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जानिए क्या होता है पापग्रह ? ये रहा उसका प्रभाव

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पति अथवा पत्नी की अल्पायु

यदि किसी जातक/जातिका के जन्मांग में चन्द्रमा षष्ठ अथवा अष्टम भाव में कू्रर ग्रह के साथ स्थित हो तथा लग्न में पापग्रह स्थित हो, तो विवाह के उपरान्त शीघ्र ही पत्नी अथवा पति की मृत्यु होती है।

आठ वर्ष के भीतर मृत्यु

1. यदि चन्द्रमा लग्नगत तथा मंगल सप्तम भावगत हो, तो वर अथवा वधू की मृत्यु विवाह के पश्चात् आठ वर्ष के भीतर हो जाती है।

2. यदि सूर्य और शनि की सप्तम स्थान में युति हो और राहु अथवा केतु भी साथ में संस्थित हों, तो जातक की मृत्यु उसकी पत्नी के द्वारा होती है।

3. यदि मंगल और बृहस्पति की युति कर्क या मकर राशि में सप्तम भावगत हो, तो पति अथवा पत्नी की मृत्यु हो जाती है। यदि वक्री बृहस्पति, मंगल से युक्त हो, तो भी उपर्युक्त परिणाम प्राप्त होता है।

4. यदि वृषभ लग्न का जन्म हो और लग्नेश शुक्र वृश्चिक राशिगत हो, तो भी जातक की पत्नी की शीघ्र ही मृत्यु हो जाती है।

5. शनि की तृतीय स्थान में स्थिति से जातक का विवाह ऐसी जातिका से सम्पन्न होता है, जिसके पिता की मृत्यु हो चुकी हो और एक वर्ष के भीतर उसकी सास के जीवन पर भी संकट आना सम्भव होता है।

6. म्ंगल की अष्टम भावगत स्थिति जातक की पत्नी को गर्भाशय से सम्बन्धित विकार प्रदान करती है। यदि किसी जातिका के जन्मांग में यह योग निर्मित हो रहा हो, तो जातिका वैधव्य दोष से कष्ट पाती है।

7. यदि राहु सप्तम स्थान में अशुभ ग्रह के साथ या अशुभ ग्रह की राशि में स्थित हो, तो जातक की समस्त सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। ज्ञातव्य है इसके लिए चतुर्थ भाव पर भी विचार करना अपेक्षित है।

8. शनि और चन्द्रमा की सप्तम भावगत स्थिति होने के कारण अविवाहित रहने का योग निर्मित होता है। विशेष रूप् से यदि दोनों के अंश समान हों। यदि शनि चन्द्रमा की राशि कर्क में स्थित हो और चन्द्रमा से दृष्ट हो, तो भी विवाह नही होता है। इसी प्रकार से सूर्य और शनि का सप्तम भाव के सन्दर्भ में विनिमय दृष्टि सम्बन्ध अथवा युति वैवाहिक विलम्ब को अथवा अविवाहित ’’वैवाहिक विलम्ब को जन्म देती है।