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नक्षत्र से जाने आप का दिन शुभ होगा या अषुभ

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नक्षत्र से जाने आप का दिन शुभ होगा या अषुभ –
नक्षत्र संस्कृत का शब्द है, जिसका अर्थ है न क्षरति न सरति इति नक्षत्रः अर्थात् न हिलने वाला न चलने वाला, जो स्थिर हों, ग्रहों एवं नक्षत्रों में यहीं प्रमुख भेद है कि ग्रह तो भ्रमणषील हैं किंतु नक्षत्र स्थिर। भारतीय ज्योतिष में राषि-पथ एक स्थिर नक्षत्र से प्रारंभ होता है इसलिए नक्षत्रवृत कहलाता है। राषिपथ एक अंडाकार वृत जैसा है जोकि 360 डिग्री का है। इन 360 अंषों को 12 समान भागों में बांटा गया है और प्रत्येक 30 डिग्री के एक भाग को राषि कहा गया है। इन 12 राषियों के नाम हैं मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृष्चिक, धनु, मकर, कुंभ तथा मीन तथा इन्हीं 360 डिग्री को 27 समान भागों में बांटा गया है एवं प्रत्येक 13.20 समान भागों को नक्षत्र कहा गया है। इन 27 नक्षत्रों को भी प्रत्येक 4 बराबर भागों में 3.20 के समान भागों में बांटा गया है इस प्रकार एक राषि में सवा दो नक्षत्र आते हैं। अर्थात् एक राषि में सवा दो नक्षत्र का समावेष होता है। इन 27 नक्षत्रों के नाम हैं क्रमषः अष्विनी, भरणी, कृतिका, रोहिणी, मृगषिरा, आद्रा, पुनर्वसु, पुष्य, आष्लेषा, मघा, पूर्वा फाल्गुनी, उत्तरा फाल्गुनी, हस्त, चित्रा, स्वाति, विषाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, मूल, पूर्वाषाढ़ा, उत्तराषाढ़ा, श्रवण, धनिष्ठा, शतभिषा, पूर्वा भाद्रपद, उत्तरा भाद्रपद, रेवती। जन्म के समय चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है वहीं व्यक्ति के जन्मनक्षत्र कहलाता है। सरल शब्दों में उसे जन्मतारा भी कहा जाता है। यह जन्मनक्षत्र व्यक्ति के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारतीय ज्योतिषषास्त्र में नक्षत्र के अनुसार ही जातक का नाम, नाड़ी, योनि, गोत्र एवं गण आदि की विवेचना की जाती है। भारतीय ज्योतिष में इन्हीं नक्षत्रों के आधार पर मूहुर्तगणना का विधान है। अतः व्यक्ति के दैनिक जीवन में भी शुभ और अषुभ दिन का निर्धारण इन्हीं नक्षत्रों के आधार पर किया जा सकता है इसका वर्गीकरण जन्म नक्षत्र से प्रारंभ कर 27 नक्षत्रों को तीन-तीन के बराबर भाग में रखकर कुल 9 समूहों में विभाजित किया जाता है। इस प्रकार 9 समूहों के नक्षत्रों के आधार पर एक सारणी का निर्माण कर शुभ तथा अषुभ का विष्लेषण किया जा सकता है जिसमें 1. जन्मतारा 2. संपततारा 3. विपततारा 4. क्षेमतारा 5. प्रत्यरीतारा 6. साधकतारा 7. वधतारा 8. मैत्रतारा 9. अतिमैत्रतारा. अतः जब जन्मतारा का क्रम आता है तो व्यक्ति को कुछ कामों में शुभ तथा कुछ कार्यो में अषुभ फल की प्राप्ति हेाती है। वहीं तीसरातारा विपततारा, पांचवा प्रत्यरीतारा सांतवा वध तारा का क्रम आता है तो व्यक्ति को अषुभ फल की प्राप्ति होती है। आठंवा तथा नवां तारा का क्रम अतिषुभ फल देने वाला होता है। इस प्रकार व्यक्ति का दिन शुभ होगा या अषुभ इसकी जानकारी उस तारासमूह के आधार पर व्यक्तिविषेष के जन्मतारा के आधार पर किया जा सकता है।

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