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आत्मघात और ज्योतिष

आत्मघात के बारे में प्रायः नित्य ही समाचार मिल जाता है। फांसी लगाकर, जल कर, विष खाकर, ऊंचे स्थान से गिरकर, रेल से कट कर, नस काटकर आदि। शास्त्रों में आत्मघात करना पाप माना गया है, क्योंकि शरीर परमात्मा का दिया हुआ है, उसका वास स्थान है, अतः इसे नष्ट करना उचित नहीं है। आत्महत्या या आत्मघात का अर्थ है स्वयं इस शरीर को नष्ट करना या समाप्त कर देना। जिस वातावरण में मनुष्य निराशा की चरम सीमा पर होता है, स्वयं को समाप्त कर उस वातावरण से छुटकारा पाना...
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बुध ग्रह

बुध के जन्म की कथा काफी अद्भुत तथा उत्तेजक है। यदि हम उस काल की ओर लौटें जबकि यह घटनाएं हुई थीं तो इन घटनाओं ने सृष्टि में काफी उथल-पुथल मचा दी थी। शुरू में बुध को अपनाने के लिए कोई भी तैयार नहीं था तथा इसके पितृत्व को लेकर बहुत विवाद तथा उलझन थी, जिसके परिणाम में बुध को शुरू में एक परित्यक्त बालक का जीवन जीना पड़ा किंतु बाद में उसकी प्रतिभाओं को देखकर उसके पिता ने आगे आकर उसे अपना पुत्र स्वीकार किया। कथा के अनुसार चंद्रमा,...
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क्रिकेटर बनने के ग्रह योग

एक खिलाड़ी की जन्मकुंडली में चाहे कितने ही अच्छे योग क्यों न हों, यदि उसमें खेल विशेष से संबंधित अच्छे योग नहीं हैं, तो उसका करियर अधिक समय तक नहीं रह पाता है। बात क्रिकेट की करें तो हम देखते हैं कि प्रतिस्पद्र्धा के इस दौर में आये दिन खिलाड़ियों के चेहरे बदलते रहते हैं। इनमें से अधिकांश खिलाड़ी ऐसे होते हैं जो कुछ दिनों तक धूमकेतु अथवा पुच्छल तारे की भांति चमकते हैं और फिर लंबे समय के लिए गायब हो जाते हैं जबकि उन्हीं में से कुछ ऐसे...
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षोडश वर्ग

षोडश वर्ग का फलित ज्योतिष में विशेष महत्व है। जन्मपत्री का सूक्ष्म अध्ययन करने में यह विशेष सहायक है। इन वर्गों के अध्ययन के बिना जन्म कुंडली का विश्लेषण अधूरा होता है क्योंकि जन्म कुंडली से केवल जातक के शरीर, उसकी संरचना एवं स्वास्थ्य के बारे में विस्तृत जानकारी मिलती है, लेकिन षोडश वर्ग का प्रत्येक वर्ग जातक के जीवन के एक विशिष्ट कारकत्व या घटना के अध्ययन में सहायक होता है। जातक के जीवन के जिस पहलू के बारे में हम जानना चाहते हैं उस पहलू के वर्ग का...
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द्वादशांश से अनिष्ट का सटीक निर्धारण

सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी ने जब से इस संसार की रचना की है तभी से जीवन में प्रत्येक नश्वर आगमों को चाहे वे सजीव हों अथवा निर्जीव, उन्हें विभिन्न अवस्थाओं से गुजरना पड़ता है। जीवन की इस यात्रा में सबों को अच्छे एवं बुरे समय का स्वाद चखना पड़ता है तथा दोनों परिस्थितियों से होकर गुजरना पड़ता है। यदि हमारा अध्यात्म एवं पराविद्याओं में विश्वास है तो इनके अनुसार जन्म से मृत्युपर्यन्त मनुष्य के जीवन की हर घटना ग्रहों, नक्षत्रों एवं दशाओं आदि द्वारा पूर्णरूपेण निर्देशित होती है। इनके...
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व्यवहारिक उपाय

सभी ग्रह मानव पर अपना प्रभाव डालते हैं। हमारे पूर्व जन्मों के कृत्यों के अनुरूप ग्रह हमारी कुंडली के विभिन्न स्थानों में स्थित होकर अपना अच्छा या बुरा फल देते हैं। प्रत्येक मनुष्य अपने जीवन को सुचारू रूप से चलाने हेतु इन ग्रहों के बुरे प्रभाव को खत्म कर अच्छे प्रभावों की कामना करता है। इसके लिए विभिन्न यंत्र, मंत्र व तंत्रों का प्रयोग भी करता है। परंतु यदि मनुष्य कुछ साधारण उपाय करे तो नवग्रह शांत हो शुभ फलदायक हो जाते हैं। सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि,...
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कुंडली में ग्रहण योग

सूर्य/चंद्रमा के राहु/ केतु के साथ होने से ग्रहण योग बनता है - इस योग में अगर सूर्य ग्रहण योग हो तो व्यक्ति में आत्म विश्वास की कमी रहती है और वह किसी के सामने आते ही अपनी पूर्ण योग्यता का परिचय नहीं दे पाता है उल्टा उसके प्रभाव में आ जाता है। कहने का मतलब कि सामने वाला व्यक्ति हमेशा ही हावी रहता है। चन्द्र ग्रहण होने से कितना भी घर में सुविधा हो मगर मन में हमेशा अशांति ही बनी रहती है कोई न कोई छोटी-छोटी बातों का...
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राहु-केतु की परम अशुभ फलदाई स्थिति

राहु-केतु कुंडली में एक दूसरे से 1800 की दूरी पर (ठीक विपरीत राशि में) स्थित होते हैं। अन्य पापी ग्रहों की तरह ये 3, 6, 11 भाव में शुभ फल देते हैं, और अन्य भावों में अपनी स्थिति व दृष्टि द्वारा उनके कारकत्व को हानि पहुंचाते हंै। यह सदैव वक्री गति से राशि चक्र में भ्रमण करते हैं। सातवीं दृष्टि के अतिरिक्त (बृहस्पति की तरह) यह अपनी स्थिति से पंचम और नवम् भाव पर पूर्ण दृष्टि डालते हैं। राहु-केतु के शुभाशुभ फल के बारे में ‘लघुपाराशरी’ ग्रंथ में बताया गया...
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