न केवल भारतीय सनातन परम्परा में बल्कि शिव की अन्य संस्कृतियों में भी ‘आदि-मिथुन’ की कल्पना की गई है। चाहे वह पाश्चात्य संस्कृति में उपलब्ध एडम और ईव हों अथवा स्वयम्भुवन् मनु और सद्रूपा। मानव जाति को स्त्री-पुरुष द्वन्द्वात्मक स्वरूप में ही स्वीकृत किया गया है। मानव जाति और सभ्यता के लाखों वर्षों के विकासक्रम में स्त्री-पुरुष के अतिरिक्त एक अन्य प्रकृति भी अस्तित्व में आ गई है। यह प्रकृति स्त्री और पुरुष के मध्य की है और अपने हाव-भाव, व्यवहार, चिंतन, पसंद-नापसंद के आधार पर इन्होंने समाज में अपना...
शास्त्रों में सेना के व्यवसाय का संबंध क्षात्र धर्म से है। इस धर्म को भगवद्गीता में इस प्रकार परिभाषित किया गया है- शौर्यं तेजो धृतिर्दाक्षयं युद्देचाप्यपलायनम् । दानमीश्वरभावश्च क्षात्रं कर्म स्वभावजम्।। यह सभी गुण परंपरागत रूप से मंगल ग्रह से जुड़े होते हैं। मंगल शक्ति, पराक्रम, साहस व शौर्य का प्रतीक है। सेना विभाग में उत्कृष्टता सिद्ध करने के लिए साहस सबसे बड़ी सम्पदा है। मंगल प्रधान व्यक्ति अपनी प्रतिभा को प्रत्येक ऐसी जगह पर आसानी से सिद्ध कर लेता है जहां वीरता ही श्रेष्ठता का मापदण्ड हो। ज्योतिष में...