(शिव कृपा, रोगों का नाश, भय निवारण, तीर्थ-तुल्य पुण्य एवं आध्यात्मिक उत्थान के लिए) जबरदस्त उपाय
॥ द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र पुरश्चरण साधना विधि ॥
(शिव कृपा, रोग नाश, भय-निवारण, तीर्थफल-समान पुण्य व आत्मिक उत्थान हेतु)
🔱 1. क्या है “पुरश्चरण”?
पुरश्चरण का अर्थ है — किसी स्तोत्र या मंत्र की नियत संख्या में जप/पाठ के साथ साधना, ध्यान, हवन, तर्पण और भोजन आदि का समुच्चय। इससे स्तोत्र की पूर्ण शक्ति (सिद्धि) साधक को प्राप्त होती है।
🕉 2. द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र – परिचय:
यह आदि शंकराचार्य रचित स्तोत्र है, जिसमें भारत के १२ प्रमुख शिवलिंगों का स्तवन है। इसका नित्य जप तीर्थस्नान, दान, व्रत और लिंगदर्शन के बराबर फल देता है।
🔻स्तोत्र इस प्रकार है:
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम् ।
उज्जयिन्यां महाकालं ॐकारं ममलेश्वरम् ॥परल्यां वैद्यनाथं च डाकिन्यां भीमशङ्करम् ।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने ॥वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यंबकं गौतमीतटे ।
हिमालये तु केदारं घुश्मेशं च शिवालये ॥एतानि ज्योतिर्लिङ्गानि सायं प्रातः पठेन्नरः ।
सप्तजन्मकृतं पापं स्मरणेन विनश्यति ॥
📅 3. कब करें? (उत्तम समय)
समय | लाभ |
---|---|
प्रत्येक सोमवार | शिव कृपा, रोग नाश |
श्रावण मास (विशेष रूप से) | तीव्र फलदायी |
प्रत्येक प्रदोष, महाशिवरात्रि | विशेष सिद्धि का योग |
आश्विन/कार्तिक मास | तीर्थ तुल्य पुण्य प्राप्ति |
⏰ प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त (4–6 बजे) या संध्या काल में श्रेष्ठ।
🛕 4. कहाँ करें? (स्थान)
- घर में उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके
- शिवालय / ज्योतिर्लिंग मंदिर / तीर्थस्थल में
- पवित्र नदी/तीर्थ/गंगा जल से स्नान कर आरंभ करें
- शिवलिंग के सामने दीपक जला कर बैठें
📿 5. कितनी बार करें? (संख्या निर्धारण)
साधना स्तर | पाठ संख्या | अवधि |
---|---|---|
सामान्य | 11 बार × 21 दिन | 231 पाठ |
मध्यम | 108 बार × 11 दिन | 1188 पाठ |
उन्नत | 1008 बार कुल | 1,008 पाठ + 108 आहुति हवन + तर्पण + मार्जन + भोजन |
✅ पुरश्चरण पूर्ण करने हेतु नियम:
- जप के 1/10 भाग का हवन
- हवन का 1/10 भाग तर्पण
- तर्पण का 1/10 भाग मार्जन
- 1 ब्राह्मण भोजन या अन्नदान
🙏 6. क्यों करें? (लाभ)
उद्देश्य | फल |
---|---|
रोग/कष्ट निवारण | मानसिक, शारीरिक शांति |
पितृदोष/कुल दोष शांति | कुल उन्नति |
यात्रा/तीर्थ फल | सभी ज्योतिर्लिंगों के दर्शन तुल्य फल |
आत्मिक उन्नति | शिव ध्यान में तीव्रता |
🕯 7. कैसे करें? (विस्तृत विधि)
🔹 (1) संकल्प लें:
“ॐ नमः शिवाय। आज मैं अमुक उद्देश्य से द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र का पुरश्चरण कर रहा हूँ। कृपया शिव कृपा प्रदान करें।”
🔹 (2) शिव पूजन करें:
- गंगाजल, अक्षत, बेलपत्र, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें।
- पंचोपचार से शिवलिंग पूजन करें।
🔹 (3) ध्यान करें:
“त्रिनेत्रं शशिशेखरं, भस्माङ्गरागं, सर्पलिप्त-कण्ठं, कराल-वदनं, भैरवस्वरूपं, शांतं वा रुद्रं वा – नमामि शम्भुम्।”
🔹 (4) पाठ आरंभ करें:
- प्रतिदिन नियत संख्या में स्तोत्र पाठ करें।
- रुद्राक्ष या चंदन माला से गिनती रखें (यदि जप रूप में लें)।
🔹 (5) पूर्णाहुति दिन – समर्पण:
- हवन करें – “ॐ नमः शिवाय स्वाहा” या “द्वादश ज्योतिर्लिंग” स्तोत्र के श्लोकों की आहुति।
- तर्पण (जल अर्घ्य), मार्जन (स्नान जल से), ब्राह्मण भोजन/दान करें।
⚠️ 8. नियम व सावधानियाँ:
- ब्रह्मचर्य, सात्त्विक आहार, नियमित स्नान
- शराब, मांस, व्रथ/झूठ/मिथ्या से दूर रहें
- नियमित एक ही स्थान, समय और आसन रखें
- स्तोत्र के उच्चारण में स्पष्टता और श्रद्धा आवश्यक
द्वादश ज्योतिर्लिंग स्तोत्र
संस्कृत में भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों का वर्णन करने वाला एक स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान शिव की महिमा और उनके बारह ज्योतिर्लिंगों के स्थानों का वर्णन करता है।
स्तोत्र:
सौराष्ट्रे सोमनाथं च श्रीशैले मल्लिकार्जुनम्।
उज्जैनी महाकाल ॐकार ममलेश्वरम्।
परल्यां वैजनाथं च डाकिन्यां भीमशंकरम्।
सेतुबन्धे तु रामेशं नागेशं दारुकावने।
वाराणस्यां तु विश्वेशं त्र्यम्बकं गौतमीतटे।
हिमालये तु केदारं घृष्णेशं च शिवालये।
एतानि ज्योतिर्लिंगानि सायं प्रातः पठेन्नरः।