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ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति

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विष्णु पुराण में कहा गया है की
अव्यक्ताद्व्यक्तयः सर्वाः प्रभवन्त्यहरागमे।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके।।
संपूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में अव्यक्त से अर्थात् ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेशकाल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में लीन हो जाते हैं।
जिस प्रकार समुद्र में बुलबुले हर क्षण पैदा होते रहते हैं और उसी में विलय होते रहते हैं इसी प्रकार ब्रह्मांड में आकाशीय पिंड उत्पन्न होकर, समाप्त होते रहते हैं। जब वे उत्पन्न होते हैं तो वे किसी पिंड से जन्म नहीं ले रहे हैं और न ही वे किसी पिंड में विलय कर रहे हैं। बल्कि शून्य से कोई पिंड उत्पन्न होता है और करोड़ों-अरबों सालों तक रहकर शून्य में विलय हो जाता है। यही है हिंदू शास्त्र दर्शन।
वैज्ञानिकों में सृष्टि की उत्पत्ति आज भी एक रहस्य है। सृष्टि के पहले क्या था इसकी रचना किसने, कब और क्यों की? ऐसा क्या हुआ जिससे इस सृष्टि का निर्माण हुआ। 1929 में एडवीन हब्बल ने एक आश्चर्यजनक खोज की। उन्होंने पाया कि अंतरिक्ष में आकाश गंगायें और अन्य आकाशीय पिंड तेजी से एक-दूसरे से दूर हो रहे हैं। दूसरे शब्दों में ब्रह्मांड का विस्तार हो रहा है। इसका मतलब यह है कि इतिहास में ब्रह्मांड के सभी पदार्थ आज की तुलना में एक-दूसरे से और भी पास रहे होंगे। एक समय ऐसा रहा होगा जब सभी आकाशीय पिंड एक ही स्थान पर रहे होंगे। शायद दस से बीस खरब साल पूर्व ब्रह्मांड के सभी कण एक-दूसरे से एकदम पास-पास थे। वे इतने पास-पास थे कि वे सभी एक ही जगह थे, एक ही बिंदु पर। सारा ब्रह्मांड एक बिंदु की शक्ल में था। यह बिंदु अत्यधिक घनत्व का अत्यंत छोटा बिंदु था।
ब्रह्मांड का यह बिंद-रूप अपने अत्यधिक घनत्व के कारण अत्यंत गर्म रहा होगा। इस स्थिति में किसी अज्ञात कारण से अचानक ब्रह्मांड का विस्तार होना शुरु हुआ। एक महा विस्फोट के साथ ब्रह्मांड का जन्म हुआ और ब्रह्मांड में पदार्थ ने एक-दूसरे से दूर जाना शुरु कर दिया।
महा विस्फोट के 10-43 सैकिंड के बाद केवल अत्यधिक ऊर्जा का फोटान कणों के रूप में ही अस्तित्व था। 10-34 सैंकिंड के पश्चात् क्वार्क और एंटी क्वार्क जैसे मूलभूत कणों का निर्माण हुआ। इस समय ब्रह्मांड का आकार एक संतरे के आकार का था। 10-10 सैकिंड के पश्चात् एंटी क्वार्क, क्वार्क से टकराकर पूर्ण रूप से खत्म हो चुके थे। इस टकराव से प्रोटोन और न्यूट्राॅन का निर्माण हुआ। 1 सेकेंड के पश्चात् जब तापमान 10 खरब डिग्री सेल्सियस था, ब्रह्मांड ने आकार लेना शुरू किया। उस समय प्रोटोन और न्यूट्राॅन ने एक दूसरे के साथ मिलकर तत्वों का केंद्र बनाना शुरू किया जिसे हाइड्रोजन, हीलियम आदि के नाम से जानते हैं।
तीन मिनट पश्चात् तापमान गिरकर 1 खरब डिग्री सेल्सियस हो चुका था। तत्व और ब्रह्मांडीय विकिरण का निर्माण हो चुका था। यह विकिरण आज भी मौजूद है, इसे महसूस किया जा सकता है। 3 लाख वर्ष पश्चात् विस्तार करता हुआ ब्रह्मांड अभी भी आज के ब्रह्मांड से मेल नहीं खाता था। तत्व और विकिरण एक दूसरे से अलग होना शुरु हो चुके थे। इसी समय इलेक्ट्राॅन, केंद्रक के साथ में मिलकर परमाणु का निर्माण कर रहे थे और परमाणु मिलकर अणु बना रहे थे। एक खरब वर्ष पश्चात् ब्रह्मांड का एक निश्चित आकार बनना शुरु हुआ था। इसी समय क्वासर प्रोटोग्लैक्सी (आकाश गंगा का प्रारंभिक रूप) तारों का जन्म होने लगा था। तारे हाइड्रोजन जलाकर भारी तत्वों का निर्माण कर रहे थे।
आज महा विस्फोट के लगभग 15 खरब साल पश्चात् तारों के साथ उनका सौर मण्डल बन चुका है, परमाणु मिलकर कठिन अणु बना चुके हैं जिसमें कुछ कठिन अणु जीवन के मूलभूत कण हैं।
ब्रह्मांड का अभी भी विस्तार हो रहा है। आकाशगंगाओं और आकाशीय पिंडों का समूह अंतरिक्ष में एक दूसरे से दूर जाने की गति पहले से कम है। भविष्य में आकाशीय पिंडों का गुरुत्वाकर्षण इस विस्तार की गति पर रोक लगाने में सक्षम हो जायेगा। इसी समय विपरीत प्रक्रिया का प्रांरभ होगा अर्थात् संकुचन का। सभी आकाशीय पिंड एक-दूसरे के और नजदीक आते जायेंगे और अंत में एक बिंदु के रूप में संकुचित हो जायेंगे। तदुपरांत एक और महा विस्फोट होगा और एक नया ब्रह्मांड बनेगा। विस्तार की प्रक्रिया एक बार और प्रारंभ होगी।यह प्रक्रिया अनादि काल से चल रही है। हमारा ब्रह्मांड इस विस्तार और संकुचन की प्रक्रिया में बने अनेकों ब्रह्मांडों में से एक है। ब्रह्मांड के संकुचित होकर एक बिंदु में बन जाने की प्रक्रिया को महा-संकुचन के नाम से जाना जाता है। हमारा ब्रह्मांड भी एक ऐसे ही महा संकुचन में नष्ट हो जाएगा। जो एक महाविस्फोट के द्वारा नए ब्रह्मांड को जन्म देगा। यह संकुचन की प्रक्रिया आज से 1 खरब 50 अरब वर्ष पश्चात् प्रारंभ होगी।
वैज्ञानिकों ने यह तो जान लिया कि सृष्टि का निर्माण महा विस्फोट से प्रारंभ हुआ। ब्रह्मांड में पदार्थ की संरचना कैसे हुई? इसके बारे में उन्होंने स्टेन्डर्ड माॅडल पेश किया जिसमें 12 फरमियान व 12 बोसोन होते हैं। एक बोसोन जिसे हिग्स बोसोन कहते हैं, सभी अणुओं को भार प्रदान करता है। ये 24 पार्टिकल आधार हैं इलेक्ट्राॅन, प्रोटोन, न्यूट्रोन बनाने के जिनसे अणु (एटम) बनता है और इन अणुओं से पदार्थ बनता है। हिग्स बोसोन की परिकल्पना 1964 में कर दी गई थी लेकिन इसे किसी ने देखा नहीं था। क्योंकि यह मात्र 3 ग 10-25 सैकिंड ही रह पाता था। इसको उत्पन्न करने के लिए बहुत उच्च ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
अतः इस बोसोन को देखने के लिए स्विट्जरलैंड और फ्रांस की सीमा पर जमीन से 300 फुट नीचे 27 कि.मी. लंबी सुरंगनुमा प्रयोगशाला में लार्ज हेड्रोन कोलाइडर (एल.एच.सी) में असीम ऊर्जा सहित न्यूट्रोनों की जोरदार टक्कर करायी गयी जिससे हिग्स बोसोन पैदा हुए एवं उनको पहली बार 4 जुलाई 2012 को इस प्रयोगशाला में देखा गया। इस प्रयोग में लगभग वैसी ही स्थिति पैदा की गयी जो महा विस्फोट के समय थी और जिससे सृष्टि की उत्पत्ति हुई क्योंकि हिग्स बोसोन के कारण ही पदार्थ में भार पैदा हुआ, अतः यह कण सृष्टि रचना में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। कण-कण में भगवान की मान्यता सनातन है इसे स्वीकार करते हुए वैज्ञानिकों ने इसे ‘‘ईश्वरीय कण’’ अर्थात् गौड पार्टीकल का नाम प्रदान किया।
इस कण को जान लेने के बाद वैज्ञानिकों को पदार्थ अर्थात् सृष्टि की उत्पत्ति के बारे में पता चल गया है और धीरे-धीरे वैज्ञानिक उसी मत की ओर अग्रसर हो रहे हैं जिसे हमारे ऋषि हजारों साल पहले बता चुके हैं कि सृष्टि शून्य से उत्पन्न हुई है और शून्य में ही समा जायेगी।

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