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माॅ दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए हैं। गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं। ये तीनों नेत्र ब्रम्हाण्ड के सदृष गोल हैं। इनके विद्युत के समान चमकीली किरणें निःसृत होती रहती हैं। इनकी नासिका के श्वास-प्रष्वास से अग्नि की भयंकर ज्वालाएॅ निकलती रहती हैं। इनका वाहन गर्दभ अर्थात् गदहा है। इनकी चार भुजाओं में से दाहिने ओर के उपर की भुजा में वरमुद्रा तथा नीचे की भुजा अभयमुद्रा में है। बायीं ओर की उपर की भुजा में लोहे का काॅटा और नीचे की भुजा में खड्ग है। इनका यह रूप अत्यंत भयानक है किंतु ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं अतः इनका एक नाम शुभंकरी भी है।
कालरात्रि के सातवें दिन पूजी जाने वाली इस देवी की साधना से साधक का मन ’सहस्त्रार चक्र’ में स्थित होता है। इनकी उपासना से दानव, दैत्य, भूत-प्रेत आदि भयभीत होकर भाग जाते हैं तथा अग्निभय, जलभय, जंतुभय, शत्रुभय, रात्रिभय आदि कभी नहीं होता। अतः कालरात्रि की साधना से साधक का मन भयरहित होता है। इनके स्मरण मात्र से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।