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मूर्तिकला का अनूठा केंद्र: मल्हार

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मल्हार नगर छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में अक्षांक्ष 21०-90० उत्तर तथा देशांतर 82०-20० पूर्व में 32 किलोमीटर की दूरी पर दक्षिण-पश्चिम में स्थित है। बिलासपूर से रायगढ़ जाने वाली सडक़ पर 18किलोमिटर दूर मस्तूरी है। वहां से मल्हार, 14 कि. मी. दूर है। कोशाम्बी से दक्षिण-पूर्वी समुद्र तट की ओर जाने वाला प्राचीन मार्ग भरहुत, बांधवगढ़, अमरकंटक, खरौद, मल्हार तथा सिरपुर ( जिला रायपुर) से होकर जगन्नाथपुरी की ओर जाता था। मल्हार के उत्खनन में ईसा की दूसरी सदी की ब्राम्ही लिपी में आलेखित एक मृमुद्रा प्राप्त हुई है, जिस पर गामस कोसलीया लिखा है। कोसली या कोसला ग्राम का तादाम्म्य मल्हार से 16कि. मी. के अंतर पर उत्तार-पूर्व में स्थित कोसला ग्राम से किया जा सकता है। कोसला गांव में पुराना गए, प्रचारी तथा परिखा आज भी विद्यमान हैं, जो उसकी प्राचीनता को मौर्यों से भी पूर्व ले जाती है। वहां कुषाण शासक विमकैडफाइसिस का एक सिक्का भी मिला है।

सातवाहन वंश:- सातवाहन शासकों की गजां मुद्राण मल्हार-उत्खनान से प्राप्त हुई है। रायगढ़ जिले से एक सातवाहन शासक आपीलक का सिक्का प्राप्त हुआ था। वेदिश्री के नाम की मृणमुद्रा मलहार प्राप्त हुई हैं। इसके अतिरिक्त सातवाहन कालीन कई अभिलेख गुंजी, किसरी, कोणा मल्हार, सेमरसल, दुर्ग, आदि स् थलों से प्राप्त हुए है। छत्तीसगढ़ क्षेत्र से कुषाण-शासकों के सिक्के भी मिले है। उनमें विमकैडफाइसिस तथा कनिष्ठ प्रथम के सिक्के उल्लेखनीय है। यौधेयों के भी कुछ सिक्के इस क्षेत्र मेंप्राप्त हुए हैं। मल्हार उत्खन्न से ज्ञात हुआ है कि इस क्षेत्र में सुनियोजित नगर-निर्माण का प्रारंभ सातवाहन-काल में हुआ। इस काल के ईंट से बने भवन एवं ठपपांकित मृद्भाण्ड यहाँ मिलते हैं। मल्हार के गढी क्षेत्र में राजमहल एवं अन्य संभ्रांत जनों के आवास एवं कार्यालय रहे होंगे।

शरभपुरीय राजवंश :- दक्षिण कोसल में कलचुरी-शासन के पहले दो प्रमुख राजवंशों का शासन रहा । वे हैं : शरभपुरीय तथा सोमवंशी । इन दोनों वंशो का राज्यकाल लगभग 325 से 655 ई. के बीच रखा जा सकता है। धार्मिक तथा ललित कलाओं के क्षेत्र में यहां विशेष उन्नति हुई । इस क्षेत्र में ललित कला के पाँच मुख्य केन्द्र विकसीत हुए 1 मल्हार, 2 ताला, 3 खरौद 4 सिरपुर तथा 5 राजिम।

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कलचुरी वंश :- नवीं शताब्दी के उत्तारार्ध्द में त्रिपुरी के कलचुरी-शासक कोकल्लदेव प्रथम के पुत्र शंकरगण ने डाहल मंडल से कोसल पर आक्रमण किया। पाली पर विजय प्राप्त करने के बाद उसने अपने छोटे भाई को तुम्माण का शासक बना दिया। कलचुरियों की यह विजय स्थयी नहीं रह पायी। चक्रवती सोमवंशी शासक अब तक काफी प्रबल हो गये थे। उन्होंने तुम्माण से कलचुरियों को निष्कासित कर दिया। लगभग ई. 1000 में कोकल्लदेव द्वितीय के 18पुत्रों में से किसी एक के पुत्र कलिंगराज ने दक्षिण कोसल पर पुन: आक्रमण किया तथा तत्कालीन परवर्ती सोमवंशी नरेशों को पराजित कर कोसल क्षेत्र पर अधिकार कर लिया। कलिंगराज ने पुन: तुम्माण को कलचुरियों की राजधानी बनाया। कलिंगराज के पश्चात् कमलराज, रत्नराज प्रथम तथा पृथ्वीदेव प्रथम क्रमश: कोसल शासक हुए। मल्हार पर सर्वप्रथम कलचुरि-वंश का शासन जाजल्लदेव प्रथम के समय में स्थापित हुआ। पृथ्वीदेव द्वितीय के राजकाल में मल्हार पर कलचुरियों का मांडलिक शासक ब्रम्हादेव था। पृथ्वीदेव के पश्चात् उसके पुत्र जाजल्लदेव द्वितीया के समय में सोमराज नामक ब्राम्हण ने मल्हार में प्रसिद्व केदारेश्वर मंदिर का निर्माण कराया। यह मंदिर अब पातालेश्वर मंदिर के नाम प्रसिध्द है।

मराठा शासन :- कलचुरी वंश का अंतिम शासक रघुनाथ सिंह था। ई. 1742 में नागपुर का रघुजी भोंसले अपने से सेनापति भास्कर पंत के नेतृत्व मे उडीसा तथा बंगाल पर विजय हेतु छत्तीसगढ़ से गुजरा। उसने रतनपुर पर आक्रमण किया तथा उस पर विजय प्राप्त कर ली । इस प्रकार छत्तीसगढ़ से हैह्यवंशी कलचुरियों का शासन लगभग सात शताब्दियों पश्चात समाप्त हो गया।

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कला :- उत्तार भारत से दक्षिण-पूर्व की ओर जाने वाले प्रमुख मार्ग पर स्थित होने के कारण मल्हार का महत्व बढ़ा । यह नगर धीरे -धीरे विकसित हुआ तथा वहाँ शैव, वैष्णव वजैन धर्मावलंबियों के मंदिरों, मठों व मूर्तियों का निर्माण बडत्रे स्तर पर हुआ । मल्हार में चतुर्भुज विष्णु की एक अद्वितीय प्रतिलिपी मिली है। उस पर मौर्यकालीन ब्राम्हीलीपि लेख अंकित है। इसका निर्माण -समय लगभग ई. पूर्व 200 है। मल्हार तथा उसके समीपतवर्ती क्षेत्र से विशेषत: शैव मंदिर के अवशेष मिले जिनसे इय क्षेत्र में शैव, कार्तिकेय, गणेश, स्क माता, अर्धनारिश्वर आदि की उल्लेखनीय मूर्तियां यहां प्राप्त हुई है। एक शिलापटट पर कच्छप जातक की कथा अंकित है। शिला पटट पर सूखे तालाब से एक कछुए को उडाकश जलाशय की और ले जाते हुए दो हंस बने है। दूसरी कथा उलूक-जातक की है। इसमें उल्लू को पक्षियों का राजा बनाने के लिए उसे सिंहासन पर बिठाया गया है।
सातवीं से दसवीं शताब्दी के मध्य विकसित मल्हार की मूर्तिकला में गुप्तयुगीन विशेषताएं स्पष्ट पारिलक्षित है। मल्हार में बौध्द स्मारकों तथा प्रतिमाओं का निर्माण इस काल की विशेषता है। बुध्द, बोधिसत्व, तारा, मंजुश्री, हेवज आदि अनेक बौध्द देवों की प्रतिमाएं मल्हार में मिली है। उत्खनन में बौध्द स्मारकों तथा प्रतिमाओं का निर्माण इस काल की विशेषता है। बुध्द, बोधिसत्व, तारा, मंजुश्री, हेवज आदि अनेक बौध्द देवों की प्रतिमाएं मल्हार में मिली हैं। उत्खन्न में बौध्द देवता हेवज का मदिर मिला है। इससे ज्ञात होता है कि ईसवी छठवीं सदी के पश्चात यहाँ तांत्रिक बौध्द धर्म का विकास हुआ। जैन तीर्थंकारों, यक्ष-यक्षिणियों, विशेषत: अंबिका की प्रतिमांए भी यहां मिली हैं।
दसवीं से तेरहवीं सदी तक के समय में मल्हार में विशेष रूप् से शिव-मंदिरों का निर्माण हुआ । इनमें कलचुरी संवत् 919 में निमर्ति केदारेश्वर मंदिर सर्वाधिक महत्तवपूर्ण है। इस मंदिर का निर्माण सोमराज नामक एक ब्राम्हण द्वारा कराया गया । धूर्जटि महादेव का अन्य मंदिर कलचुरि नरेश पृथ्वीदेव द्वितीय के शासन-काल में उसके सामंत ब्रम्हदेव द्वारा कलचुरी सवत 915 में बनवाया गया। इस काल में शिव, गणेश, कार्तिकेय, विष्णू, लक्ष्मी, सूर्य तथा दुर्गा की प्रतिमाएं विशेष रूप से निर्मित की गयी। कलचुरी शासकों, उनकी रानियों आचार्यो तथा गणमान्य दाताओं की प्रतिमाओं का निर्माण उल्लेखनीय हे। मल्हार में ये प्रतिमांए प्राय: काले ग्रेनाइट पत्थर या लाल बलुए पत्थर की बनायी गयी। स्थानीय सफेद पत्थर की बनायी गयी। स्थानीय सफेद पत्थर और हलके-पीले रंग के चूना – पत्थर का प्रयोग भी मूर्ति-निर्माण हेतु किया गया।

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उत्खनन :- विगत वर्षो में हुए उत्खननों से मल्हार की संस्कृति का क्रम इस प्रकार उभरा है।
* प्रथम काल ईसा पूर्व लगभग 1000 से मौर्य काल के पूर्व तक।
* द्वितीय काल – मौर्य -सातवाहन-कुषाध काल (ई. पू 325 से ई. 300 तक)
* तृतीय का – शरभपुरीय तथा सोमवंशी काल (ई. 300 से ई. 650 तक )
* चतुर्थ काल- परवर्ती सोमवंशी काल (ई. 650 से ई. 900 तक )
* पंचम काल – कलचुरि काल (ई. 900 से ई. 1300 तक )

कैसे पहुंचे –
वायु मार्ग – रायपुर ( 148कि. मी. ) निकटतम हवाई अडडा है जो मुंबई, दिल्ली, नागपुर, भुवनेश्वर, कोलकाता, रांची, विशाखापटनम एवं चैन्नई से जुडा हुआ है।
रेल मार्ग – हावडा-मुंबई मुख्य रेल मार्ग पर बिलासपुर ( 32 कि. मी ) समीपस्थ रेल्वे जंक्शन है।
सडक़ मार्ग – बिलासपुर शहर से निजी वाहन अथवा नियमित परिवहन बसों द्वारा मस्तूरी होकर मल्हार तक सडक़ मार्ग से यात्रा की जा सकती है।
आवास व्यवस्था – मल्हार में लोक निर्माण विभाग का दो कमरों से युक्त विश्राम गुह है। बिलासपुर का दो कमरों से युक्त विश्राम गुह है। बिलासपूर नगर में आधुनिक सुविधाओं से युक्त अनेक होटल ठहरने के लिये उपलब्ध हैं।

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