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जानें,केतु ग्रह के प्रभाव और पहला घर

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केतु ग्रह

केतु नेकी का फरिश्ता, सफर का मालिक और अच्छे प्रभाव देने वाला ग्रह है। जब केतु-बुध मिलते है तो कुत्ते की जान सिर में होती है अर्थात् बृहस्पति तथा मंगल के न होने की दशा मे यह अच्छे प्रभाव वाला होगा। घर में सदस्यों की संख्या अच्छी होगी। ऐसे जातक को दुनियाबी कामों में इधर-उधर सलाह लेने और दौड़-धूप के लिए 48 वर्ष तक का समय उत्तम होता है। पीला बृहस्पति, लाल,जर्द रंग बुध तीनों ग्रहों का मिला स्वरूप् तीन कुत्तों का होगा जो जमाने का मालिक तथा पापी-छलिया होगा।यह जातक को कष्ट देने के बजाय अन्त समय तक साथ देता है। इसके लिए एक संतान शुभ मानी जाती है। यह खानदान का नाम रोशन करने वाला होता है।

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मंदी के समय केतु धोखेबाज और छलावा बन जाता है। यह जातक को जान से नहीं मारता। परन्तु जहां इसका जन्म हो, वहां धन की हानि अवश्य कराता है। केतु स्त्री, मकान तथा बच्चों की हालत मंद रखता है। यदि मंदी के समय टेवे में चन्द्र-शुक्र इकट्ठे हों तो बच्चे का जिस्म सूखने लगता है। ऐसे में एक-एक घंटे बाद मौसम के अनुसार बच्चे का शरीर सूखना बंद हो जाता है। बुध के योग से केतु का प्रभाव अनिष्टदायक होता है। अतः इसका उपाय करना भी आवश्यक हो जाता है। बारह घरों के अनुसार केतु का फल निम्नलिखित है-

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पहला घर

पहले घर में केतु के होने से जातक बच्चे पर बच्चे पैदा करता जाता है। आज की चिन्ता उसे नहीं होती, वह कल पर मरता रहता है। कामदेव की गर्मी और दौलत की चाह एक साथ उसे खींचती है। उसका दम बार-बार खुश्क होता है। वह पिता की मंदी दशा में भी हर तरह का ख्याल सबसे पहले करता है।वह उत्तम कोटि का पितृ-भक्त होता है। केतु का पहले घर में मंदा प्रभाव कम ही होता है। बच्चों को गुड़ इत्यादि खरीदने के लिए तांबे का पैसा देना विष के समान होता है जब भी केतु खाना नं. 1 में आए तो लडका, दोहता, भांजा इत्यादि पैदा होना इसकी निशानी है।

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अगर पहले खाने में केतु तथा बारहवें खाने में मंगल हो तो केतु मंदा फल नहीं देता। वह छठवें-सातवे खाने वाले ग्रहों एवं भावों पर अपना बुरा असर डालता है। परन्तु उस समय सूर्य जातक की मदद करता है। शनि का उपाय करने से उसे किसी प्रकार की परेशानी नहीं होती। मंदी के समय बुध सम्बन्धी वस्तुओं काप्रभाव काफी मंदा होता है। बृहस्पति पर मंगल के मंदे प्रभाव से जातक को अकारण इधर-उधर परेशान हालत में भटकना पड़ता है।