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द्वादशांश से अनिष्ट का सटीक निर्धारण

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने जब से इस संसार की रचना की है तभी से जीवन में प्रत्येक नश्वर आगमों को चाहे वे सजीव हों अथवा निर्जीव, उन्हें विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। जीवन की इस यात्रा में सबों को अच्छे एवं बुरे समय का स्वाद चखना पड़ता है तथा दोनों परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है। यदि हमारा अध्यात्म एवं पराविद्याओं में विश्वास है तो इनके अनुसार जन्म से मृत्युपर्यन्त मनुष्य के जीवन की हर घटना ग्रहों, नक्षत्रों एवं दशाओं आदि द्वारा पूर्णरूपेण निर्देशित होती है। इनके...
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व्यवहारिक उपाय

सभी ग्रह मानव पर अपना प्रभाव डालते हैं। हमारे पूर्व जन्मों के कृत्यों के अनुरूप ग्रह हमारी कुंडली के विभिन्न स्थानों में स्थित होकर अपना अच्छा या बुरा फल देते हैं। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने हेतु इन ग्रहों के बुरे प्रभाव को खत्म कर अच्छे प्रभावों की कामना करता है। इसके लिए विभिन्न यंत्र, मंत्र व तंत्रों का प्रयोग भी करता है। परंतु यदि मनुष्य कुछ साधारण उपाय करे तो नवग्रह शांत हो शुभ फलदायक हो जाते हैं। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि,...
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कुंडली में ग्रहण योग

सूर्य/चंद्रमा के राहु/ केतु के साथ होने से ग्रहण योग बनता है - इस योग में अगर सूर्य ग्रहण योग हो तो व्यक्ति में आत्म विश्वास की कमी रहती है और वह किसी के सामने आते ही अपनी पूर्ण योग्यता का परिचय नहीं दे पाता है उल्टा उसके प्रभाव में आ जाता है। कहने का मतलब कि सामने वाला व्यक्ति हमेशा ही हावी रहता है। चन्द्र ग्रहण होने से कितना भी घर में सुविधा हो मगर मन में हमेशा अशांति ही बनी रहती है कोई न कोई छोटी-छोटी बातों का...
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राहु-केतु की परम अशुभ फलदाई स्थिति

राहु-केतु कुंडली में एक दूसरे से 1800 की दूरी पर (ठीक विपरीत राशि में) स्थित होते हैं। अन्य पापी ग्रहों की तरह ये 3, 6, 11 भाव में शुभ फल देते हैं, और अन्य भावों में अपनी स्थिति व दृष्टि द्वारा उनके कारकत्व को हानि पहुंचाते हंै। यह सदैव वक्री गति से राशि चक्र में भ्रमण करते हैं। सातवीं दृष्टि के अतिरिक्त (बृहस्पति की तरह) यह अपनी स्थिति से पंचम और नवम् भाव पर पूर्ण दृष्टि डालते हैं। राहु-केतु के शुभाशुभ फल के बारे में ‘लघुपाराशरी’ ग्रंथ में बताया गया...
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शनि को कल्याणकारी बनाने के उपाय

शनि शुभ होने पर निम्न उपाय करें: - नीलम रत्न, चांदी की अंगूठी में बनवा कर, मध्यमा अंगुली में, शनिवार के दिन प्रातः पहनें। - नीले रंग की वस्तुओं का उपयोग करें जैसे नीले वस्त्र, चादर, पर्दे आदि। - शनि से संबंधित वस्तुओं (जैसे लोहा, तेल, चमड़ा आदि) का व्यापार करें और शनि के दिन एवं नक्षत्रों का विशेष तौर पर उपयोग करें। - लोहे के बरतन में 7 काली मिर्च, 7 काले चने के दाने, पत्थर का कोयला, 7 दाने उड़द की साबुत दाल, एक चमड़े का टुकड़ा एवं...
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कुंडली में अष्टम चन्द्र

अष्टम चंद्र यानि जन्म कुंडली में आठवें भाव में स्थित चंद्र। आठवां भाव यानि छिद्र भाव, मृत्यु स्थान, क्लेश‘विघ्नादि का भाव। अतः आठवें भाव में स्थित चंद्र को लगभग सभी ज्योतिष ग्रंथों में अशुभ माना गया है और वह भी जीवन के लिए अशुभ। जैसे कि फलदीपिका के अध्याय आठ के श्लोक पांच में लिखा है कि अष्टम भाव में चंद्र हो तो बालक अल्पायु व रोगी होता है। एक अन्य ग्रंथ बृहदजातक में भी वर्णित है कि चंद्र छठा या आठवां हो व पापग्रह उसे देखें तो शीघ्र मृत्यु...
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मकर संक्रांति महत्व

सूर्य के राशि परिवर्तन का समय संक्रांति कहलाता है। सूर्य लगभग एक माह में राशि परिवर्तन कर लेते है। इस प्रकार एक वर्ष में मेष-वृषादि 12 संक्रांति होती है। सूर्य का मकर राशि में प्रवेश करना मकर संक्रांति कहलाता है।मकर संक्रांति को सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण हो जाते है। इसी कारण इस संक्रांति का पुराणों एंव शास्त्रों में बहुत महत्व प्रतिपादित किया है। अयन का अर्थ होता है चलना। सूर्य के उत्तर गमन को उत्तरायण कहते है। उत्तरायण के छह महीनों मे सूर्य मकर से मिथुन तथा दक्षिणायन में सूर्य...
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स्वतंत्र व्यवसाय के ग्रह योगों की विवेचना

स्वतंत्र व्यवसाय के ग्रह योगों की विवेचना सप्तम भाव, दशम भाव व्यवसाय से संबंधित होते हैं। भाव 10-11 धन से संबंधित होते हैं और व्यवसाय से संबंधित मुखय ग्रह बुध को माना गया है। लग्न, चंद्र लग्न, सूर्य लग्न में से जो बली हो उसके 10वें भाव से व्यवसाय से विचार किया जाता है। दशमेश जिस नवांश में हो उसके नवांशेद्गा को व्यवसाय चयन में प्रमुखता दी जाती है। व्यवसाय में सफलता के कुुछ ग्र्रह योग लग्न, चंद्र लग्न, सूर्य लग्न से जो भी अत्यधिक बलशाली हो, उस लग्न के...
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ज्योतिष अनुसार केसर का प्रयोग

हमारी प्रकृति ने हमें कई ऐसे मसाले और जड़ी-बूटियां दी हैं जो हमारे लिए कम फायदेमंद नहीं है। केसर का मसालों में विशिष्ट स्थान है। केसर सबसे कीमती मसाला है जिसे अंग्रेजी में सैफ्रोन कहते हैं। साधारणतः इसे उर्दू और अरबी में जाफरान कहते हैं। केसर भारतीय रसोई घर का प्रमुख मसाला है। इसे मसालों का राजा कहें तो ज्यादा बेहतर होगा। इसमें करिश्माई गुण समाए हैं। इसका वैज्ञानिक नाम क्रोकस सैटिबस है। केसर के फूल में चमकता हुआ स्टिग्मा पाया जाता है। स्टिग्मा को जब अच्छी तरह सुखाया जाता...
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भोग कारक शुक्र और बारहवां भाव

द्वादश भाव को प्रान्त्य, अन्त्य और निपु ये तीन संज्ञायें दी जाती हैं और द्वादश स्थान (बारहवां) को त्रिक भावों में से एक माना जाता है, अक्सर यह माना जाता है कि जो भी ग्रह बारहवें भाव में स्थित होता है वह ग्रह इस भाव की हानि करता है और स्थित ग्रह अपना फल कम देता है। बलाबल में भी वह ग्रह कमजोर माना जाता है, लेकिन शुक्र ग्रह बारहवें भाव में धनदायक योग बनाता है और यदि मीन राशि में बारहवें भाव में शुक्र हो तो फिर कहना ही...
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विभिन्न भावों में मंगल का फल

प्रथम भाव जन्मकुंडली के प्रथम भाव में मंगल जातक को साहसी, निर्भीक, क्रोधी, किसी हद तक क्रूर बनाता है, पित्त रोग का कारक होता है तथा चिड़चिड़ा स्वभाव वाला बनाता है। उसमें तत्काल निर्णय लेने की क्षमता होती है तथा वह लोगों को प्रभावित करने तथा अपना काम करवाने की योग्यता रखता है। वह अचल संपत्ति उत्तराधिकार से प्राप्त करता है। साथ ही साथ स्वयं के प्रयास से भी निर्माण करता है। परन्तु यदि इस भाव में मंगल नीच का हुआ तो जातक दरिद्र, आलसी, असंतोषी, उग्र स्वभाव का, सुख...
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सफल ज्योतिषी बनने के योग

इस विद्या में पारंगत व्यक्ति 'ज्योतिषी' कहलाता है। एक सफल ज्योतिषी केवल वही बन सकता है जो सच्ची निष्ठा एवं लगन से ईश्वरोपासना की ओर उन्मुख होकर उस परमब्रह्म का आशीर्वाद एवं ईश्वरीय कृपा प्राप्त कर ले। एक सफल ज्योतिषी बनने के लिये जन्म पत्रिका में शुभ ग्रहों का बली होना अति आवश्यक है। कुंडली में लग्न, पंचम, नवम भाव तथा बुध, गुरु, शुक्र, शनि एवं केतु ग्रह की उत्तम स्थिति जातक को ज्योतिष विद्या के अध्ययन की ओर अग्रसर करती है। फलदीपिका ग्रंथ के अनुसार- दशमेश यदि बुध के...
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