उपाय लेख

जानें क्या है ? पटल, स्तोत्र, कवच…

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सहस्रनाम उपासना हेतु इष्ट-देव के सहस्र अर्थात् हजार नामों का संकल्प इस स्तोत्र में होता है।ये हजार नाम ही विविध प्रकार की पूजाओं में एकत्रित पाठ के रूप् में प्रयोग में लाए जाते हैं। ये हजार नाम मन्त्रों से युक्त होते हैं तथा इनमें देवता के गुण, कर्म, स्वभाव का वर्णन आता है। अतः इनकी स्वतन्त्र उपासना भी होती है। ये मन्त्ररूप् में होते हैं।

पटल
इसमें देवता का महत्व, इच्छित कार्य की सिद्धि के हेतु जप सूचना एवं उपयोगी सामग्री का निर्देश होता है।

स्तोत्र

देवता की आराधना की जाती है उसकी स्तुति का संग्रह ही स्तोत्र होता है। प्रधान रूप से स्तोत्रों में देवता का गुणगान और प्रार्थना होती है। स्तोत्रों में यंत्र बनाने का विधान, औषधि प्रयोग, मन्त्र प्रयोग आदि भी होते है।

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कवच

छेवी देवताओं की उपासनाओं में उनके नामों द्वारा उनका अपने शरीर में निवास तथा रक्षा की प्रर्थना करते हुए जो न्यास किए जाते हैं, वे कवच कहे जाते हैं। ये कवच न्यास और कवच स्तोत्रों के पाठ द्वारा सिद्ध होते हैं। सिद्ध होने पर साधक किसी भी रोगी पर इनके द्वारा झाड़ने-फूॅकने की क्रिया करता है। कवच स्त्रोत पाठ जप के पश्चात् होता है।

पद्धति

पद्धति में उपासना या तप की शास्त्रीय विधि, नियम का निर्देश आदि होता है जिसमें शौचादि से पूजा, जाप-सम्पन्न होने पर्यन्त के मन्त्र आदि होते हैं। किसी के निमित्त होने वाली तथा विशिष्ट पूजा, दोनों का प्रयोग और नियम तथा किए जाने वाले आयोजनों की जानकारी इसमें प्राप्त होती है।इस प्रकार उपासना, अराधना के ये पाॅच अंग माने जाते हैं। इन पाॅच अंगो से युक्त पूजा का विधान है।