ग्रह विशेष

जानें,स्थिति के अनुरूप शुभ तथा अशुभ ग्रह…

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स्थिति के अनुरूप शुभ तथा अशुभ ग्रह

लग्न, चतुर्थ, सप्तम और दशम भाव के स्वामी, जन्मांग में नैसर्गिक रूप् से शुभ हो अथवा अशुभ, अपनी स्थिति के अनुसार फल प्रदान करते हैं। त्रिक स्थानों के स्वामी, जैसे पंचम व नवम भावाधिपति, ये नैसर्गिक शुभ अथवा अशुभ ग्रह हो अथवा स्थिति के अनुरूप स्थित अशुभ या शुभ ग्रह सदैव अनुकूल फल प्रदान करते है।

तृतीयेश, षष्ठेश व एकादश भाव के स्वामी सदैव प्रतिकूल फल प्रदान करते है।द्वितीयेश अथवा द्वादशेश, अपने भाव का फल न प्रदान करके, उन भावों का फल प्रदान करते हैं, जहाॅ वह स्थित होते है तथा यहाॅ उनके अधिपत्य की दूसरी राशि होती है। उदाहरण के लिए कुम्भ लग्न के लिए शनि द्वादशेश और लग्नेश होता है परन्तु वह लग्नेश होने का ही फल प्रदान करेगा तथा द्वादशेश होने का फल नहीं प्रदान करेगा। इसके अतिरिक्त कुम्भ लग्न के लिए शनि, यदि दशम भावगत हो, तो दशम भाव का फल भी देगा।

सूर्य और चन्द्रमा को एक ही राशि का स्वामित्व प्राप्त है। जब यह द्वितीय व द्वादश भाव के स्वामी हों, तो यह अपने बलाबल तथा शुभ ग्रहो की दृष्टि/स्थिति के अनुसार फल प्रदान करते है। अष्टम भाव का स्वामी सदा अशुभ फल ही प्रदान करता है।
विशेष- उपर्युक्त विश्लेषण में, एकादश भाव के स्वामी को पापी ग्रह की श्रेणी में रखा गया है। हमारे अनुभव के आधार पर एकादश भाव के स्वामी की अशुभता का प्रभाव जातक के स्वास्थ्य पर पड़ता है। जहाॅ तक सम्पत्ति का प्रश्न है, एकादशेश यदि निर्बल न हो, तो शुभ फल ही प्रदान करता है।

स्थिति के अनुरूप् स्थित ग्रहों के विषय में, सम्पत्ति के लिए नियम है कि यदि ग्रह विशेष शुभ है, किसी लग्न हेतु बली भी है, तो अनुकूल और शुभ फल प्राप्त होते है। यदि उपयुक्त ग्रह निर्बल अथवा अशुभ दृष्टि से युक्त है तो विपरीत फल प्राप्त होते हैं और यदि अशुभ ग्रहों से युक्त हो, तो अशुभ फल प्राप्ति में अधिक वृद्धि होगी। यदि किसी लग्न विशेष हेतु कोई ग्रह अशुभ अथवा पापी है, और साथ ही बली भी है, तो जातक के लिए वह अधिक घातक सिद्ध होगा। यदि अशुभ ग्रह निर्बल तथा अशुभत्व प्राप्त हो, तो परिणामों में न्यूवता आती है और शुभ फल प्राप्त होते हैं। यदि यह अशुभ ग्रह से दृष्टि है तो अधिक अनुकुल परिणाम प्राप्त होते है।