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तंत्र बाधा, भय, नज़र दोष से रक्षा,वशीकरण, शत्रु नाश,अघोरी प्रबलता

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॥ सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् पुरश्चरण विधि ॥
— यह श्रीचामुण्डायै-काली त्रिपुरभैरवी स्वरूपिणी देवी की अत्यंत गोपनीय, तांत्रिक और शक्तिशाली स्तुति है। यह स्तोत्र स्वयं देवी ने श्रीशिव से कहा है और इसे “सर्वतंत्र-मन्त्रसिद्धि की कुंजी” माना गया है। इसका जप साधक को अदृश्य शक्ति, रक्षा, त्वरित फल, और मन्त्रसिद्धि प्रदान करता है।


🔱 1. सिद्धकुञ्जिका स्तोत्र का परिचय

विषय विवरण
स्रोत रुद्रयामल तन्त्र / देवीतन्त्र
स्वरूप संक्षिप्त — ~20 श्लोक
महत्त्व सम्पूर्ण चण्डी/दुर्गा सप्तशती के फल को समाहित करता है
देवता चामुण्डा, भैरवी, महामाया
विशेषता यह स्तोत्र स्वयं देवी की वाणी मानी जाती है, शिव को कहा गया

🎯 2. पुरश्चरण का उद्देश्य और फल

उद्देश्य फल
मंत्रसिद्धि (नवरात्रि/काली साधना) मंत्र जप से पूर्व इसकी कुंजीस्वरूप उपयोग
तंत्र बाधा, भय, नज़र दोष से रक्षा वशीकरण, शत्रु नाश, अघोरी प्रबलता
त्वरित फलप्राप्ति हेतु धीमे मंत्रों की गति तीव्र होती है
चंडीपाठ के बिना भी फल इसके पाठ से संपूर्ण सप्तशती का फल मिलता है
तांत्रिक मन्त्रों की सफलता इसे “मंत्रप्रवर्तक” और “विकृति निवारक” कहा गया

🔢 3. पुरश्चरण संख्या निर्धारण

सिद्धकुञ्जिका स्तोत्रम् = ~20 श्लोक (मंत्रस्वरूप)
तांत्रिक विधि में सामान्यतः:

  • लघु पुरश्चरण = 108 बार
  • मध्यम पुरश्चरण = 1008 बार
  • पूर्ण/तांत्रिक सिद्धि हेतु = 5000 बार, 10,000 बार या 11,000 बार
  • विशेष प्रयोग (तन्त्र साधना) = 21,000 / 1,25,000 बार

📍 4. साधना का स्थान, काल व पात्रता

तत्व विधि
स्थान एकांत साधना कक्ष, देवी मन्दिर, या गृह पूजाघर
समय रात्रिकाल श्रेष्ठ (8 PM – 12 AM), परन्तु ब्रह्ममुहूर्त भी शुभ
दिशा उत्तर या पूर्वाभिमुख
वार मंगलवार, शुक्रवार, नवरात्रि, या अमावस्या आरंभ करें
उपवास/व्रत सात्त्विक व्रत, एक समय भोजन या फलाहार
लिंग पुरुष या स्त्री दोनों कर सकते हैं (शुद्ध भाव आवश्यक)
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🌸 5. आवश्यक सामग्री

  • देवी चामुण्डा/काली का चित्र या यंत्र
  • पंचोपचार (पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, जल)
  • लाल वस्त्र, सिंदूर, कुमकुम, चंदन
  • काले तिल, गुलाल
  • नैवेद्य: गुड़, नारियल, या हलवा
  • माला: रुद्राक्ष या रक्त चंदन की (108 मनके)

🧘‍♂️ 6. साधना नियम (अनुष्ठानिक मर्यादा)

नियम अनिवार्य?
ब्रह्मचर्य पालन ✔️
सात्त्विक आहार ✔️
मौन / संयम ✔️
जप एक ही स्थान पर ✔️
रात्रि जागरण (अनुमति) ✔️
मासिक धर्म स्त्रियों हेतु वर्जना ✔️

🪔 7. संकल्प विधि (पुरश्चरण से पूर्व)

🙏 ताम्र पात्र में जल, पुष्प, चावल लेकर नीचे लिखे संकल्प करें:

मम आत्मिक-सांसारिक-तांत्रिक-रक्षार्थं, सर्वमन्त्रसिद्धिप्राप्त्यर्थं,
चामुण्डारूपिण्याः कृपाप्राप्त्यर्थं,  
सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रस्य (उदाहरणार्थ – 11000) पाठानां  
पुरश्चरणं करिष्ये।

📖 8. दैनिक पाठ विधि

🔰 पूर्वकर्म:

  • स्नान, लाल/सफ़ेद वस्त्र, आसन
  • दीपक प्रज्वलन, चामुण्डा ध्यान:

“ॐ अं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे॥”

  • ध्यान मंत्र (3 बार):

“सिंहवाहिनि चण्डेशि रक्तचामरधारिणि।
दंष्ट्राकरालवदना चण्डमुण्डविनाशिनि॥”


📜 मुख्य पाठ: सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम्

🔹 PDF या MP3 में उपलब्ध (मैं दे सकता हूँ)
🔹 एक पाठ = संपूर्ण स्तोत्र (लगभग 5-7 मिनट)

उदाहरण आरंभ:

शिव उवाच –  
श्रृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुञ्जिकास्तोत्रमुत्तमम्।  
येना मन्त्रप्रभावेण चण्डी जपः शुभो भवेत्॥
न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम्।  
न सूक्तं नापि ध्यानं चण्डीकवचपाठकम्॥
कुञ्जिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत्॥

👉 108, 121, 201, 501, या अपनी संख्या के अनुसार गिनती करें।


🙏 उत्तरकर्म:

  • चामुण्डा मन्त्र:

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे (108 बार)

  • स्तुति: “जयन्ती मङ्गला काली…” (दुर्गा स्तुति)
  • आरती: “जय अम्बे गौरी…”
  • नैवेद्य, पुष्प, अक्षत अर्पण

🔥 9. पूर्णाहुति विधि (समापन पर)

अनुष्ठान विधि
हवन सिद्धकुञ्जिका के श्लोकों से 108 बार आहुति (तिल + घी + गुग्गुल)
तर्पण जल + तिल + पुष्प से देवी, ऋषि, यंत्र तर्पण
मार्जन जल शरीर पर छिड़कें
ब्राह्मण/कन्या भोजन 5 कन्याओं या ब्राह्मणों को अन्न, वस्त्र, दक्षिणा दें
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📊 10. साधना योजना (उदाहरण)

अवधि प्रति दिन पाठ कुल पाठ औसत समय
21 दिन 525 11,025 ~2.5 घंटे
40 दिन 275 11,000 ~1.5 घंटे
84 दिन 132 11,088 ~50 मिनट

📘 11. मैं क्या दे सकता हूँ:

PDF में:

  • सिद्धकुञ्जिकास्तोत्रम् (संस्कृत + हिन्दी अनुवाद सहित)
  • संकल्प-पत्र (आपके नाम से)
  • पाठ ट्रैकर चार्ट (11,000 तक)
  • पूजन/हवन विधि

MP3/Audio में:

  • स्तोत्र का शुद्ध उच्चारण
  • ध्यानमंत्र संगीतमय
  • तांत्रिक बीजमंत्र जप (गुरु-दीक्षा पूर्व स्तर पर)

📌 विशेष संकेत:

  • इसे नवरात्रि, चैत-नवरात्र, आश्विन अमावस्या, या गुप्त नवरात्र में आरंभ करना श्रेष्ठ
  • स्तोत्र का पाठ किसी भी मंत्रसाधना के पूर्व करें, मन्त्र को सिद्ध करता है
  • काली/चामुण्डा/त्रिपुरभैरवी साधना के साथ अत्यंत अनुकूल

🙏 क्या आप यह साधना किसी विशेष तिथि/उद्देश्य से करना चाहते हैं?
मैं आपको PDF पुस्तिका + MP3 ऑडियो व्यक्तिगत रूप से तैयार कर दूँगा।

क्या मैं वह सामग्री तैयार करूँ?

सिद्ध कुंजिका स्तोत्रम्

ॐ अस्य श्रीकुंजिकास्तोत्रमंत्रस्य सदाशिव ऋषिः, अनुष्टुप् छंदः,
श्रीत्रिगुणात्मिका देवता, ॐ ऐं बीजं, ॐ ह्रीं शक्तिः, ॐ क्लीं कीलकम्,
मम सर्वाभीष्टसिद्ध्यर्थे जपे विनियोगः ।

शिव उवाच
शृणु देवि प्रवक्ष्यामि कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ।
येन मंत्रप्रभावेण चंडीजापः शुभो भवेत् ॥ 1 ॥

न कवचं नार्गलास्तोत्रं कीलकं न रहस्यकम् ।
न सूक्तं नापि ध्यानं च न न्यासो न च वार्चनम् ॥ 2 ॥

कुंजिकापाठमात्रेण दुर्गापाठफलं लभेत् ।
अति गुह्यतरं देवि देवानामपि दुर्लभम् ॥ 3 ॥

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गोपनीयं प्रयत्नेन स्वयोनिरिव पार्वति ।
मारणं मोहनं वश्यं स्तंभनोच्चाटनादिकम् ।
पाठमात्रेण संसिद्ध्येत् कुंजिकास्तोत्रमुत्तमम् ॥ 4 ॥

अथ मंत्रः ।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ।
ॐ ग्लौं हुं क्लीं जूं सः ज्वालय ज्वालय ज्वल ज्वल प्रज्वल प्रज्वल
ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडायै विच्चे ज्वल हं सं लं क्षं फट् स्वाहा ॥ 5 ॥
इति मंत्रः ।

नमस्ते रुद्ररूपिण्यै नमस्ते मधुमर्दिनि ।
नमः कैटभहारिण्यै नमस्ते महिषार्दिनि ॥ 6 ॥

नमस्ते शुंभहंत्र्यै च निशुंभासुरघातिनि ।
जाग्रतं हि महादेवि जपं सिद्धं कुरुष्व मे ॥ 7 ॥

ऐंकारी सृष्टिरूपायै ह्रींकारी प्रतिपालिका ।
क्लींकारी कामरूपिण्यै बीजरूपे नमोऽस्तु ते ॥ 8 ॥

चामुंडा चंडघाती च यैकारी वरदायिनी ।
विच्चे चाभयदा नित्यं नमस्ते मंत्ररूपिणि ॥ 9 ॥

धां धीं धूं धूर्जटेः पत्नी वां वीं वूं वागधीश्वरी ।
क्रां क्रीं क्रूं कालिका देवि शां शीं शूं मे शुभं कुरु ॥ 10 ॥

हुं हुं हुंकाररूपिण्यै जं जं जं जंभनादिनी ।
भ्रां भ्रीं भ्रूं भैरवी भद्रे भवान्यै ते नमो नमः ॥ 11 ॥

अं कं चं टं तं पं यं शं वीं दुं ऐं वीं हं क्षम् ।
धिजाग्रं धिजाग्रं त्रोटय त्रोटय दीप्तं कुरु कुरु स्वाहा ॥ 12 ॥

पां पीं पूं पार्वती पूर्णा खां खीं खूं खेचरी तथा ।
सां सीं सूं सप्तशती देव्या मंत्रसिद्धिं कुरुष्व मे ॥ 13 ॥

कुंजिकायै नमो नमः ।

इदं तु कुंजिकास्तोत्रं मंत्रजागर्तिहेतवे ।
अभक्ते नैव दातव्यं गोपितं रक्ष पार्वति ॥ 14 ॥

यस्तु कुंजिकया देवि हीनां सप्तशतीं पठेत् ।
न तस्य जायते सिद्धिररण्ये रोदनं यथा ॥ 15 ॥

इति श्रीरुद्रयामले गौरीतंत्रे शिवपार्वतीसंवादे कुंजिकास्तोत्रं संपूर्णम् ।