तलाक क्यों होते है: ज्योतिष्य विश्लेषण
वैवाहिक जीवन पति-पत्नी का धर्म सम्मत समवेत संचरण है। इसी मन्तव्य से विवाह संस्कार में वर-वधू आजीवन साथ रहने और कभी वियुक्त नहीं होने के लिए प्रतिश्रुत कराया जाता है: इतैव स्तं मा विपेष्टिं। विश्वमायुव्र्यश्नुतम।। उन्हें एक-दूसरे से पृथक करने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। को दम्पति समनसा वि यूयोदध। वर-वधू का साहचर्य सनातन है। यह संबंध शब्द और अर्थ की भांति अविच्छेद और अन्योन्याश्रित है। प्रायः सप्तम भाव, द्वितीय भाव, सप्तमेश, द्वितीयेश और कारक शुक्र के (स्त्रियों के लिए कारक गुरु) निरीक्षण से वैवाहिक विघटन का पूर्व...