विद्यार्थियों के लिए परीक्षा का समय पास आ रहा है और परीक्षा पास आते ही विद्यार्थियों को उसका भय सताने लगता है। पढ़ाई में मन नहीं लगना, पाठ याद न होना, पुस्तक खुली होने पर भी मन का पढ़ाई में एकाग्रचित्त न होना, रात को देर तक नींद न आना या मध्य रात्रि में नींद उचट जाना आदि परीक्षा के भय के लक्षण हंै। परीक्षा पढ़ाई का केवल एक मापक है, यह विद्यार्थी के ज्ञान का आकलन मात्र है। व्यक्ति के जीवन में उतार चढ़ाव या लाभ-हानि इसके द्वारा निर्धारित...
काल सर्प योग राहु से केतु के मध्य अन्य सभी ग्रहों के आ जाने से बनता है। जब राहु से केतु के मध्य अन्य ग्रह होते हैं, तो उदित और जब केतु से राहु के मध्य होते हैं, तो अनुदित काल सर्प योग की रचना होती है। राहु जिस भाव में स्थित होता है उसी के अनुसार 12 प्रकार के काल सर्प योग बनते हैं। उनका फल भी उन्हीं भावों के अनुसार कहा गया है, जिसका विवेचन इस पत्रिका में विस्तार से किया गया है। काल सर्प योग को समझने...
संभाव्य वर एवं वधू के स्वभाव, मानसिक स्तर, पसन्द एवं नापसंद की परख जन्मकुण्डली में ग्रहों की स्थिति के विष्लेषण एवं दोनों की कुण्डलियों में मौजूद ग्रहों के आधार पर किया जाता है। यदि दोनों साथियों के गुणों में अधिकतम समानता है तो उनके बीच प्रेम, सौहार्द तथा एक-दूसरे के प्रति एवं परिवार के प्रति आकर्षण निश्चित है। यदि स्थिति इसके विपरीत है तो दोनों का दाम्पत्य संबंध तनावपूर्ण, दुःखी एवं समस्याग्रस्त होगा तथा ऐसी स्थिति में कालान्तर में सम्बन्धों में दरार पड़ना भी अवश्यंभावी हो जाता है। अतः हमेशा...
गणेश जी के मंत्र का स्मरण कर के यात्रा प्रारंभ करने से यात्रा निर्विघ्न एवं लाभप्रद होती है। शकुन विचार करना भी सफल यात्रा का रहस्य माना गया है। जब हम किसी भी यात्रा को प्रारंभ करते हैं, तो जो भी व्यक्ति, वस्तु, जीव हमारे सम्मुख होते हैं, वे शकुन कहलाते हैं, जैसे किसी स्त्री का दिखना, किसी का छींकना, जानवर दिखना आदि कई शुभाशुभ शकुन होते हैं। यात्रा में हाथी, घोड़ा, ब्राह्मण, जल से भरा हुआ बर्तन, दही, नेवला, पुत्रवती स्त्री, श्रृंगार किये हुए स्त्री, कन्या, सरसांे आदि शुभ...
ज्योतिष शास्त्र में हर दिन को एक अधिपति दिया गया है। जैसे- रविवार का सूर्य, सोमवार का चंद्र, मंगलवार का मंगल, बुधवार का बुध, बृहस्पतिवार का गुरु, शुक्रवार का शुक्र व शनिवार का शनि। इसी प्रकार दिन के खंडों को भी आठ भागों में विभाजित कर उनको अलग-अलग अधिष्ठाता दिये गये हैं। इन्हीं में से एक खंड का अधिष्ठाता राहु होता है। इसी खंड को राहुकाल की संज्ञा दी गई है। राहुकाल में किये गये काम या तो पूर्ण ही नहीं होते या निष्फल हो जाते हैं। इसीलिए राहुकाल में...