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संतानसुख में बाधा-कारण और ज्योतिषीय निवारण –

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पिता बनने की आकांक्षा हर व्यक्ति का स्वभावतः रहता है वहीं हर स्त्री के मन मे अलक्षित रूप से मातृत्व के लिए उत्सुकता विद्यमान होती है। यह प्रकृति का सहज रूप है, इसमें कोई अवरोध है तो इसका कारण क्या है और इसका विष्लेषण कई बार चिकित्सकीय परामर्ष द्वारा प्राप्त किया जाना संभव नहीं होता है किंतु ज्योतिषीय आकलन से इसका कारण जाना जा सकता है। चूॅकि ज्योतिष एक सूचना शास्त्र है जिसमें ग्रहों के माध्यम से एक विष्लेषणात्मक संकेत प्राप्त होता है अतः ग्रहों की स्थिति तथा दषाओं के आकलन से कारण जाना जा सकता है। संतान संबंधी ज्ञान कुंडली के पंचम भाव से जाना जाता है अतः पंचम स्थान का स्वामी, पंचमस्थ ग्रह और उनका स्वामीत्व तथा संतानकारक ग्रह बृहस्पति की स्थिति से संतान संबंधी बाधा या विलंब को ज्ञात किया जा सकता है। पंचमेष यदि 6, 8 या 12 भाव में हो तो संतानपक्ष से चिंता का द्योतक होता है। जिसमें संतान का ना होना, बार-बार गर्भपात से संतान की हानि, अल्पायु संतान या संतान होकर स्वास्थ्य या कैरियर की दृष्टि से कष्ट का पता लगाया जा सकता है। पंचम भाव में बृहस्पति हो तो भी उस स्थान की हानि होती है चूॅकि स्थानहानिकरो जीवः गुरू की अपनी स्थान पर हानि का कारक होता है अतः पंचम में गुरू संतान से संबंधी हानि दे सकता है। पंचम भाव पर मंगल की दृष्टि या राहु से आक्रांत होना भी संतान से संबंधित कष्ट देता है। संतान से संबंधित कष्ट से राहत हेतु संतान गोपाल का अनुष्ठान और मंगल का व्रत करना चाहिए।