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जानें,कालसर्प के योग…

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अग्निकांड योग

अगर लग्न पंचम तथा नवम भावों में मंगल , सूर्य तथा केतु ग्रह बैठे हों तथा लग्नेश निर्बल हो एवं पंचमेश, नवमेश भी मंगल , सूर्य व केतु से दृष्टि सम्बन्ध रखते हों तो उपर्युक्त योग घटित होता है। जिस जातक की कुण्डली में उपर्युक्त योग होता है, उसकी मृत्यु आग से जलकर होती है।

ब्रम्हा योग

अगर दूसरे भाव के स्वामी से 8वें या 12वें शुभ ग्रह हो अथवा सप्तम भाव के स्वामी से चैथे, आठवे और नवें भाव में गुरू, चन्द्रमा और बुध ग्रह स्थित हों या लग्नेश से चैथे, दसवें और ग्यारहवें भाव में सूर्य, शुक्र और मंगल ग्रह हों तो यह योग बनता है।
ब्रम्हा योग रखने वाला जातक सांस्कृतिक, शुद्ध आचार-विचार वाला, सत्यभाषी, वेद तथा संस्कृत का पठन-पाठन करने वाला प्रसन्नचित, आमोद-प्रमोद में रूचि रखने वाला तथा दूसरों की सहायता करने वाला होता है।

मत्स्य योग

 लग्न तथा नवम भाव में पाप ग्रह, सूर्य, क्षीण चन्द्रमा, मंगल, शनि अथवा राहु हो पंचम भाव में पाप ग्रह तथा शुभ ग्रह-प्रबल चन्द्रमा, बुध, गुरू, शुक्र दोनो की हों तथा चैथे एवं अष्टम भाव में पाप ग्रह हों तो ’’मत्स्य योग’’ बनता है।
जिस जातक की जन्म कुण्डली में यह योग होता है, वह भविष्यवक्ता या सही फलितज्ञ, समय का पाबन्द, क्षमावान, सद्गुणों से युक्त, बुद्धिचातुर्य में दक्ष, यशवान, बुद्धिमान तथा तपस्वी होता है।

कर्म योग

जब शुभ ग्रह अपनी राशि का अथवा उच्च का होकर अथवा मित्र के नवांश का होकर पांचवें, छठे अथवा सातवें भाव में हो तथा पाप ग्रह लग्न में तीसरें भाव में ग्यारहवें भाव में स्वगृही, मित्र गृही अथवा उच्चराशि के होकर स्थित हों तो यह योग होता है।
कर्म योग में जन्म लेने वाला जातक विख्यात कीतिर्वान, सदगुणी राज्यचिन्हों से युक्त, धैर्यवान, सुखी, वाक्कला में निपुण तथा धन से युक्त होता है।

अग्रज घातक योग

लग्नेश, तृतीयेश पापी ग्रह हों तथा उनकी दृष्टि एकादश भवन तथा एकादशेश बृहस्पति पर पड़े तो जातक की कुण्डली में उपर्युक्त योग होता है।जिस जातक की कुण्डली में अग्रज घातक योग होता है, वह अपने बडे़ भाई से पूर्ण वैमनस्य रखता है, अथवा उसका खून करता है।

आत्महत्या योग

लग्नेश तथा अष्टमेश निर्बल हों तथा लग्नेश व अष्टमेश मंगल एवं षष्ठेश से सम्बन्ध रखते हों तो आत्मघात योग होता है।
जिस जातक की जन्म कुण्डली में आत्मघात योग होता है, उसकी मृत्यु स्वयं के कारणों से ही होती है।

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अग्रज घातक योग

छठे तथा एकादश भाव का स्वामी दोनों ही दूसरे भाव में हो या षष्ठेश, एकादशेश तथा द्वितीयेश एक साथ हों अथवा द्वितीयेश छठे भाव में हो, षष्ठेश एकादश भाव में हो तथा एकादेशश दूसरे भाव में हो। जिस जातक की जन्मकुण्डली में ऋण योग होता है वह सदैव ऋणी ही बना रहता है।

कारक योग

जब दो या दो से अधिक ग्रह स्वराशि अथवा उच्च राशि के होकर लग्न से केन्द्र में हों तथा परस्पर भी केन्द्रगत हों तो कारक योग बनता है।
कारक योग रखने वाला जातक जीवन में सुखी एवं अधिकारी होता है। वह व्यापार में उन्नति प्राप्त करता है।

दिग्बली योग

शनि को छोडकर तीन या इससे अधिक ग्रह जन्मकुण्डली में दिग्बली हों तो जातक की कुण्डली दिग्बली मानी जाती है।
जिस जन्मकुण्डली में दिग्बली योग होता है, वह साधारण कुल में जन्म लेकर प्रसिद्ध एवं सम्पन्न बनता है।

नीचभंग राज योग
अगर कोई ग्रह नीच राशि का होकर तीसरे, छठे, आठवें या बारहवें भवन में हो अथवा जन्मकुण्डली में जो ग्रह नीच राशि का हो यदि उस राशि का स्वामी केन्द्र में हो या जन्मकुण्डली में जो ग्रह नीच राशि का हो अगर उस राशि का स्वामी जहाॅ वह नीच ग्रह उच्च का होता है केन्द्र में हो या जन्मकुण्डली में जो ग्रह नीच का हो, उस नीच राशि का स्वामी उस राशि को देखता हो।
ऐसा जातक धनी, उच्चपदस्थ अधिकारी अथवा ऐश्वर्यवान होता है।

सन्यासी योग
लग्नेश, भाग्येश अष्टमेष तथा धनेश चारों ग्रह एक साथ स्थित हों या दशमेश, अष्टमेश एक साथ हों तथा दोनों की ही दृष्टि लग्न तथा लग्नेश् पर हो अथवा चन्द्र शनि के दे्रष्कोण में हो तथा राहु मंगल या शनि में से किन्हीं दो ग्रहों की उस पर दृष्टि हो अथवा चन्द्र जिस राशि में बैठा हो, उस राशि का स्वामी मंगल के साथ बैठा हो तथा शनि से दृष्ट हो। जिस जातक की जन्मकुण्डली में संन्यासी योग होता है, वह घर-बार छोड़कर संन्यास धारण करता है।

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तलाक योग
जिस स्त्री की जन्मकुण्डली में सप्तम भाव, सप्तमेश तथा बृहस्पति गुरू इन तीनों पर सूर्य, शनि एवं राहु की दृष्टि हो तो पति त्याग योग बनता है। जिस जन्मकुण्डली में ऐसा योग होता है, उस स्त्री को उसका पति या तो त्याग देता है अथवा तलाक दे देता है।

पति त्याग योग
द्वितीय भाव तथा द्वितीयेश पर बृहस्पति तथा मंगल दोनों की ही दृष्टि हो तो पत्नी मृत्यु योग होता है। इस योग में जातक एक से अधिक विवाह करता है।

गरूण योग
नवमांश कुण्डली में जो लग्न हो, जन्म कुण्डली में उसी लग्नेश के भवन में चन्द्रमा स्थित हो तथा दिन का जन्म हो तो गरूण योग होता है। जिस जातक की जन्मकुण्डली में गरूण योग होता है, वह सुन्दर, स्वस्थ तथा कुशलवक्ता होते है, लेकिन उसकी मृत्यु विषपान से ही होती है।

निःसन्तान योग
जन्म कुण्डली के दूसरे भवन में मंगल, तीसरे भाव में शनि, नवम भाव में गुरू बृहस्पति हो तथा पंचमेश हो तथा पंचमेश व नवमेश छठे, आठवें या बारहवें भाव में हो या निर्बल हों तो योग होता है। जिस जातक की कुण्डली में पुत्राभाव योग होता है, उसे सन्तान सुख कभी नही मिलता है।

राष्ट्राध्यक्ष योग
पाठकों को यह स्मरण रखना चाहिये कि केन्द स्थान विष्णु के स्थान कहे जाते है और त्रिकोण स्थान लक्ष्मी के। लक्ष्मी एवं विष्णु का संयोग उत्तम माना गया है, अर्थात त्रिकोण एवं केन्द्र सम्बन्ध अगर किसी भी जातक की कुण्डली में होता है तो वह जातक निःसंदेह सौभाग्यशाली होता है।
केन्द्र भाव है – 1, 4, 7, 10 और त्रिकोण भाव है – 5, 9। जन्म कुण्डली मे इनकी गणना लग्न से करनी चाहिये। अगर त्रिकोण का पति केन्द्र भाव में तथा केन्द्र का पति त्रिकोण भाव में होता है तब यह केन्द्र त्रिकोण सम्बन्ध स्थापित करता है। जोकि शुभ एवं उच्चकोटि का बतलाया गया है। केन्द्र के चार भाव मुख्य हैं। उनमें भी दशम भाव विशेष बली है अर्थात लग्न से 4 या भाव बली 4 से 7 वां भाव बली और 7 से 10वां भाव अधिक बली है। इसी प्रकार पाॅचवें से नवम भाव अधिक बली है। अतः अगर केन्द्र त्रिकोण सम्बन्ध अर्थात केन्द्र त्रिकोणाधिपति सम्बन्ध नवम और दशम भाव में होता है तो श्रेष्ठ कहा जा सकता है।
अगर किसी जातक की कुण्डली में नवम भाव में सूर्य तथा बृहस्पति एवं दशम भाव में मंगल और बुध ग्रह हों तो राष्ट्राध्यक्ष योग होता है। यह उच्चकोटि का योग माना जाता है। जिस जातक की जन्म कुण्डली में यह योग होता है, वह राज्य में उच्चपद प्राप्त करता है तथा जीवन के समस्त भोगों का भोग करता है। पारिवारिक दृष्टि से यह जातक सुखी होता है तथा अपने कार्यो से वह ख्याति प्राप्त करता है।

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गज योग
जब जन्म कुण्डली में एकादश भाव से नवम भाव का स्वामी एकादश भाव में हो तथा एकादेशेश से दृष्टि हो तो गज योग होता है। गज योग में उत्पन्न होने वाला जातक, पशुपालक होता है तथा पशुओं के लेन- देन द्वारा सम्पन्न होता है और आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।

अल्पायु योग
लग्नेश और अष्टमेश दोनों के साथ बैठे हों तो अल्पायु योग होता है या फिर चन्द्रमा पाप ग्रहों से युक्त होकर 5, 7, 8, 9 तथा 12वें भावों में से किसी एक भाव में हो तो अल्पायु योग बनता है। अल्पायु योग रखने वाला जातक कम आयु प्राप्त करता है।

दीर्घायु योग
अगर लग्नेश त्रिकोण के स्वामी से युक्त हो तो दीर्घायु योग होता है। जिस जातक की कुण्डली में दीर्घायु योग होता है, वह पूर्ण जीवन व्यतीत करता है।

गूंगा योग
द्वितीय भवन में स्थित बुध पर शनि, मंगल एवं राहु की दृष्टि हो तो वह योग होता है। मूक योग में उत्पन्न बालक या तो मूक ही रहता है अथवा उसकी बोलने की शक्ति अत्यन्त क्षीण होती है।

शत्रु वृद्धि योग
अष्टमेश तथा षष्ठेश शुभ ग्रहों के साथ हों या चतुर्थ भाव में हों तो शत्रु वृद्धि योग होता है। जिस जातक की कुण्डली में शत्रु वृद्धि योग होता है, उसे जीवनभर शत्रुओं से जूझना पड़ता है।

परम सौभाग्यवती योग
सप्तम भाव का स्वामी सप्तम भाव में या सप्तम भाव का पति नवम भाव में हो और अष्टम भाव रिक्त हो तो सौभाग्यवती योग होता है। इस योग के कारण स्त्री का सुहाग दीर्घायु होता हैै।