार्यरत थी, वह कहाॅ चली गयी ? इसी शक्ति को ’’आत्मा’’ माना गया है और यह ’’अजर-अमर’’ मानी गयी है। इसी कारण मृत्यु के उपरान्त भी मनुष्य का अस्तित्व माना गया है और इसी आधार पर मृत्यु के उपरांत मनुष्य की कल्पना भूत – प्रेतादि के रूप् में की गयी है।
शास्त्रों में वर्णन है कि असमय हुई मृत्यु से आत्मा अतृप्त रह जाती है और भूत-प्रेत का रूप धारण कर विचरण करती है।ऐसी ही कुछ पितरों के ’’अंतिम संस्कार’’ के साथ भी है। ’’गरूण पुराण में’’ वर्णन है कि ’’पूर्ण धार्मिक रीति-रिवाजों’’ से यदि अंतिम संस्कार न किया जाय तो ’’प्रेत-योनि’’ को प्राप्त होता है। भूत-प्रेतों से सम्बन्धित घटनाएं प्रायः सामने आती रहती है और न केवल भारत में वरन विश्व के विभिन्न देशों में भी उन पर हलचल मचती रहती है। यह घटनाएं अपनी ’’सत्यता’’ के कारण सदैव विज्ञान को आश्चर्य-चकित करती रहती हैं। इसी कारण से प्रेतत्व का आभास होता रहता है। प्राचीन काल से ही भूतों-प्रेतों का वर्णन चला आ रहा है।
कुछ मनुष्यों प रवह स्वयं सवार हो जातेे है। अर्थात् उनके शरीर व मन पर अपना अधिकार कर लेते है और तब ऐसे शिकार हो गए व्यक्ति पर किसी भी प्रकार का कोई भी इलाज अपना प्रभाव नही दिखलाता है।
कुछ अलौकिक घटनाएॅ भी प्रेत का अस्तित्व बतलाती है। अनायास पत्थर वर्षा, पत्थर कहाॅ से जा रहे हैं, इसका कुछ भी पता न चलना । घर का सामान अपने आप इधर-उधर फेंक दिया जाना अथवा टंगे-टंगे या रखें-रखे कपड़ो में आग लग जाना आदि घटनाएॅ इसका प्रमाण हैं।