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Holi 2023 Date: कब है होली? जानें होलिका दहन की शुभ मुहूर्त और ये महत्वपूर्ण बातें

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When is Holi 2023: इस बार 19 वर्षों के बाद श्रावण मास में अधिकमास आने के कारण महाशिवरात्रि और होली 10 से 11 दिन पहले आएगी जबकि रक्षा बंधन, गणेश चतुर्थी, दशहरा और दीवाली में करीब 19 दिन की देरी होगी। हिन्दू पंचांग के अनुसार फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि के दिन होलिका दहन होता है और दूसरे दिन धुलैंडी मनाई जाती है। अष्टमी से यह त्योहार प्रारंभ हो जाता है।
होलिका दहन शुभ मुहूर्त 2023

पंचांग के अनुसार, फाल्गुन पूर्णिमा को प्रदोष काल में होलिका दहन होता है और उसके अगले दिन यानि चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को होली खेली जाती है.

होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 7 मार्च 2023 को शाम 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक रहेगा.

वहीं, होलिका दहन के दिन भद्रा सुबह 5 बजकर 15 मिनट तक रहेगा.

होली कब है 2023 : अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार इस बार पूर्णिमा तिथि 06 मार्च दिन सोमवार को शाम 04 बजकर 17 मिनट पर आरंभ होगी और इस तिथि का समापन 07 मार्च दिन मंगलवार को शाम 06 बजकर 09 मिनट पर होगा। यानी अगले दिन यानी 07 मार्च को प्रदोष काल में होलिका दहन होगा है। भारतीय पंचांग और ज्योतिष के अनुसार फाल्गुन माह की पूर्णिमा यानी होली के अगले दिन से चैत्र शुदी प्रतिपदा की शुरुआत होती है और इसी दिन से नववर्ष का भी आरंभ माना जाता है। इसलिए होली पर्व नवसंवत और नववर्ष के आरंभ का प्रतीक है।

1. मथुरा में लगभग 45 दिन के होली के पर्व का आरंभ वसंत पंचमी से ही हो जाता है। यहां पर लट्ठमार होली खेली जाती है जिस देखने के लिए देश विदेश से लोग यहां आते हैं।
2. होली के त्योहार में रंग कब से जुड़ा इसको लेकर मतभेद है परंतु इस दिन श्रीकृष्ण ने पूतना का वध किया था और जिसकी खुशी में गांववालों ने रंगोत्सव मनाया था। यह भी कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने गोपियों के संग रासलीला रचाई थी और दूसरे दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया था।
3. पहले होली का नाम ‘ होलिका’ या ‘होलाका’ था। साथ ही होली को आज भी ‘फगुआ’, ‘धुलेंडी’, ‘दोल’ के नाम से जाना जाता है।
4. होली के त्योहार से रंग जुड़ने से पहले लोग एक दूसरे पर धूल और किचड़ चुपड़ते थे इसीलिए इसे धुलेंडी कहा जाता था। कहते हैं कि त्रैतायुग के प्रारंभ में विष्णु ने धूलि वंदन किया था। इसकी याद में धुलेंडी मनाई जाती है। धूल वंदन अर्थात लोग एक दूसरे पर धूल लगाते हैं। होली के अगले दिन धुलेंडी के दिन सुबह के समय लोग एक दूसरे पर कीचड़, धूल लगाते हैं। पुराने समय में यह होता था जिसे धूल स्नान कहते हैं। पुराने समय में चिकनी मिट्टी की गारा का या मुलतानी मिट्टी को शरीर पर लगाया जाता था। धुलेंडी को धुरड्डी, धुरखेल, धूलिवंदन और चैत बदी आदि नामों से जाना जाता है।
5. आजकल होली के अगले दिन धुलेंडी को पानी में रंग मिलाकर होली खेली जाती है तो रंगपंचमी को सूखा रंग डालने की परंपरा रही है। कई जगह इसका उल्टा होता है। हालांकि होलिका दहन से रंगपंचमी तक भांग, ठंडाई आदि पीने का प्रचलन हैं।
6. रंगों का यह त्योहार प्रमुख रूप से 3 दिन तक मनाया जाता है। पहले दिन होलिका को जलाया जाता है, जिसे होलिका दहन कहते हैं। दूसरे दिन लोग एक-दुसरे को रंग व अबीर-गुलाब लगाते हैं जिसे धुरड्डी व धूलिवंदन कहा जाता है। होली के पांचवें दिन रंग पंचमी को भी रंगों का उत्सव मनाते हैं। भारत के कई हिस्सों में पांच दिन तक होली खेली जाती है।
7. होली के त्योहार के दिन लोग शत्रुता या दुश्मनी भुलाकर एक दूसरे से गले मिलकर फिर से दोस्त या मित्र बन जाते हैं।
8. महाराष्ट्र में गोविंदा होली अर्थात मटकी-फोड़ होली खेली जाती है। इस दौरान रंगोत्सव भी चलता रहता है।
9. तमिलनाडु में लोग होली को कामदेव के बलिदान के रूप में याद करते हैं। इसीलिए यहां पर होली को कमान पंडिगई, कामाविलास और कामा-दाहानाम कहते हैं। कर्नाटक में होली के पर्व को कामना हब्बा के रूप में मनाते हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगना में भी ऐसी ही होली होती है।
10. होली के दिन भांग पीने का प्रचलन भी सैंकड़ों वर्षों से जारी है। कई लोग मानते हैं कि ताड़ी, भांग, ठंडाई और बजिये के बिना होली अधूरी है।
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