हर 131 वर्षों में जब धरती के पाताल में छिपे पाप प्रबल होंगे, तब मैं भूमिशयन कर कुछ काल तक लुप्त रहूंगा
श्री महाकाल अमलेश्वर के भूमिशयन का गूढ़ रहस्य
(विशेषतः 2004 की श्रावण प्रतिपदा पर जागृति की ऐतिहासिक घटना के संदर्भ में)
प्राकट्य की महागाथा:
पुराकाल में खारून तट पर तप कर रहे एक महान अघोर ऋषि — सप्तऋषियों के परंपरा-वंशज — ने इस क्षेत्र को महाकाल की स्थली घोषित किया था।
कहा जाता है कि महाकाल स्वयं उनके आह्वान पर तीव्र अग्निकुण्ड से प्रकट हुए थे।
यह प्रकट्य अद्भुत था —
ना शिवलिंग भूमिपृष्ठ पर था, ना कोई प्रतिमा — बल्कि अग्नि में स्वयं प्रकट हुए ज्वालामय महाकाल।
तब स्वयं शिव ने एक वचन दिया:
“हे अघोर, हर 131 वर्षों में जब धरती के पाताल में छिपे पाप प्रबल होंगे, तब मैं भूमिशयन कर कुछ काल तक लुप्त रहूंगा, और जब पुनः समय उपयुक्त होगा — श्रावण प्रतिपदा की चंद्रबिंब-ज्योति मुझे जागृत करेगी।”
यह 131 वर्षों का चक्र इस कारण बना क्योंकि:
1 = शिव का ‘एकोऽहं’
3 = त्रिकाल (भूत, भविष्य, वर्तमान)
1 = अग्नि का एक लिंग-तत्व इस प्रकार “131” का अंक शिव के चैतन्य कालचक्र का प्रतीक माना गया।
भूमिशयन का रहस्य:
जब अधर्म, व्यभिचार, और कुलधर्म त्याग प्रबल होते हैं, तब महाकाल अपने तेज को धरती में खींच लेते हैं। इसे ‘भूमिशयन’ कहते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य:
भूमि को तप्त करना
पातालगामी पापों को दग्ध करना
अगले जागरण तक साधकों की परीक्षा लेनाभूमिशयन काल में:
शिवलिंग अदृश्य हो सकता है
स्वप्नों में केवल ध्वनि, धूनी, या रुद्राक्ष-वृष्टि का अनुभव होता है
तांत्रिकों और सच्चे साधकों को विशेष संकेत मिलते हैं
2004 की जागृति – श्रावण प्रतिपदा:
पूर्व भूमिशयन वर्ष माना जाता है – 1873 ई.
131 वर्ष उपरांत — 2004 की श्रावण मास की प्रतिपदा को अमलेश्वर धाम में कुछ अजीब घटनाएँ घटित हुईं:
अचानक धूनी से बिना अग्नि के धुआँ उठने लगा
अमलेश्वर शिवलिंग के समीप कर्पूर बिना जलाए प्रज्वलित हुआ
एक स्थानीय बालक ने महाकाल का तांडव करते हुए स्वप्न देखा, जिसमें उन्होंने कहा:
“शिव सत्य के मार्ग पर पुनः प्रकट हुए हैं, जो धर्म को अपनाए वही मेरा दर्शन पाए।”
इस दिन से लेकर 7 श्रावण सोमवारों तक अमलेश्वर धाम में भक्तों की भीड़ अपार हो गई, और असाधारण चमत्कारों की रिपोर्ट मिली — विशेषतः पूर्वज दोष, सर्पदोष, और अकाल मृत्यु से पीड़ितों को त्वरित शांति का अनुभव हुआ।
भूमिशयन व जागरण का सांकेतिक अर्थ:
तत्व अर्थ
भूमिशयन समाज की परीक्षा और आत्ममंथन का काल
131 वर्षों का चक्र आध्यात्मिक ऊर्जा के परिपाक की सीमा
श्रावण प्रतिपदा चंद्र की पहली किरण से शिव का पुनर्जागरण
जागरण काल साधकों के लिए द्वार खुलना, सिद्धियाँ प्रकट होना
श्लोक रूप में कथा का सारांश:
भूमौ गूढं स्थितं लिङ्गं, कालचक्रेण सञ्चितम्।
त्रिकालस्मृतिसङ्केतैः, जागते श्रावणोदये॥
एकशतत्रयसंयुक्तं वर्षचक्रं यदा गते।
तदा प्रबुद्धो महाकालो, भक्तानां हृदि दीप्यते॥