व्रत एवं त्योहार

Anant Chaturdashi 2019: अनंत चतुर्दशी व्रत, जानें इस व्रत का महत्‍व, पूजा विधि, कथा और संबंधित जानकारी

306views

Anant Chaturdashi: सितंबर महीने में आने वाले बड़े त्यौहारों और व्रतों में एक अनंत चतुर्दशी भी है। जो 12 सितंबर को पड़ रही है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को ये पर्व मनाया जाता है। इस दिन भगवान हरि की पूजा की जाती है और पूजा के बाद ‘अनंत धागा’ धारण किया जाता है। जिसे रक्षा सूत्र कहा जाता है। मान्यता है कि इस धागे को बांधने से समस्त परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। अनंत चतुर्दशी के दिन कई जगह गणपति का विजर्सन (Ganpati Visarjan) भी किया जाता है और इसी के साथ गणेशोत्सव का समापन भी इसी दिन हो जाता है।

अनंत चतुदर्शी तिथि और शुभ मुहूर्त 

तिथि: 12 सितंबर 2019
पूजा मुहूर्त – चतुर्दशी तिथि आरंभ – सुबह 5 बजकर 6 मिनट से (12 सितंबर 2019)
चतुर्दशी तिथि समाप्त – सुबह 7 बजकर 35 मिनट तक (13 सितंबर 2019)

ALSO READ  श्री महाकाल धाम में महाशिवरात्रि के दुर्लभ महायोग में होगा महारुद्राभिषेक

अनंत चतुर्दशी व्रत का महत्व –

अनंत चतुर्दशी व्रत का जिक्र महाभारत में भी मिलता है। इस व्रत को सभी संकटों मुक्ति दिलाने वाला माना जाता है। ऐसा मान्यता है कि भगवान कृष्ण की सलाह से पांडवों ने भी इस व्रत को उस समय किया था जब ने वन-वन भटक रहे थे। माना जाता है कि इस व्रत को करने से दरिद्रता का नाश होता है और ग्रहों की बाधाएं भी दूर होती है। यह दिन भगवान विष्णु की पूजा अर्चना का होता है। इस दिन सूत या रेशम के धागें में चौदह गांठ लगाकर उसे कुमकुम से रंगकर पूजा उसकी विधि विधान पूजा के बाद उसे कलाई पर बांधा जाता है। कलाई पर बांधे गए इस धागे को ही अनंत कहा जाता है। भगवान विष्णु का रूप माने जाने वाले इस धागे को रक्षासूत्र भी कहा जाता है।

ALSO READ  11 जुलाई को सावन शुरू ,पड़ेंगे 4 सोमवार

अनंत चतुर्दशी व्रत कैसे करें?

इस दिन व्रत रखने वालों को सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान के बाद कलश स्थापित कर लेना चाहिए। इसके पूजा घर में भगवान विष्णु की तस्वीर लगाएं और अनंत धागे को भी रखें। फिर विधिवत पूजा करें और अनंत व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। पूजन में रोली, चंदन, अगर, धूप, दीप और नैवेद्य का होना जरूरी है। इन चीजों को भगवान को समर्पित करते हुए ‘ॐ अनंताय नमः’ मंत्र का जाप करें। पूजा संपन्न करने के बाद अनंत सूत्र को अपने हाथों में बांध लेना चाहिए और उसके बाद प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत के दिन दान करना चाहिए। व्रती इस दिन आटे की रोटियां या पूड़ी बनाते हैं, जिसका आधा भाग वे किसी ब्राह्मण को दान करते हैं और आधा हिस्सा वे स्वयं ग्रहण करते हैं।