इसे मात्र ग्रंथ नहीं कहा जा सकता है, यह महापुरुषों द्वारा सिखाई हुई बातें है जिससे हम जीने की कला को सीख सकते है। आज के समय में बहुत कम लोगों को इस ग्रंथ का ज्ञान है और ज्यादातर व्यक्ति धर्म और सत्य की राह पर चलना भूल चुके हैं। ऐसे में इस ग्रंथ को पढ़ने से हमें सही मार्गदर्शन होता है। इसे सभी वेदो का सार माना जाता है जोकि मानवजाति को बिना फल की लालसा किए कर्म करने का संदेश देता है।
श्रीमद भगवत गीता की विशेष जानकारी
श्रीमद भगवत गीता को आज से सात हजार वर्ष पूर्व श्री कृष्ण द्वारा अर्जुन को सुनाया गया था। महाभारत के युद्ध में जब कुंती पुत्र अर्जुन अपने कर्तव्य से भटक गए थे, उस समय भगवान श्री कृष्ण ने इस श्रीमद भगवत गीता का दिव्य ज्ञान अर्जुन को दिया था। अर्जुन के मन विचलित होने का कारण युद्ध प्रतिद्वंद्वी थे जोकि उसके ही परिवार के सदस्य थे। धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि भगवत गीता के श्लोकों को भगवान श्री कृष्ण ने लगभग 45 मिनट में बोला व अर्जुन को समझाया था। जिसके बाद से अर्जुन एक बार भी अपने कर्तव्य से नहीं चूके। इस महाग्रंथ की रचना महर्षि वेदव्यास द्वारा की गई थी।
कहा जाता है कि अर्जुन से पहले सूर्यदेव को गीता का ज्ञान प्राप्त हुआ था। रविवार के दिन श्रीमद भगवत गीता को विष्णु अवतार श्री कृष्ण द्वारा सूर्यदेव के समक्ष सुनाया गया था और वह दिन एकादशी का दिन था। इसलिए हिंदु धर्म में एकादशी का बहुत महत्व है। युद्ध से पहले अर्जुन से कहा गया था कि तेरा अधिकार मात्र कर्म करने पर ही है, इसलिए उसके फल के बारे में सोचना व्यर्थ है। इसलिए फल की आशा करते हुए कर्म न कर और न ही फल को सोचते हुए कर्म कर। बिना फल की इच्छा रखते हुए अपना कर्म पूरी निष्ठा से कर।
भगवान ने मात्र अर्जुन के लिए ही नहीं किंतु आने वाले पीढ़ी को धर्म का ज्ञान देने के लिए इस श्रीमद भगवत गीता को कहा था। द्वापर युग में कुरुक्षेत्र को पवित्र तीर्थ स्थान माना गया है क्योंकि कुरुक्षेत्र में ही गीता की प्रस्तुति हुई थी। त्रेता युग में पुष्कर को तीर्थ स्थान बोला गया है और कलियुग में गंगा को तीर्थ स्थान माना जाता है।
श्रीमद भगवत गीता को पढ़ने का उचित समय
इस महाग्रंथ की पूजा की जाती है और इसके पढ़ने मात्र से ही मन की शुद्धि हो जाती है। इससे मनुष्य के समस्त दोषों का नाश हो जाता है। इसे पढ़ने के साथ-साथ सुनने वाले के हृदय में भी भगवान श्री हरि वास कर जाते हैं। श्रीमद भगवत गीता में यह साफ-साफ कहा गया है कि इसे पढ़ने और सुनने के लिए दिनों से संबंधित कोई भी नियम नहीं है। भक्त इसे किसी भी दिन अपनी इच्छा अनुसार पढ़ सकते है।
आज के समय में प्रतिदिन के नियमों को बना कर उनका पालन करना बहुत कठिन हो गया है। सप्ताह में इसे एक बार पढ़ने के नियम को उत्तम माना गया है और इस नियम कों बांधे रखना भी सरल है। इसके अलावा भाद्रपद, आश्र्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, आषाढ़ और श्रावण मास में इस कथा को करना और पढ़ना ज्यादा अच्छा माना जाता है क्योंकि इस समय में शुभ मुहूर्त आरंभ हो जाता है।
बोलने वाली भगवत गीता को आप कही भी और किसी भी समय पढ़ व सुन सकते हैं। कमजोर नजर वाले लोग भी इसकी सहायता से श्रीमद भगवत गीता को बिना किसी की सहायता लिए सुन सकते हैं। आप साथ में ध्यान लगाते और पूजा का अन्य कार्य करते हुए भी इसको सुन सकते हैं। बोलने वाली श्रीमद भगवत गीता को जरूर घर में लाना चाहिए। इसको प्रयोग करना बहुत सरल है जिसे सीखकर इसे वो लोग भी प्रयोग कर सकते हैं जो पढ़ना लिखना नहीं जानते।
जानिए श्रीमद भगवत गीता के महत्व को
श्रीमद भगवत गीता में इस संसार का सच बताया गया है और इसे पढ़कर आत्मिक शांति मिलती है। इसमें कुल 18 अध्याय हैं और 700 श्लोक लिखें गए है जोकि संस्कृत भाषा में है। इन 700 श्लोक में 574 श्लोक भगवान श्री कृष्ण, 85 श्लोक अर्जुन, 40 श्लोक संजय और एक श्लोक धृतराष्ट्र द्वारा बोला गया है। लेकिन आज के समय में इसके महत्व को समझते हुए इसे कई भाषाओं में अनुवादित किया गया है। श्रीमद भगवत गीता को गीतोपनिषद के नाम से भी जाना जाता है।
जिस घर में इसे प्रतिदिन पढ़ा जाता है वहां से दरिद्रता, लोभ-क्रोध और दुखों का नाश हो जाता है। इसी के साथ रोज़गार और बुद्धि भी वृद्धि होती है और सुख समृद्धि बनी रहती है। इसलिए इसे पढ़कर और चिंतन करके इसका जीवन में आचरण करना चाहिए।