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क्यों लगाया जाता है मंदिर में परिक्रमा ?जानिए

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क्यों लगाया जाता है मंदिर में परिक्रमा ?

मंदिर में जाकर ईश्वर के दर्शन के बाद मंदिर के चारों ओर परिक्रमा तो आपने भी जरूर की होगी, लेकिन क्या आप इसका कारण जानते हैं. अगर नहीं तो यहां पढ़ें.आपने इस बात पर जरूर गौर किया होगा कि जब भी हम मंदिर जाते हैं तो ईश्वर का दर्शन करने के बाद मंदिर के चारों ओर प्रदक्षिणा करते हैं. प्रदक्षिणा का अर्थ है परिक्रमा (Parikrama) करना. सिर्फ मंदिर के ही नहीं बल्कि कई लोग पवित्र वृक्ष के चारों ओर भी परिक्रमा करते हैं, कई लोग यज्ञशाला की परिक्रमा करते हैं और मंदिरों (Temple) के साथ ही गुरुद्वारे (Gurudwara) में भी कई लोग पवित्र ग्रंथ के चारों ओर चक्कर लगाते हैं और परिक्रमा करते हैं. इसके अलावा सूर्य देव को जल अर्पित करने के बाद भी कई लोग परिक्रमा करते हैं. आपने भी मंदिर में कभी न कभी ऐसा जरूर किया होगा लेकिन शायद ऐसा करने के पीछे वजह क्या है, इस पर गौर नहीं किया होगा.

           “धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, मंदिर और भगवान के आसपास परिक्रमा करने से सकारात्मक ऊर्जा शरीर में प्रवेश करती है. और ये ऊर्जा व्यक्ति के साथ घर तक आती है जिससे सुख-शांति बनी रहती है. मंदिर में हमेशा परिक्रमा घड़ी की सुई की दिशा में करनी चाहिए”

परिक्रमा से प्राप्त होती है सकारात्मक ऊर्जा

धर्म शास्त्रों और धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जब कोई व्यक्ति किसी मंदिर, भगवान की मूर्ति या शक्ति स्थान के चारों ओर चक्कर लगाकर परिक्रमा करता है तो इससे सकारात्मक ऊर्जा (Positive Energy) व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करती है. इससे न सिर्फ उस व्यक्ति के जीवन में शुभता आती है बल्कि वह सकारात्मक ऊर्जा उसके साथ ही उस व्यक्ति के घर में भी प्रवेश करती है जिससे घर में सुख-शांति आती है. इसके अलावा पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब गणेश जी (Lord Ganesh) और कार्तिकेय (Lord Kartikay) के बीच संसार का चक्कर लगाने की प्रतिस्पर्धा हुई तब गणेश जी ने शिवजी और माता पार्वती की 3 बार परिक्रमा की थी. इसी वजह से आम श्रद्धालु भी मंदिर में पूजा के बाद सृष्टि के निर्माता की परिक्रमा करते हैं. साथ ही मंदिर या किसी शक्ति स्थान की परिक्रमा करने से मन शांत होता है और जीवन में खुशियां आती हैं.

इस दिशा में परिक्रमा लगानी चाहिए

अगर आप मंदिर या किसी शक्ति स्थान की सकारात्मक ऊर्जा को बेहतर तरीके से ग्रहण करना चाहते हैं तो आपको घड़ी की सुई की दिशा में (Clockwise) नंगे पांव परिक्रमा लगानी चाहिए. अगर परिक्रमा करते वक्त आपके कपड़े गीले हों तो इससे आपको और अधिक लाभ हो सकता है. कई मंदिरों में आपने लोगों को जलकुंड में स्नान करने के बाद गीले कपड़ों में ही मंदिर की परिक्रमा करते देखा होगा. इसका कारण ये है कि ऐसा करने से उस पवित्र स्थान की ऊर्जा को अच्छे तरीके से ग्रहण किया जा सकता है.

कितनी बार करनी चाहिए परिक्रमा

– देवी मां के मंदिर की 1 परिक्रमा करनी चाहिए
– भगवान विष्णु और उनके सभी अवतारों की 4 परिक्रमा करनी चाहिए
– गणेश जी और हनुमान जी की 3 परिक्रमा करनी चाहिए
– शिवजी की आधी परिक्रमा करनी चाहिए क्योंकि शिवजी पर किए गए अभिषेक की धारा को लाघंना शुभ नहीं होता
– पीपल के पेड़ की 11 या 21 परिक्रमा करनी चाहिए

परिक्रमा का महत्व ज्योतिषाचार्या प्रज्ञा वशिष्ठ के मुताबिक परिक्रमा को शोडशोपचार पूजा का अभिन्न अंग माना गया है. लेकिन परिक्रमा करना कोई आडंबर या अंधविश्वास नहीं है, बल्कि विज्ञान सम्मत है. दरअसल विधि-विधान के साथ प्रतिष्ठित देव प्रतिमा के कुछ मीटर के दायरे में सकारात्मक ऊर्जा विद्यमान रहती है।

परिक्रमा करने से वो ऊर्जा व्यक्ति के शरीर में पहुंचती है. क्यों की जाती है दक्षिणावर्ती परिक्रमा दक्षिणावर्ती परिक्रमा करने के पीछे का तथ्य ये है कि दैवीय शक्ति की आभा मंडल की गति जिसे हम सामान्य भाषा में सकारात्मक ऊर्जा कहते हैं, वो दक्षिणावर्ती होती है. यदि लोग इसके विपरीत दिशा में वामवर्ती परिक्रमा करेंगे तो उस सकारात्मक ऊर्जा का हमारे शरीर में मौजूद ऊर्जा के साथ टकराव पैदा होता है. इससे हमारा तेज नष्ट होता है. इसलिए वामवर्ती परिक्रमा को शास्त्रों में वर्जित माना गया है।

ऐसे शुरू हुआ था परिक्रमा का सिलसिला वैसे तो किसी परिक्रमा का चलन तमाम धर्मो में है. लेकिन इसका प्राचीनतम उल्लेख गणेश जी की कथा में मिलता है. जब उन्होंने अपने माता-पिता के चारों ओर घूमकर सात बार परिक्रमा लगाई थी और इसी के बाद उन्हें प्रथम पूज्य कहा गया था।

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