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हिन्दू धर्म में माघ पूर्णिमा का महत्व

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हिन्दू धर्म में धार्मिक दृष्टि से माघ मास को विशेष स्थान प्राप्त है। भारतीय संवत्सर का ग्यारहवां चंद्रमास और दसवां सौरमास माघ कहलाता है।मघा नक्षत्र से युक्त होने के कारण इस महीने का नाम का माघ नाम पडा। ऐसी मान्यता है कि इस मास में शीतल जल में डुबकी लगाने वाले पापमुक्त होकर स्वर्ग लोक जाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि माघी पूर्णिमा पर स्वंय भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करतें है अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है | इसके सन्दर्भ में यह भी कहा जाता है कि इस तिथि में भगवान नारायण क्षीर सागर में विराजते हैं तथा गंगा जी क्षीर सागर का ही रूप है|
प्रयाग में प्रतिवर्ष माघ मेला लगता है। हजारों भक्त गंगा-यमुना के संगम स्थल पर माघ मास में पूरे तीस दिनों तक (पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक) कल्पवास करते है। ऐसी मान्यता है कि इस मास में जरूरतमंदों को सर्दी से बचने योग्य वस्तुओं, जैसे- ऊनी वस्त्र, कंबल और आग तापने के लिए लकडी आदि का दान करने से अनंत पुण्य फल की प्राप्ति होती है।इस मास की प्रत्येक तिथि पवित्र है..
यह उत्तर भारत में माघ महीने के समापन का प्रतीक हैं. ऐसी मान्यता है कि माघ पूर्णिमा के पावन अवसर पर महाकुंभ में स्नान करने वाले को मोक्ष की प्राप्ति होती है।इस दिन चन्द्रमा भी अपनी सोलह कलाओं से शोभायमान होते हैं। इस दिन पूर्ण चन्द्रमा अमृत वर्षा करते हैं जिनके अंश वृक्षों, नदियों, जलाशयों और वनस्पतियों पर पड़ते हैं। अत: इनमें आरोग्यदायक गुण उत्पन्न होते हैं। धार्मिक मान्यता है कि माघ पूर्णिमा में स्नान-दान करने से सूर्य और चन्द्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है। मकर राशि में सूर्य का प्रवेश और कर्क राशि में चंद्रमा का प्रवेश होने से माघी पूर्णिमा को पुण्य योग बनता है तथा सभी तीर्थों के राजा (देवता) पूरे माह प्रयाग तथा अन्य तीर्थों में विद्यमान रहने से अंतिम दिन को जप-तप व संयम द्वारा सात्विकता को प्राप्त किया जा सकता है। संगम में माघ पूर्णिमा का स्नान एक प्रमुख स्नान है। इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है जो पाप का शमन करता है।
निर्णय सिंधु में कहा गया है कि माघ मास के दौरान मनुष्य को कम से कम एक बार पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए। भले पूरे माह स्नान के योग न बन सकें लेकिन माघ पूर्णिमा के स्नान से स्वर्गलोक का उत्तराधिकारी बना जा सकता है। इस बात का उदाहरण इस श्लोक से मिलता है—–
॥ मासपर्यन्त स्नानासम्भवे तु त्रयहमेकाहं वा स्नायात्‌ ॥ –
अर्थात् जो लोग लंबे समय तक स्वर्गलोक का आनंद लेना चाहते हैं, उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य तीर्थ स्नान करना चाहिए।
हिंदू धर्म की मान्यताओं के अनुसार महाकुंभ में माघ पूर्णिमा का स्नान इसलिए भी अति महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि इस तिथि पर चंद्रमा अपने पूर्ण यौवन पर होता है। साधु-संतों का कहना है कि पूर्णिमा पर चंद्रमा की किरणें पूरी लौकिकता के साथ पृथ्वी पर पड़ती हैं। स्नान के बाद मानव शरीर पर उन किरणों के पड़ने से शांति की अनुभूति होती है और इसीलिए पूर्णिमा का स्नान महत्वपूर्ण है।माघ स्नान वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। माघ में ठंड खत्म होने की ओर रहती है तथा इसके साथ ही स्‍प्रिंग की शुरुआत होती है। ऋतु के बदलाव का स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर नहीं पड़े इसलिए प्रतिदिन सुबह स्नान करने से शरीर को मजबूती मिलती है।
ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। इसी प्रकार पुराणों में मान्यता है कि भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं.महाभारत में एक जगह इस बात का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इन दिनों में अनेक तीर्थों का समागम होता है। वहीं पद्मपुराण में कहा गया है कि अन्य मास में जप, तप और दान से भगवान विष्णु उतने प्रसन्न नहीं होते जितने कि वे माघ मास में स्नान करने से होते हैं। यही वजह है कि प्राचीन ग्रंथों में नारायण को पाने का आसान रास्ता माघ पूर्णिमा के पुण्य स्नान को बताया गया है।भृगु ऋषि के सुझाव पर व्याघ्रमुख वाले विद्याधर और गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इन्द्र भी माघ स्नान के सत्व द्वारा ही श्राप से मुक्त हुए थे। पद्म पुराण के अनुसार माघ-स्नान से मनुष्य के शरीर में स्थित उपाताप जलकर भस्म हो जाते हैं।
इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है. भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है, भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है. माघ पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए. माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना चाहिए तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना गया है.
मत्स्य पुराण के अनुसार-
पुराणं ब्रह्म वैवर्तं यो दद्यान्माघर्मासि च,
पौर्णमास्यां शुभदिने ब्रह्मलोके महीयते।
मत्स्य पुराण का कथन है कि माघ मास की पूर्णिमा में जो व्यक्ति ब्राह्मण को दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।यह त्यौहार बहुत हीं पवित्र त्यौहार माना जाता हैं.इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है. स्नान आदि से निवृत होकर भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है, गरीबो को भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक होता है.
माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा के नाम से भी संबोधित किया जाता है. माघशुक्ल पक्ष की अष्टमी भीमाष्टमी के नाम से प्रसिद्ध है। इस तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर अपने नश्वर शरीर का त्याग किया था। उन्हीं की पावन स्मृति में यह पर्व मनाया जाता है। माघी पूर्णिमा को एक मास का कल्पवास पूर्ण हो जाता है। इस दिन सत्यनारायण कथा और दान-पुण्य को अति फलदायी माना गया है।
माघ माह में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है. इस माह की प्रत्येक तीथि फलदायक मानी गई है. शास्त्रों के अनुसार माघ के महीने में किसी भी नदी के जल में स्नान को गंगा स्नान करने के समान माना गया है. माघ माह में स्नान का सबसे अधिक महत्व प्रयाग के संगम तीर्थ का होता है…इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से पाप एंव संताप का नाश होता है तथा मन एवं आत्मा को शुद्वता प्राप्त होती है. इस दिन किया गया महास्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है. इस समय “”ऊँ नमो भगवते नन्दपुत्राय ।। ऊँ नमो भगवते गोविन्दाय ।। ऊँ कृष्णाय गोविन्दाय नमो नम: ।। मंत्र ध्यान के बाद भगवान कृष्ण या विष्णु की आरती करें। प्रसाद बांटे और ग्रहण करें। पूजा, आरती में हुई गलती के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल, मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है.
माघ पूर्णिमा में प्रात: स्नान, यथाशक्ति दान तथा सहस्त्र नाम अथवा किसी स्तोत्र द्वारा भगवान विष्णु की आराधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है। निष्काम भाव से माघ-स्नान मोक्ष दिलाता है। माघ-स्नान से समस्त पाप-ताप-शाप नष्ट हो जाते हैं।
इस दिन सूर्योदय से पूर्व जल में भगवान का तेज रहता है जो पाप का शमन करता है। यह भी मान्यता है कि जो तारों के छुपने से पूर्व स्नान करते हैं, उन्हें उत्तम फल की प्राप्ति होती है। तारों के छुपने के बाद किन्तु सूर्योदय से पूर्व के स्नान से मध्यम फल मिलता है। किन्तु जो सूर्योदय के बाद स्नान करते हैं, वे उत्तम फल की प्राप्ति से वंचित रह जाते हैं। माघ मास को बत्तीसी पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं। पूर्णिमा को भगवान विष्णु की पूजा की जाती है जो सौभाग्य व पुत्र प्राप्ति के लिए होती है।
हिन्दू पंचांग के मुताबिक ग्यारहवें महीने यानी माघ में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व है। इस दिन को पुण्य योग भी कहा जाता है। इस स्नान के करने से सूर्य और चंद्रमा युक्त दोषों से मुक्ति मिलती है।
ऐसा माना जाता हैं जो व्यक्ति माघ पूर्णिमा के दिन गंगा स्नान करता हैं उसके सारे पाप धूल जाते हैं. इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से मनुष्य के समस्त पाप एंव संताप मिट जातें है.इसे मन एवं आत्मा को शुद्व करने वाला माना गया है. इस दिन लोग उपवास रखते हैं ,दान देते हैं. पितृ तर्पण भी माघ पूर्णिमा के दिन किया जाता हैं. माघ पूर्णिमा अल्लहाबाद में संगम पर आयोजित हैं. माघ पूर्णिमा का दिन मृत पुर्वजो के लिए पुण्य स्नान करने का आख़िरी दिन हैं.
इस दिन यदि रविवार, व्यतिपात योग और श्रवण नक्षत्र हो तो ‘अर्धोदय योग’ होता है जिसमें स्नान-दान का फल भी मेरू समान हो जाता है। माघ शुक्ल पंचमी को विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठïात्री देवी भगवती सरस्वती की पूजा होती है। ब्रह्मï वैवर्त पुराण के अनुसार इनका जन्म श्रीकृष्ण के कण्ठ से हुआ। ऋग्वेद में उनकी महिमा का गान हुआ है। अत: यह दिन उनके आविर्भाव दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसके बाद शुक्ल पक्ष की सप्तमी, अचला सप्तमी का व्रत आता है। इसका महात्म्य भगवान कृष्ण ने युधिष्ठिïर को बताया था कि इस दिन स्नान-दान, पितरों के तर्पण व सूर्य पूजा से तथा वस्त्रादि दान करने से व्यक्ति बैकुण्ठ में जाता है। इस व्रत को करने से वर्ष भर रविवार व्रत करने का पुण्य प्राप्त होता है। इसके बाद शुक्ल अष्टमी को भीमाष्टïमी के नाम से जाना जाता है। इसी तिथि को भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर प्राण-त्याग किया था। इस दिन उनके निमित्त स्नान-दान तथा माधव पूजा से सब पाप नष्टï होते हैं।
माघ पूर्णिमा के दिन गंगा ,यमुना,सरस्वती ,कावेरी, कृष्णा आदि नदियों के किनारे जबरदस्त पूजा की जाती हैं.अनेक पवित्र पर्वों के समन्वय की वजह से श्रद्धालुओं के लिए माघ मास को अति पुण्य फलदयी माना जाता है।
इस दिन करें यह विशेष उपाय—-शैव मत को मानने वाले व्यक्ति भगवान शंकर की पूजा करते हैं, उन्हें शिव को विशेष मंत्र से शहद स्नान कराना। शाम को स्नान के बाद सफेद वस्त्र पहन चौकी पर सफेद वस्त्र बिछाकर शिवलिंग को अक्षत से बने अष्टदल कमल पर स्थापित करें।शिवलिंग को एक पात्र में गंगा जल व दूध मिले पवित्र जल से स्नान कराएं।
इसके बाद शहद की धारा शिवलिंग पर नीचे लिखे मंत्र बोलते हुए पाप नाश व समृद्धि की कामना से करें –
“दिव्यै: पुष्पै: समुद्भूतं सर्वगुणसमन्वितम्। मधुरं मधुनामाढ्यं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम।।”
शहद स्नान के बाद शुद्ध जल से स्नान व शिव की पंचोपचार पूजा यानी चंदन, फूल, बिल्वपत्र व मिठाई का भोग लगाकर करें। धूप, दीप व कर्पूर से शिव आरती करें। जाने-अनजाने गलत कामों की क्षमा मांगे।