वार्षिक परीक्षाओं की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है। ऐसे में विद्यार्थी अपने अध्ययन कक्ष को वास्तु अनुरूप बनाकर अच्छी सफलता हासिल कर सकते हैं। वास्तु नियम सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते हैं और पढ़ाई में रुचि को बढ़ावा देते हैं।
जीवन को सफल बनाने की दिशा में शिक्षा ही एक उच्च सोपान है, जो जीवन में अंधकार के बंधनों से मुक्ति दिलाने का सामथ्र्य रखती है। शिक्षा के बल पर ही मानव ने आकाश की ऊंचाइयों, समुद्र की गहराइयों, भू-गर्भ और ब्रहमांड में छिपे कई रहस्यों को खोज निकाला है। शिक्षा की अनिवार्यता प्राचीन ग्रंथों में भी मिलती हैं, जिनमें शिक्षा पर जोर देते हुए कहा गया है – माता बैरी पिता शत्रु येन बालों न पाठित:। न शोभते सभा मध्ये हंस मध्ये बको यथा।। अर्थात ऐसे माता-पिता बच्चों के शत्रु के समान हैं, जो उन्हें शिक्षित नहीं करते और वे विद्वानों के मध्य कभी सुशोभित नहीं होते।
शैक्षिक सफलता अध्ययन कक्ष की बनावट पर भी निर्भर करती है। वास्तु ऊर्जा भवन की आत्मा है, जिसके सहारे भवन में रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति का जीवन संवर उठता है चाहे वह अध्ययन का क्षेत्र हो या कोई अन्य। कई होनहार विद्यार्थी मेहनत के बाद भी अपेक्षित फल नहीं प्राप्त कर पाते तथा फेल होने के भय से आत्महत्या जैसे कदम उठाने लगते हैं।
ऐसे मामलों मे कहीं न कहीं नकारात्मक ऊर्जा का प्रभाव देखा जाता है, जिससे विद्यार्थियों के सामने कई विकट समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं जैसे-पढ़ने में रुचि न होना, मन का उलझना, अकारण चिंता, तनाव, असफलता का भय, आत्मग्लानि, मंद बुद्धि, स्मरण शक्ति का अभाव आदि। ऐसे में वास्तु नियमों के अनुरूप सुसज्जित अध्ययन कक्ष में सकारात्मक ऊर्जा की बयार बहती रहती है, जिससे विद्यार्थियों को अच्छी सफलता मिलती है।
सकारात्मक ऊर्जा के नियम :—-
- उत्तर-पूर्व या पूर्व में अध्ययन कक्ष शुभ, प्रेरणाप्रद व पश्चिम में अशुभ और तनाव युक्त रहेगा।
- अध्ययन कक्ष के दरवाजे उत्तर-पूर्व में ही ज्यादा उत्तम माने गए हैं। दक्षिण-पूर्व, दक्षिण-पश्चिम या उत्तर-पश्चिम दिशा में दरवाजे न रखें। इससे संदेह या भ्रम उत्पन्न होते हैं।
- पढ़ने की मेज चौकोर होनी चाहिए, जो अध्ययन शक्ति व एकाग्रता को बढ़ाती है। दो छोटे-बड़े पाएं, मोटे, टेढ़े व तिकोनी व कटावदार मेज का प्रयोग न करें।
- मेज को दरवाजे या दीवार से न सटाएं। दीवार से मेज का फासला कम से कम चौथाई फुट जरूरी है। इससे विषय याद रहेगा और पढ़ाई में रुचि बढ़ेगी। लाइट के नीचे या उसकी छाया में मेज सेट न करें, इससे अध्ययन प्रभावित होगा।
- मेज के ऊपर अनावश्यक किताबें न रखें। लैंप को मेज के दक्षिणी कोने में रखें।
- उत्तर-पूर्व में मां सरस्वती, गणोशजी की प्रतिमा और हरे रंग की चित्राकृतियां लगाएं। अध्ययन कक्ष में शांति और सकारात्मक वातावरण होना चाहिए। शोरगुल आदि बिल्कुल भी न हो।
- स्मरण व निर्णय शक्ति के लिए दक्षिण में मेज सेट कर उत्तर या पूर्व की ओर मुंह करके अध्ययन करें। उत्तर-पूर्व दिशा विद्यार्थी को योग्य बनाने में सहायक होती है।
- ट्यूशन के दौरान विद्यार्थी का मुंह पूर्व दिशा में हो। इससे आपसी तालमेल व रुचि बनी रहेगी।
- अध्ययन कक्ष में भारी किताबें, फाइलें और सोफे को दक्षिण या पश्चिम में रखें। कंप्यूटर, म्यूजिक सिस्टम को दक्षिण-पूर्व दिशा में रखें। अध्ययन कक्ष में टीवी कदापि न रखें।
- अध्ययन कक्ष के मध्य भाग को साफ व खाली रखें, जिससे ऊर्जा का संचार होता रहेगा।
- जिनका मन उचटता हो, उन्हें बगुले का चित्र लगाना चाहिए, जो ध्यान की मुद्रा में हो।
- लक्ष्य प्राप्ति हेतु एकलव्य या अजरुन की चित्राकृतियां लगानी चाहिए।
- मेज पर सफेद रंग की चादर बिछाएं। विद्या की देवी मां सरस्वती को प्रणाम कर अध्ययन शुरू करें। जिन विद्यार्थियों को अधिक नींद आती हो, उन्हें श्वान का चित्र लगाना चाहिए।
- दरवाजे के सामने या पीठ करके न बैठें।
- बीम के नीचे बैठकर न पढ़ें। अध्ययन कक्ष की दीवारों के रंग गहरे नहीं होने चाहिए। हरे, क्रीम, सफेद व हल्के गुलाबी रंग स्मरण शक्ति बढ़ाते हैं व एकाग्रता प्रदान करते हैं।
- अध्ययन कक्ष के पर्दे भी हल्के हरे रंग, विशेषकर हल्के पीले रंग के उत्तम माने जाते हैं।
- बिस्तर पर बैठकर न पढ़ें। कमरे में किताबों या अन्य वस्तुओं को अव्यवस्थित नहीं होना चाहिए।
- रात को सोते समय विद्यार्थी पूर्व की तरफ सिर करके सोएं। पूर्वी दीवारों पर उगते हुए सूर्य की फोटो लगाना उत्तम है।
- बेड के सामने वाली दीवार पर हरियाली वाली फोटो उत्तम मानी गई है।
उक्त वास्तु नियमों को अपनाकर प्रतिभाशाली व प्रखर बुद्धि वाले विद्यार्थी तैयार किए जा सकते हैं। विद्यार्थी अपने अध्ययन कक्ष को वास्तु अनुकूल बनाकर सफलता के सर्वोच्च शिखर को छूने का गौरव हासिल कर सकते हैं।
वास्तु दिलाएगा एक्जाम में सफलता
वास्तु और पढ़ाई का संबंध :::——-
कभी आपने सोचा है बच्चे की पढ़ाई का संबंध घर की संरचना से भी हो सकता है। विद्यार्थी किस दिशा में और कैसे बैठकर पढ़ रहा है इसका भी प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ सकता है। आप समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं वास्तुशास्त्र की। वास्तु विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि वास्तु का ध्यान रखा जाए तो निश्चित ही पढ़ाई पर असर पड़ेगा।
कई बार ऐसा होता है कि कई घंटे पढ़ने के बाद भी विषय न तो याद होता है और न ही समझ में आता है। कुछ विद्यार्थियों का तो पढ़ने में मन ही नहीं लगता। माता-पिता परेशान रहते हैं कि उनका बच्चा पढ़ता नहीं है। कई बार तो डॉक्टर्स के पास भी ले जाया जाता है कि उसकी याददाश्त बढ़ाने की कोई दवा दे दी जाए जिससे बच्चे को याद हो सके।
जिस प्रकार मानने वाले ज्योतिष को मानते हैं और न मानने वाले नहीं मानते। ठीक उसी प्रकार वास्तु पर भी विश्वास और अविश्वास करने वाले लोग मिलते हैं। लेकिन परीक्षा के दिनों को देखते हुए अच्छा होगा कि पढ़ाई करने के लिए वास्तु के अनुसार ही व्यवस्था की जाए। इससे कुछ हानि तो होगी नहीं बल्कि जल्द ही अच्छे परिणाम सामने आएँगे।
थोड़ी-सी सावधानी जरूरी :– बोर्ड परीक्षाओं के साथ-साथ बाकी क्लासेस के एग्जाम भी शुरू हो गए हैं। इस समय हर घर में पढ़ाई का ही माहौल है। इतनी जल्दी घर की संरचना बदलना संभव तो नहीं है लेकिन बच्चे के पढ़ने के कमरे की दिशा बदली जा सकती है। पढ़ने के लिए पूर्व-पश्चिम दिशा से बना कोण ईशान कोण ही महत्वपूर्ण होता है। यदि बच्चा इस दिशा में बैठकर पढ़ता है तो उसकी एकाग्रता भी बढ़ेगी और उसे सब आसानी से याद हो जाएगा।
आग्नेय और वायु कोण से बचें :- वास्तु विशेषज्ञ के अनुसार जिस कमरे में बच्चा पढ़ता है उसे आग्नेय यानी पूर्व और दक्षिण एवं वायु अर्थात् उत्तर व पश्चिम दिशा में बिलकुल भी नहीं होना चाहिए। आग्नेय कोण में होने से बच्चा चिड़चिड़ा होता है और वायु कोण में पढ़ने से
सामने न हो दीवार :- बच्चा जहाँ पढ़ता है उससे पाँच-छः फीट की दूरी तक कोई दीवार नहीं होना चाहिए। दीवार की जगह खिड़की या खुला हुआ भाग हो तो अच्छा है। इसके साथ ही पढ़ने के कमरे के साथ बैग, कम्पास या हरे रंग का पेन हो तो बच्चे में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है और बच्चे का पढ़ाई में मन लगता है। बुद्धि के विकास के लिए हरा रंग बहुत शुभ माना गया है।
बंद न हो घर की पूर्व दिशा :– वास्तु के मुताबिक पूर्व दिशा का घर की सुख-समृद्धि और अध्ययन-अध्यापन से विशेष संबंध है। अतः प्रयास करना चाहिए कि घर का दरवाजा पूर्व दिशा की ओर ही हो। जहाँ तक हो पूर्व दिशा की तरफ कोई वजनदार वस्तु न रखें और पूर्व दिशा खुली ही रहे। ऐसा होने से घर में समृद्धि तो आती ही है साथ ही बच्चों का पढ़ाई में मन लगता है।
दसवाँ घर और आपका करियर –दशम स्थान में बारह राशियों का फल-
किसी भी जातक की कुंडली में चार केंद्र स्थान प्रथम, चतुर्थ, सप्तम व दशम भाव होता है। दशम भाव कर्म भाव भी कहलाता है। अतः जातक के जीवन में इसका विशेष प्रभाव होता है। कुंडली में दशम घर से कर्म, आत्मविश्वास, आजीविका, करियर, राज्य प्राप्ति, कीर्ति, व्यापार, पिता का सुख, गोद लिए पुत्र का विचार, विदेश यात्रा आदि का विचार किया जाता है। कहा जा सकता है कि दशम भाव किसी के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।परंतु आजीविका की अच्छी स्थिति जानने के लिए मुख्यतः चंद्रमा, गुरु-सूर्य व शनि की स्थिति का अवलोकन भी करना चाहिए। यदि दशम भाव व भाग्य भाव मजबूत है तो निश्चित रूप से अच्छा करियर होता है। साथ ही आपका भविष्य सुनहरा होता है।
मेषः यदि दसवें स्थान में मेष राशि हो तो जातक घूमने-फिरने का शौकीन, दौड़ने का शौक रखने वाला, चाल कुछ टेढ़ी हुआ करती है। यदि विवाह योग कुंडली में न हो तो भी वह सुख भोगता है। नम्रता से हीन, चुगलखोर, क्रोधी होता है और शीघ्र ही लोगों का अप्रिय बन जाता है। ऐसा जातक कई कार्यों को एक साथ शुरू कर देता है। यदि कुंडली में मंगल शुभ हो तो निश्चित ही करियर बहुत अच्छा, धन, पद व अधिकार प्राप्ति होती है। माता-पिता, गुरुजनों, मित्रों व पत्नी से सत्य व सौम्य व आदर का व्यवहार करना चाहिए।
वृषभ: कुंडली में दशम घर में वृषभ राशि होने से जातक पिता का प्यार पाने वाला, वाली, स्नेही, विनम्र, धनी, व्यापार में कुशल, बड़े लोगों से मित्रता करने वाला, आत्मविश्वासी और राजपुरुषों से कार्य लेने वाला होता है। यदि शुक्र शुभ अंशों में बलवान हो तो जातक अच्छा व्यापारी व मैनेजर बन सकता है।
मिथुन : ऐसा जातक कर्म को ही प्रधान मानता है। समाज का हितैषी, मन्दिर निर्माण करने वाला, दुर्गा जी का भक्त, देवी दर्शन करने वाला, भगवान को मानने वाला, व्यापार या कृषि कर्म से आजीविका चलाने वाला, बैंक, बीमा कपंनी, कोषाध्यक्ष, अध्यापक की नौकरी करने वाला होता है।
कर्क : यदि कुंडली के दसवें घर में कर्क राशि हो तो जातक कई सगुणों से युक्त, यदि चतुर्थ चन्द्रमा हो तो राजनीति में रूचि रखने वाला व राज्य सत्ता प्राप्त करके समाज की भलाई करने वाला, पापों से डरने वाला, स्नेहवान, अन्याय के विरुद्ध लड़ने वाला होता है। वह आत्मविश्वासी
सिंहः ऐसा जातक अहंकार से घिरा होता है। यदि अहंकार को त्याग दे तो जीवन को जगमगा सकते हैं। संर्कीण विचारधारा के कारण कभी-कभी अपयश के पात्र होते हैं। यदि गुरु, शनि, सूर्य, मगंल, चंद्रमा अति शुभ हो तो जातक पद, प्रतिष्ठा प्राप्त करता है। पिता धनी होता है, बहुत बड़े उद्योग स्थापित करता है।
कन्याः वाकपटुता के कारण लोकप्रिय प्रोफेसर, दुखी व्यक्तियों की सहायता करने वाला, अपने प्राणों को संकट में डालकर दूसरों की रक्षा में तत्पर, स्वाभिमानी होता है। बुध बलवान होने से राज्य में सम्मान होता है। यदि गुरु भी शुभ हो तो जातक अच्छा पद, प्रतिष्ठा प्राप्त जरूर प्राप्त करता है।
तुलाः दशम भाव में तुला राशि हो तो जातक मानव-भाग की भलाई में लगा रहता है। धर्म प्रचारक, धर्म के गूढ़ मर्म को समझने वाला आदर्श व्यक्ति होता है। नौकरी की बजाय व्यापार हितकारी व पसंदीदा होता है। युवावस्था में ही ऐसा जातक अपनी कार्यक्षमता कौशल के बल पर पूर्णतया स्थापित हो जाता है।
वृश्चिकः सौम्य व्यवहार व बुद्धि कौशल के बल पर परिस्थितियों को अनुकूल बनाना इन्हें अच्छी तरह आता है। धार्मिक व सामाजिक कार्यों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं। यदि मंगल बलवान हो या लग्नेश शनि स्वयं दसवे घर में हो तो जातक धनी होता है। खेलकूद, राजनीति, पुलिस अधिकारी होता है। इसकी सूर्य, गुरु की स्थिति भी अच्छी रहती है।
धनुः यदि बृहस्पति उच्च का हो या नवांश, दशमांश कुण्डली में शुभ हो तो जातक धनी भी हो सकता है। पिता की सेवा करने वाला, सुंदर वस्तुओं को एकत्र करने वाला, उपकारी होता है। व्यापार में विशेष उन्नति प्राप्त करता है।
मकरः कर्म हो ही धर्म समझने वाला, स्वार्थी, मानसिक शक्ति वाला, समयानुकूल कार्य करने वाला, दया से हीन होता है। जीवन के मध्यकाल में सुखी होता है। ऐसा जातक खोजी, आविष्कारक होता है और अपनी खोज से लोगों को आश्चर्यचकित कर देता है। इसका काम हटकर होता है।
कुंभ : यदि दसवे घर में कुंभ राशि हो तो जातक कूटनीतिज्ञ, राजनीतिज्ञ विरोधियों से भी काम निकालने वाला, आस्तिक होता है। आर्थिक स्थिति अच्छी होती है। शनि की स्थिति अच्छी होने पर खूब धन, पद प्रतिष्ठा मिलती है। पिता से संबंध अच्छे नहीं रहते। नौकरी करते हैं यदि कुण्डली में शुभ योग हो तो शानदार प्रगति करते हैं।
मीन : मीन राशि दशम में होने से जातक गुरु आशा पालन करने वाला, गौ, ब्राह्मण व देव उपासक होता है। जल से संबंधित कार्यों से जीविका चलाने वाला, सम्मानित होता है। यदि गुरु बलवान हो तो राज्य पद, धन, आयु का दाता होता है।
कुंडली के हर भाव में छुपा है राज ::–
ज्योतिष में मान्य बारह राशियों के आधार पर जन्मकुंडली में बारह भावों की रचना की गई है। प्रत्येक भाव, मनुष्य जीवन की विविध अव्यवस्थाओं, विविध घटनाओं को दर्शाता है। आइए इनके बारे में विस्तार से जानें।
1. प्रथम भाव : यह लग्न भी कहलाता है। इस स्थान से व्यक्ति की शरीर यष्टि, वात-पित्त-कफ प्रकृति, त्वचा का रंग, यश-अपयश, पूर्वज, सुख-दुख, आत्मविश्वास, अहंकार, मानसिकता आदि को जाना जाता है।
2. द्वितीय भाव : इसे धन भाव भी कहते हैं। इससे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति, परिवार का सुख, घर की स्थिति, दाईं आँख, वाणी, जीभ, खाना-पीना, प्रारंभिक शिक्षा, संपत्ति आदि के बारे में जाना जाता है।
3. तृतीय भाव : इसे पराक्रम का सहज भाव भी कहते हैं। इससे जातक के बल, छोटे भाई-बहन, नौकर-चाकर, पराक्रम, धैर्य, कंठ-फेफड़े, श्रवण स्थान, कंधे-हाथ आदि का विचार किया जाता है।
4. चतुर्थ स्थान : इसे मातृ स्थान भी कहते हैं। इससे मातृसुख, गृह सौख्य, वाहन सौख्य, बाग-बगीचा, जमीन-जायदाद, मित्र, छाती पेट के रोग, मानसिक स्थिति आदि का विचार किया जाता है।
5. पंचम भाव : इसे सुत भाव भी कहते हैं। इससे संतति, बच्चों से मिलने वाला सुख, विद्या बुद्धि, उच्च शिक्षा, विनय-देशभक्ति, पाचन शक्ति, कला, रहस्य शास्त्रों की रुचि, अचानक धन-लाभ, प्रेम संबंधों में यश, नौकरी परिवर्तन आदि का विचार किया जाता है।
6. छठा भाव : इसे शत्रु या रोग स्थान भी कहते हैं। इससे जातक के शत्रु, रोग, भय, तनाव, कलह, मुकदमे, मामा-मौसी का सुख, नौकर-चाकर, जननांगों के रोग आदि का विचार किया जाता है।
7.सातवाँ भाव : विवाह सुख, शैय्या सुख, जीवनसाथी का स्वभाव, व्यापार, पार्टनरशिप, दूर के प्रवास योग, कोर्ट कचहरी प्रकरण में यश-अपयश आदि का ज्ञान इस भाव से होता है। इसे विवाह स्थान कहते हैं।
8 .आठवाँ भाव : इस भाव को मृत्यु स्थान कहते हैं। इससे आयु निर्धारण, दु:ख, आर्थिक स्थिति, मानसिक क्लेश, जननांगों के विकार, अचानक आने वाले संकटों का पता चलता है।
9 .नवाँ भाव : इसे भाग्य स्थान कहते हैं। यह भाव आध्यात्मिक प्रगति, भाग्योदय, बुद्धिमत्ता, गुरु, परदेश गमन, ग्रंथपुस्तक लेखन, तीर्थ यात्रा, भाई की पत्नी, दूसरा विवाह आदि के बारे में बताता है।
10. दसवाँ भाव : इसे कर्म स्थान कहते हैं। इससे पद-प्रतिष्ठा, बॉस, सामाजिक सम्मान, कार्य क्षमता, पितृ सुख, नौकरी व्यवसाय, शासन से लाभ, घुटनों का दर्द, सासू माँ आदि के बारे में पता चलता है।
11. ग्यारहवाँ भाव : इसे लाभ भाव कहते हैं। इससे मित्र, बहू-जँवाई, भेंट-उपहार, लाभ, आय के तरीके, पिंडली के बारे में जाना जाता है।
12. बारहवाँ भाव : इसे व्यय स्थान भी कहते हैं। इससे कर्ज, नुकसान, परदेश गमन, संन्यास, अनैतिक आचरण, व्यसन, गुप्त शत्रु, शैय्या सुख, आत्महत्या, जेल यात्रा, मुकदमेबाजी का विचार किया जाता है।