महाकालेश्वर मंदिर के वो रहस्य जिन्हें जानकर आप भी बोलेंगे, जय महाकाल
भगवान शिव के 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में भक्तों को दक्षिणमुखी ज्योतिर्लिंग के दर्शन होते हैं। महाकालेश्वर मंदिर मुख्य रूप से तीन हिस्सों में विभाजित है। इसके ऊपरी हिस्से में नाग चंद्रेश्वर मंदिर है, नीचे ओंकारेश्वर मंदिर और सबसे नीचे जाकर आपको महाकाल मुख्य ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजित नजर आते हैं। जहां आपको भगवान शिव के साथ ही गणेशजी, कार्तिकेय और माता पार्वती की मूर्तियों के भी दर्शन होते हैं। इसके साथ ही यहां एक कुंड भी है जिसमें स्नान करने से सभी पाप धुल जाते हैं।
महाकाल नाम का रहस्य|
महाकाल का संबंध केवल मृत्यु से है परंतु यह पूरा सच नहीं है काल के दो अर्थ होते हैं एक समय और दूसरा मृत्यु काल को महाकाल भी कहा जाता है क्योंकि प्राचीन समय में यहीं से पूर्ण विश्व का मानक समय निर्धारित होता था इसलिए इस ज्योतिर्लिंग का नाम महाकालेश्वर रखा गया।
दूसरा कारण भी काल से ही जुड़ा है दरअसल महाकाल का शिवलिंग तब प्रकट हुआ जब महादेव को एक राक्षस दूषण का अंत करना था भगवान शिव उस राक्षस का काल बनकर आए।उसी दिन के बाद अवंती नगरी उज्जैन के नाम से जाना जाता है वहां के वासियों के आग्रह पर महाकाल वहां उपस्थित हो गए। यह समय नकाल के अंत तक यहीं रहेंगे इसलिए भी इन्हें महाकाल कहा जाता है।
क्यों यहां रात नहीं बिताता था कोई राज्यमंत्री
उज्जैन का एक ही राजा है और वह है महाकाल बाबा विक्रमादित्य के शासन के बाद यहां कोई भी राजा रात में नहीं रुक सकता जिसने भी यह दुस्साहस किया वह संकटों से गिरकर मारा गया पौराणिक कथा और सिंहासन बत्तीसी की कथा के अनुसार राजा भोज के काल से ही यहां कोई राजा नहीं रुक सकता है वर्तमान में भी कोई राजा या मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री यहां रात में नहीं रुक सकता।
इससे जुड़े कई उदाहरण भी प्रसिद्ध हैं जिनके बारे में आपको जानकर आश्चर्य होगा एक बार देश के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई जब मंदिर के दर्शन करने के बाद रात में यहां रुके थे तो उनकी सरकार अगले ही दिन गिर गई थी।
ऐसे ही कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा भी उज्जैन में रुके थे तो उन्हें कुछ ही दिनों के अंदर अपना इस्तीफा देना पड़ा था कुछ लोग मानते हैं तो कुछ लोगों के मुताबिक महाकाल भगवान ही शहर के राजा हैं और उनके अलावा कोई और राजा यहां नहीं रुक सकता
महाकाल की भस्म आरती का रहस्य
जितना प्राचीन भगवान महाकाल का मंदिर है उतना ही रहस्यमय यहां होने वाली भस्म यहां होने वाली भस्मारती भी है प्राचीन काल में राजा चंद्र सिंह शिव के बहुत बड़े उपासक माने जाते थे जब राजा रिपुदमन ने उज्जैन पर आक्रमण किया और राक्षस दूषण के जरिए वहां की प्रजा को प्रताड़ित किया तब राजा ने मदद के लिए भगवान शिव से गुहार लगाई प्रजा की गुहार भगवान शिव ने सुनी और स्वयं दुष्ट राक्षस का वध किया। इतना ही नहीं भगवान शिव ने भूषण की राख से अपना श्रृंगार किया और वह हमेशा के लिए यहां बस गए तो इस तरह से भस्म आरती की शुरुआत हुई।