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सुरगुजा की न्यारी छटा

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प्राचीन काल में सरगुजा दण्डकारण्य क्षेत्र के अंतर्गत माना जाता था। त्रेतायुग में भगवान श्रीराम दण्डकारण्य में इसी क्षेत्र से प्रवेश किये थे। इसीलिए इस क्षेत्र का पौराणिक महत्व हैं। सरगुजा प्रकृति की अनुपम देन हैं। प्राकृतिक सौन्दर्यता के कारण यह ऋषि-मुनियों की तपोस्थली के रूप में विख्यात रहा हैं। इस क्षेत्र में अनेक संस्कृति का अभ्यूदय हुआ। उनके पुरातात्विक धरोहर आज भी इनकी स्मृति में विद्यमान हैं। जैसे रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, कुदरगढ़,देवगढ़, महेशपुर, सतमहला, जनकपुर, डीपाडीह, मैनपाट, जोकापाट, सीताबेंगरा-जोगीमारा (प्राचीन नाट्यशाला) तथा यहाँ के अनेक जलप्रपात भी हैं। यहाँ की सुरम्य वादियाँ पर्यटकों का मन मोह लेती हैं। सरगुजा का नामकरण स्वर्ग-जा अर्थात् स्वर्ग की पुत्री के रूप में की जाती हैं। गजराज की भूमि सरगुजा आज भी अतीत का गौरवशाली इतिहास बताते हुए विद्यमान हैं।

छत्तीसगढ़ का शिमला:

मैनपाट भारत के राज्य छत्तीसगढ़ का एक पर्यटन स्थल है। यह स्थल अम्बिकापुर नगर, जो भूतपूर्व सरगुजा, विश्रामपुर के नाम से भी जाना जाता है, से 75 किमी. की दूरी पर अवस्थित है। अम्बिकापुर छत्तीसगढ़ राज्य का सबसे ठंडा नगर है। मैनपाट में भी काफ़ी ठंडक रहती है, यही कारण है कि इसे छत्तीसगढ़ का शिमला कहा जाता है। 1962 ई. से यहाँ पर तिब्बती लोगों के एक समुदाय को भी बसाया गया है।

मैंनपाट विंध्य पर्वतमाला पर स्थित है। मैनपाट की लम्बाई 28किमी. और चौड़ाई 10-12 किमी. है। यह प्राकृतिक सम्पदा से भरपुर और एक बहुत ही आकर्षक स्थल है। सरभंजा जल प्रपात, टाईगर प्वांइट और मछली प्वांइट यहाँ के श्रेष्ठ पर्यटन स्थल हैं। छत्तीसगढ़ के इस स्थान से ही रिहन्द एवं मांड नदियाँ निकलती हैं। यहाँ पर तिब्बती का भी बड़ी संख्या में निवास है। एक प्रसिद्ध बौद्ध मन्दिर भी यहाँ है, जो तिब्बतियों की आस्था का प्रमुख केन्द्र है। शायद यही कारण है कि यह छत्तीसगढ़ का तिब्बत भी कहा जाता है। छत्तीसगढ़ के मैनपाट की वादियां शिमला का अहसास दिलाती हैं, खासकर सावन और सर्दियों के मौसम में। प्रकृति की अनुपम छटाओं से परिपूर्ण मैनपाट को सावन में बादल घेरे रहते हैं। लगता है, जैसे आकाश से बादल धरा पर उतर रहे हों। रिमझिम फुहारों के बीच इस अनुपम छटा को देखने पहुंच रहे पर्यटकों की जुबां से निकलता है…वाकई यह शिमला से कम नहीं है। मैनपाट में पहाडिय़ों से बादलों के टकराने के कारण यह नजारा देखने को मिलता है।

अंबिकापुर से दरिमा होते हुए मैनपाट जाने का रास्ता है। मार्ग में जैसे-जैसे चढ़ाई ऊपर होती जाती है, सड़क के दोनों ओर साल के घने जंगल अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं। सावन में बादलों के कारण इसकी खूबसूरती और बढ़ जाती है। बादलों से घिरे मैनपाट के दर्शनीय स्थल हैं दलदली, टाइगर प्वाइंट और फिश प्वाइंट, जहां पहुंचकर लोग बादलों को नजदीक से देखने का नया अनुभव प्राप्त कर रहे हैं। अंबिकापुर से दरिमा होते हुए कमलेश्वरपुर तक पक्की घुमावदार सड़क और दोनों ओर घने जंगल मैनपाट पहुंचने से पहले ही हर किसी को प्रफुल्लित कर देते हैं।

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बेनगंगा जल प्रपात:

कुसमी- सामरी मार्ग पर सामरीपाट के जमीरा ग्राम के पूर्व -दक्षिण कोण पर पर्वतीय श्रृंखला के बीच बेनगंगा नदी का उदगम स्थान है। यहा साल वृक्षो के समूह मे एक शिवलिंग भी स्थापित है । वनवासी लोग इसे सरना का नाम देते है और इस स्थान को पूजनीय मानते है। सरना कुंज के निचले भाग के एक जलस्त्रोत का उदगम होता है। यह जल दक्षिण दिशा की ओर बढता हुआ पहाडी के विशाल चट्टानो के बीच आकार जल प्रपात का रुप धारण करता है। प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण सघन वनों, चट्टानों को पार करती हुयी बेनगंगा की जलधारा श्रीकोट की ओर प्रवाहित होती है । गंगा दशहारा पर आस -पास के ग्रामीण एकत्रित होकर सरना देव एवं देवाधिदेव महादेव की पूजा – अर्चना करने के बाद रात्रि जागरण करते है । प्राकृतिक सुषमा से परिपूर्ण यह स्थान पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र है।

जलजली नदी:

सरगुजा जिले के मुख्यालय अम्बिकापुर से लगभग 60 किलोमीटर की दूरी पर मैनपाट में धरती हिलती है। न तो वहां भूचाल आता है और न किसी नक्सली हिंसा के कारण धरती में घबराहट का कंपन है। जलजली नाम की नदी के पास जमीन पर पैर रखते ही वह कांपने लगती है। जमीन पर कूदते ही वह धंसती है और गेंद की तरह वापस ऊपर आ जाती है। कुदरत के इस खेल को देखने पहुंचे सैलानी कुछ देर तक बच्चों की तरह उछलते रहते हैं।

छत्तीसगढ़ पर्यटन के सुंदर सैला रिसार्ट से साढ़े तीन किलोमीटर की दूरी साल वन के बीच से पार करने पर जलजली नदी दिखाई देती है। नदी का किनारा दूब की हरी परत से ढंका हुआ है। पचासों किस्म की बहुरंगी वनस्पतियां हैं। रंग-बिरंगे फूल हैं। पीले, लाल, नीले, पत्तियों से मिलते-जुलते रंग के। जमीन पर कूदने से वह हिलती क्यों है? दुनिया के किसी भी इलाके में जमीन के हलके कंपन से घबराहट फैल जाती है। भूचाल में भारी क्षति होती है। यही एकमात्र भूचाल है जिसका लोग आनंद लेते हैं और चकित होकर दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं। जलजली नदी पर जलजली स्थल से कुछ दूर पर झरना है। वन गहन होने के कारण पास जाकर निर्झर देखने के लिए मार्ग नहीं बना है। पैर रखते ही डोलती जमीन, जलप्रपात आदि मन मोह लेती है।

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भेडिय़ा पत्थर जलप्रपात:

कुसमी चान्दो मार्ग पर तीस किमी की दुरी पर ईदरी ग्राम है । ईदरी ग्राम से तीन किमी जंगल के बीच भेडिया पत्थर नामक जलप्रपात है। यहां भेडिया नाला का जल दो पर्वतो के सघन वन वृक्षो के बीच प्रवाहित होता हुआ ईदरी ग्राम के पास हजारो फीट की उंचाई पर पर्वत के मध्य मे प्रवेश कर विशाल चट्टानो. के बीच से बहता हुआ 200 फीट की उंचाई से गिरकर अनुपम प्राकृतिक सौदर्य निर्मित करता है। दोनो सन्युक्त पर्वत के बीच बहता हुआ यह जल प्रपात एक पुल के समान दिखाई देता है। इस जल प्रपात के जलकुंड के पास ही एक प्राकृतिक गुफा है,जिसमे पहले भेडिये रहा करते थे। यही कारण है की इस जल प्रपात को भेडिया पत्थर कहा जाता है।

सुदूर बसा एक और तिब्बत:

साठ के दशक के शुरुआती दिनों में जब चीन ने तिब्बत पर अपना अधिकार मज़बूत करना शुरु किया तो बड़ी संख्या में तिब्बतियों को भाग कर भारत आना पड़ा. भारत सरकार ने इन शरणार्थियों को देश भर में पाँच जगहों पर बसाया था. उन्हीं में से एक था छत्तीसगढ़ के सरगुजा जि़ले में बसा मैनपाट. सुदूर बसा एक और तिब्बत. गाँव में एक बार घुस जाएँ तो लगता ही नहीं कि ये कोई और देश है.

ठिनठिनी पत्थर:

अम्बिकापुर नगर से 12 किमी. की दुरी पर दरिमा हवाई अड्डा हैं। दरिमा हवाई अड्डा के पास बडे – बडे पत्थरो का समुह है। इन पत्थरो को किसी ठोस चीज से ठोकने पर आवाजे आती है। सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ये आवाजे विभिन्न धातुओ की आती है। इनमे से किसी -किसी पत्थर खुले बर्तन को ठोकने के समान आवाज आती है। इस पत्थरो मे बैठकर या लेटकर बजाने से भी इसके आवाज मे कोइ अंतर नही पडता है। एक ही पत्थर के दो टुकडे अलग-अलग आवाज पैदा करते है। इस विलक्षणता के कारण इस पत्थरो को अंचल के लोग ठिनठिनी पत्थर कहते है।

जोगीमारा गुफाएँ:

छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध पर्यटन स्थलों में से एक जोगीमारा गुफ़ाएँ अम्बिकापुर रामगढ़ में स्थित है। यहीं पर सीताबेंगरा, लक्ष्मण झूला के चिह्न भी अवस्थित हैं। इन गुफ़ाओं की भित्तियों पर300 ई.पू. के कुछ रंगीन भित्तिचित्र विद्यमान हैं। सम्राट अशोक के समय में जोगीमारा गुफ़ाओं का निर्माण हुआ था जो देवदासी सुतनुका ने करवाया था।

चित्रों में भवनों, पशुओं और मनुष्यों की आकृतियों का आलेखन किया गया है। एक चित्र में नृत्यांगना बैठी हुई स्थिति में चित्रित है और गायकों तथा नर्तकों के खुण्ड के घेरे में है। यहाँ के चित्रों में झाँकती रेखाएँ लय तथा गति से युक्त हैं। इस गुफ़ा के अंदर एशिया की अतिप्राचीन नाट्यशाला है। भास के नाटकों में इन चित्रशालाओं के सन्दर्भ दिये हैं।

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कैलाश गुफा:

अम्बिकापुर नगर से पूर्व दिशा में 60 किमी. पर स्थित सामरबार नामक स्थान है, जहां पर प्राकृतिक वन सुषमा के बीच कैलाश गुफा स्थित है। इसे परम पूज्य संत रामेश्वर गहिरा गुरू जी नें पहाडी चटटानो को तराशंकर निर्मित करवाया है। महाशिवरात्रि पर विशाल मेंला लगता है। इसके दर्शनीय स्थल गुफा निर्मित शिव पार्वती मंदिर, बाघ माडा, बधद्र्त बीर, यज्ञ मंड्प, जल प्रपात, गुरूकुल संस्कृत विद्यालय, गहिरा गुरू आश्रम है।

तातापानी:

अम्बिकापुर-रामानुजगंज मार्ग पर अम्बिकापुर से लगभग 80 किमी. दुर राजमार्ग से दो फलांग पश्चिम दिशा मे एक गर्म जल स्त्रोत है। इस स्थान से आठ से दस गर्म जल के कुन्ड है। इस गर्म जल के कुन्डो को सरगुजिया बोली में तातापानी कहते है। इन गर्म जलकुंडो मे स्थानीय लोग एवं पर्यटक चावल ओर आलु को कपडे मे बांध कर पका लेते है तथा पिकनिक का आनंद उठाते है। इन कुन्डो के जल से हाइड्रोजन सल्फाइड जैसी गन्ध आती है। ऐसी मान्यता है कि इन जल कुंडो मे स्नान करने व पानी पीने से अनेक चर्म रोग ठीक हो जाते है। इन दुर्लभ जल कुंडो को देखने के लिये वर्ष भर पर्यटक आते रहते है।

तमोर पिंगला अभयारण्य:

1978में स्थापित अम्बिकापुर-वाराणसी राजमार्ग के 72 कि. मी. पर तमोर पिंगला अभ्यारण्य है जहां पर डांडकरवां बस स्टाप है। 22 कि.मी. पश्चिम में रमकोला अभ्यारण्य परिक्षेत्र का मुख्यालय है। यह अभ्यारंय 608.52 वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल पर बनाया गया है जो वाड्रफनगर क्षेत्र उत्तरी सरगुजा वनमंडल में स्थित है। इसकी स्थापना 1978में की गई। इसमें मुख्यत: शेर तेन्दुआ, सांभर, चीतल, नीलगाय, वर्किडियर, चिंकारा, गौर, जंगली सुअर, भालू, सोनकुत्ता, बंदर,खरगोश, गिंलहरी, सियार, नेवला, लोमडी, तीतर, बटेर, चमगादड, आदि मिलते हैं।

सीता लेखनी:

सुरजपुर तहसील के ग्राम महुली के पास एक पहाडी पर शैल चित्रों के साथ ही साथ अस्पष्ट शंख लिपि की भी जानकारी मिली है। ग्रामीण जनता इस प्राचीनतम लिपि को सीता लेखनी कहते हैं।

सतमहला:

अम्बिकापुर के दक्षिण में लखनपुर से लगभग दस कि.मी. की दूरी पर कलचा ग्राम स्थित है,यहीं पर सतमहला नामक स्थान है। यहां सात स्थानों पर भग्नावशेष है। एक मान्यता के अनुसार यहां पर प्राचीन काल में सात विशाल शिव मंदिर थे, जबकि जनजातियों के अनुसार इस स्थान पर प्राचीन काल में किसी राजा का सप्त प्रांगण महल था। यहां पर दर्शनीय स्थल शिव मंदिर, षटभुजाकार कुंआ और सूर्य प्रतिमा है।