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मानसिक स्वास्थ्य-विज्ञान

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आधुनिक भारत की प्रगति का ऐतिहासिक सिंहावलोकन करने पर इस तथ्य पर प्रकाश
पड़ता है कि भारत ने जहाँ एक ओर वैज्ञानिक एवं तकनीकी विकास में प्रगति कर अपने को विकासशील देशों की वेणी में खड़ा कर दिया है, वहीं देश की भौतिक प्रगति ने मानव जीवन के समक्ष अनेक समस्याएँ एवं जटिलताएँ उत्पन्न कर दी है। भौतिकवाद के परिणामस्वरूप ही व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य बदल गया है, मानव मूल्य परिवर्तित हो गये है, स्वस्थ जीवन का दर्शन का अभाव हो गया है, धन संपदा के प्रति व्यक्ति के दृष्टिकोण में अस्थिरता आईं है तथा जनसंख्या में अपार वृद्धि हुई है जिसके कारण उनका व्यक्तित्व विघटित हो गया है,उनमें तनाव और कुण्डा अधिक मात्रा में पायी जाने लगी है, उनका मानसिंक संतुलन भंग हो गया है। उनका सामाजिक समायोजन अप्रभावी हो गया है तथा वे मानसिक रूप से अस्वस्थ हो गये है मानसिक अस्वस्थता के कारण व्यक्ति ने ना तो समाज में उपयुक्त अन्तर्किंया कर सकता है और न उपयुक्त समायोजन ही स्थापित कर सकता है। इस प्रकार मानसिक स्वास्थ्य व्यक्तित्व विघटन को रोकता है। अस्तु व्यक्ति के लिए उत्तम मानसिक स्वास्थ्य का ज्ञान ही आवश्यक नहीं वरन उन कारणो की रोकथाम भी आवश्यक है जो मानसिक कुस्वास्थ्य के लिए उत्तरदायी है जिससे व्यक्ति समाज में प्रभावपूर्ण समायोजन स्थापित कर सके और अपना जीवनयापन सुचारु रूप से कर सके। परन्तु मानसिक स्वास्थ्य के बारे म प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए व्यक्ति को मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान से अवगत कराना होगा। जिसके द्वारा मानसिक रोगों की रोकथाम तथा उनका उपचार किया जाता हैं। स्वस्थ शरीर का तात्पर्य केवल शारीरिक दोषों से युक्त होना ही नहीँ है वरन मानसिक रोगों एवं दोषों से मुक्ति से भी है। इसीलिए आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में मनोंचिंकित्सा का भी समावेश किया गया है ताकि मानसिक रोग उत्पन करने वाले कारणों को ज्ञात किया जा सके और उनका उपचार किया जा सके।
मानसिक आरोग्य-विज्ञान के पक्ष मानसिक स्वास्थ्य विज्ञान की प्रस्तुत की गई परिभाषाओं के आधार पर यह निष्कर्ष प्राप्त किया जा सकता है कि मानसिक आरोग्य विज्ञान के निम्नलिखित तीन पक्ष है-
1. निरोधात्मक उपाय
मानसिक आरोग्य विज्ञान का सबसे महत्वपूर्ण पक्ष असामान्य परिस्थितियों को उत्पन्न करने वाले कारकों को नियंत्रित करना मानसिक स्वास्थ्य में वृद्धि करने वाले आवश्यक एवं वांछित दशाओं के उत्पन्न करना है ताकि व्यक्ति सुचारु रूप से अपना जीवन-यापन कर सके। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हमेँ इस व्यक्ति का प्रयास करना होगा कि व्यक्ति की जैविक, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक परिस्थितियों उसके अनुकूल हो जिससे वह व्यक्ति केवल बाह्य समायोजन ही नहीं, वरन् आन्तरिक समायोजन भी स्थापित कर सके और समाज में एक रचनात्मक व्यक्ति की भूमिका निर्वाह कर एक योग्य नागरिक बन सके। मानसिक रोगों की रोकथाम के लिए जैविक, मनोवैज्ञानिक एवं सामाजिक उपायों का प्रयोग किया जा सकता है जिनका वर्णन अधोलिखित है-
(1)जैवकीय निरोधात्मक उपाय- अगर शारीरिक स्वास्थ्य उत्तम तथा संतोषजनक होगा तो मस्तिष्क का विकास भी पूर्णरूप से होगा, और मानसिक विकृतियों का आभाव पाया जायेगा और व्यक्ति कठिनाइयों तथा अपनी जटिल परिस्थितियों का सामना ठीक से कर सकेगा। अध्ययनों में यह परिणाम प्राप्त किया गया है कि कुछ शारीरिक रोगो तथा सिफलिस और ब्रेन दूँयूमर में मानसिक लक्षण अधिक पाये जाते हैँ। अत: ऐसे रोगो के रोकथाम के लिए प्रयास करना चाहिए। इन शारीरिक रोगों के अतिरिक्त कुछ जैविका कारण भी होते है|
जो मानसिक रोगों के जनक होते है यथा गर्भ या जन्य के समय अनुपयुक्त जैविक परिस्थिति का होना माता-पिता की अस्वस्थता आदि। अत: इस प्रकार गर्भवती माता को उपयुक्त देखभाल समय-समय पर परीक्षण संवेगात्मक परिस्थिति से बचाव करना चाहिए। साथ-ही-साथ प्रतिकूल आनुवांशिक संरचना वाले माता-पिता का कानूनी तौर पर वनध्याकरण होना चाहिये ताकि मानसिक रोगी बच्चों का जन्म न हो सके। अस्तु इस दिशा म मनोवैज्ञानिकों एवं मनोचिकित्सकों को यह प्रयास करना चाहिए कि मानसिक रोगों पर जैविक प्रभावों के रोकथाम के लिए प्रयास करें
2) मनोवैज्ञानिक निरोधात्मक उपाय -व्यक्तियों में मानसिक आरोग्यता लाने का उत्तरदात्वि केवल माता-पिता पर ही नहीं, वरन शिक्षकों तथा समाज के लोगों का भी है, इस दिशा में माता-पिता तथा शिक्षकों को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि वे बालकों में ऐसी योग्यता विकसित करे , जिससे वे भावी जीवन में आने वाली कठिनाइयों एवं समस्याओँ का निराकरण कर सके और सामाजिक वातावरण में उपयुक्त समायोजन स्थापित कर सके। उन्हें चाहिए कि वे बच्चों में ऐसे जीवन मूल्यों को विकसित करें जिससे बच्चे बड़े होकर समाज को एक रचनात्मक दिशा प्रदान कर सके। बालको में ऐसी अभिवृतियों का निर्माण करना चाहिए जिससे वे पर्यावरण सबंधी दबावपूर्ण, परिस्थितियों का सामना कर सके। व्यक्ति का जीवनदर्शन दोषपूर्ण होने पर उनमें अपनी कठिनाइयों से निपटने के क्षमता का हास पाया जायेगा इन उपायों का प्रयोग करके मानसिक अस्वास्थ्य की जटिल समस्या का समाधान किया जा सकता है। मानसिक रोगों की रोकथाम के लिए मनोवैज्ञानिक निरोध के रूप म उचित जीवन दर्शन विकसित करने का प्रयास, सामाजिक योग्यताओं को विकसित करने का प्रयास, संवेगात्मक नियन्त्रण का प्रयास एवं उपयुक्त शिक्षा आदि का व्यवस्था करनी चाहिये।
मानसिक रोगो की रोकथाम के लिए निम्नलिखित उपायों प्रयोग किया जा सकता है :-
( अ ) स्वस्थ व्यक्तित्व के विकास के लिए प्रवास करना चाहिये। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह आवश्यक है कि माता-पिता एवं बच्चों के बीच सहानुभूतिपूर्ण संबंध हो। सामाजिक जीवन के निर्वाह के लिए उपयुक्त प्रशिक्षण दिया जाये, उनकी स्वतन्त्रता पर अनावश्यक प्रतिबन्ध न लगाये जाय. जीवन की यथार्थताओं का अनुभव उन्हें निकट से करने दिया जाय तथा उसे समूह अथवा परिवार का एक महत्त्वपूर्ण व्यक्ति समझा जाये।
(ब ) मूलभूत यौग्यत्ताओं के विकसित करने में सहायक होना चाहिए: इस दिशा में इस बात का प्रयास करना चाहिये कि बच्चों को सवेगात्मक नियन्त्रण स्थापित करने में कठिनाई न हो, व्यक्ति में अत्यधिक भावुकता न पाई जाय, ऋणात्मक संवेगों यथा क्रोध है भय,चिंता आदि का सामना करने की योग्यता विकसित करनी चाहिये, समस्यापूर्ण संवेगों का सामना करने की क्षमता विकसित होनी चाहिये तथा धनात्मक संवेगों यथा प्रेम एवं विनोद को प्रोत्साहित करना चाहिये।
( स) सामाजिक क्षमताओं को विकसित करना चाहिये, इसके लिए पारम्परिक अधिकारों आवश्यकताओं एवं उत्तर्दयित्यों का बोध कराना चाहिये तथा व्यक्ति में अपने को और दूसरों को समझने की योग्यता होनी चाहिये,
( द ) अखण्ड व्यक्तित्व को विकसित करने में सहायक होना चाहिए।
( ई ) सफल वैवाहिक समायोजन होना चाहिये ताकि पति-पत्नी एकदूसरे के प्रति ही नहीं वरन् परिवार के सदस्यों के प्रति अपने उत्तरदायित्व के प्रति सचेत रह सके।
मानसिक रूथ से स्वस्थ व्यक्ति के लक्षण
1. नियमितता-ऐसे व्यक्तियों की दिनचर्या उसका लिबास,उसका जीवन आदि नियमित होता है और वह सामाजिक एवं सांस्कृतिक मानकों के अनुकूल होता है। ऐसे व्यक्ति केवल अपने व्यावसायिक कार्यों में ही नियमितता नहीँ प्रदर्शित करते है वरन जीवन के हर क्षेत्र में इनके व्यवहार में नियमितता पाई जाती है।
2. परिपक्वता -मानसिक रूप से स्वस्थ्य व्यक्तियों में सामाजिक परिपक्वता पाई जाती है। उनके कार्यों एवं व्यवहार पर उनके सामाजिक तथा पारिवारिक पृष्ठभूमि का प्रभाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है। ऐसे व्यक्ति समाजोयुवत व्यवहार एवं आचरण प्रदर्शित करते हैं।
3. जीवन लक्ष्य -सभी व्यक्तियों के अपने जीवन लक्ष्य तथा जीवन में उनकी अपनी कुछ आकाक्षाएँ होती है, जो व्यक्ति अपने परिवार एवं समाज की आवश्यकताओं के प्रतिकूल जीवन लक्ष्य निर्धारित कर लेते है, वह अपने जीवन लक्ष्यों को प्राप्त करने में असफल रहते है परन्तु मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने परिवार, संस्कृति एवं समाज की मान्यताओं एवं आदर्शी को ध्यान में रखकर जीवन लक्ष्य निर्धारित करते है और उन्हें पूरा करके आदर्श नागरिक बनाते हैं।
4. उपयुक्त समायोजन -मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में उपयुक्त समायोजन के गुण पाये जाते है, ऐसे व्यक्ति साधारण एवं जटिल परिस्थितियों में भलीभांति समायोजन स्थापित कर लेते है और परिस्थितियों की जटिलताओं से हतोत्साहित नहीँ होते हैँ।
5. आत्म मूल्यांकन -मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने गुण,अवगुणों का सहीं मूल्याकन करते है वह अपनी वास्तविकताओं को समझते है, तथा वे न तो अपना मूल्यांकन ही करते है और न अतिमूल्याकन ही।
6. आत्म विश्वास-मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति में आत्मविश्वास की कमी नहीं पाई जाती है ऐसे व्यक्ति जिन कार्यों को करते है आत्म विशवास से करते हैँ। इनमें अधीरता नहीं पाई जाती है तथा जटिल परिस्थितियों में सामना करते समय आत्मविश्वास बनाये रखते हैँ।
7. संवेगात्पक स्थिरता -समी व्यक्ति संवेगात्मक परिस्थितियों में संतुलित व्यवहार नहीं कर पाते हैं। परिणामस्वरूप उनकी संवेगात्मक अभिव्यक्तियों अनिश्चित रहंती है जबकि मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने संवेगों को नियंत्रित रखते है । सामाजिक परिस्थितियों में न तो वह अत्यधिक प्रेम प्रदर्शित करते है और न अत्यधिक क्रोध ।
8. सन्तोष -मानसिंक रूप से स्वस्थ व्यवित्तर्या के पास जो कुछ होता है उसी में यह संर्ताष करते है जिस व्यवसाय में रहते है, उसमें संतोष अनुभव करते है और जो कुछ उसे उपलब्ध है, उसे ही ईश्वर का प्रसाद मानते है।
9. अतिशयता का आभाव -मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति अपने व्यवहार,आकांक्षा, संभाव, संवेग आदि के सन्दर्भ में अतिशयता पूर्ण व्यवहार नहीं करते है। इनका व्यवहार सर्वदा संतुलित रहता है न तो उनकी आकाक्षा बहुत उच्च होनी है और न वह अत्यधिक सम्मान प्राप्त करने की ही इच्छा करते हैं।
10. सामाजिक संपर्क -मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति सामाजिक परिस्थितियों में धैर्य नहीँ खाते है तथा परिचित एवं अपरिचित व्यक्तियों से बातचीत में अपना विवेक-आत्मविश्वास एवं संतुलन बनाये रखते हैँ।
11. संवेदनशीलता -मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों में अत्यधिक संवेदनशीलता नहीँ पाई जाती है। जबकि मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति अत्यधिक संवेदनशील होते है। मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जीवन की छोटी-छोटी बातों के प्रति अत्यधिक गंभीर दृष्टिकोण नहीं अपनाते है। उनमें हास्याबोध पाया जाता है इसलिये वह इस तरह की घटनाओं को अधिक महत्व नहीं देते हैं।
12. आत्म सम्मान -मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति जहाँ अपने आत्म संम्मान की रक्षा का प्रयास करता है वहीं वह किसी ऐसे व्यवहार को भी नहीं करता है जिससे दूसरों के आत्मसम्मान को ठेस पहुँचे। इस प्रकार ऐसे व्यक्ति स्वयं भी संतुष्ट रहते है और अपने सदव्यवहार से दूसरों को भी संतुष्ट रखते हैँ।
13. उपयुक्त सामाजिक व्यवहार -मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति परिवार तथा समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ उपयुक्त अन्तर्किंया करते है और सामाजिक नियमों का पालन करते हैं। ऐसे व्यक्ति समाज विरोधी कार्य न तो करते है और न दूसरा को ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते है।
14) पारिवारिक अंतक्रिया-मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति परिवार के सदस्यों के साथ उपयुक्त व्यवहार करने है वे ऐसा व्यवहार नहीं करते है जिससे परिवार के सदस्यों का या उनका जीवन कष्टमय या कलापूर्ण हो।
15.संतुलित व्यक्तित्व-मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्तियों का व्यक्ति संतुलित होता है उनका स्वभाव व चरित्र, विवेक तथा अर्जित विन्यास इस प्रकार होते है कि वह वातावरण के साथ अपूर्व अनुकूल स्थापित कर लेते हैं।

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