फलित ज्योतिष में फलादेश निकालने की अनेक विधियां प्रचलित हैं, जिनमें से पराशरोक्त सिद्धांत, महादशाएं, अंतर दशाएं, प्रत्यंतर दशाएं, सूक्ष्म दशायें इत्यादि के साथ, जन्म लग्न, चंद्र लग्न, नवांश लग्न के द्वारा, वर्ष, मास, दिन एवं घंटों तक विभाजित कर, सूक्ष्म फलादेश निकालना संभव हैं। लेकिन इसके बावजूद भी फलादेश सही अवस्था में प्राप्त नहीं होता है। फलादेश में सूक्षमता लाने के लिए ज्योतिष के सभी ग्रंथों में अष्टक वर्ग अपना एक विशेष स्थान रखता है। अष्टक वर्ग का वर्णन ज्योतिष के प्राचीन मौलिक ग्रंथों में सभी जगह मिलता है,...
सूर्य को ग्रहों का राजा कहा जाता है। जो ग्रह सूर्य से एक निष्चित अंषों पर स्थित होने पर अपने राजा के तेज और ओज से ढंक जाता है और क्षितिज पर दृष्टिगोचर नहीं होता तो उसका प्रभाव नगण्य हो जाता है। भारतीय फलित ज्योतिष में ग्रहों की दस अवस्थाएं हैं। दीप्त, स्वस्थ, मुदित, शक्त, षान्त, पीडित, दीन, विकल, खल और भीत। जब ग्रह अस्त हो तो विकल कहलाता है। अस्त होने का दोष सभी ग्रहांे को है। सूर्य से ग्रह के बीच एक निष्चित अंषों की दूरी रह जाने...
दाम्पत्य जीवन की गाड़ी पति-पत्नी रूपी दो पहियों पर चलती है। दोनों में से एक भी यदि उदासीन हो तो दाम्पत्य सुख में कमी आने लगती है। मात्र दैहिक आकर्षण ही रिश्तों को बनाए रखने के लिए काफी नहीं है दोनों के बीच आपसी लगाव एवं विश्वास ही सफल दाम्पत्य जीवन की निशानी है। प्रस्तुत है इसी कशमकश को पेश करती एक और कथा...ज्योतिष शास्त्र में शनि अपूर्णता, हीनता अभाव आदि का द्योतक है। शनि एक पृथकतावादी ग्रह भी है और अपनी दशा अथवा अंतर्दशा एवं साढ़ेसाती में अकारक होकर...