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जानिए हीरे का इतिहास,क्‍यों है दुनिया में महसूर ?

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हीरे का इतिहास

रत्नों का प्रयोग सर्वप्रथम कब आरम्भ हुआ यह बात तो ठीक प्रकार से कोई नही बता सकता बल्कि यह बात बताना बहुत ही कठिन है। फिर भी आज विद्वानों ने इसकी खोज की है कि संसार के अत्यन्त प्राचीन माने जाने वाले ग्रंथ ’ऋग्वेद’ में रत्न शब्द का प्रयोग देखने को मिलता है।यह सर्वमान्य है कि मनुष्य प्राकृतिक रूप से ही सौन्दर्य प्रेमी रहा है।

जवह धीरे-धीरे सभ्यता की ओर बढ़ रहा था तब भी वह तरह-तरह की वस्तुओं से अपने शरीर को सजाता-संवारता रहता था, जैसे- हाथी दांत, पक्षियों के पंख अनेको प्रकार के पत्थर आदि। जो भी वस्तु उसे अपनी ओर आकर्षित करती थी उसे वह अपने शरीर की शोभा की वृद्धि के लिये प्रयोग करने लगता था। इस बात को आज भी देखा जा सकता है कि छोटे-छोटे बच्चे कांच की चूड़ियों, सीपियों तथा तरह-तरह के पत्थरों को एकत्रित करके प्रसन्न होते है। इससे आशा की जा सकती है कि इसी प्रवृत्ति ने रत्नो का आविष्कार किया होगा।

कुछ लोगों का मानना है कि हीरा नाम का पत्थर सबसे पहले अफ्रीका और ब्राजील में मिला परन्तु यह अपने आप में सत्य है कि अफ्रीका और ब्राजील में हीरों के मिलने से पहले भारत इस क्षेत्र मे अपना एक विशिष्ट स्थान रखता था। यह भी सत्य है कि हीरों को आभूषण में प्रयोग करने के लिये तराशने का तरीका भी सर्वप्रथम भारतीयो ने ही आविष्कृत किया था। वास्तव में माना जाता है कि 2800 वर्ष ईसा पूर्व ही से भारतीय इस कला में निपुण हो चुके थे।