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भृगुकालेंद्र पूजन संवारें बच्चों का भविष्य

आज के आधुनिक युग में प्राप्त सुविधाएॅ जैसे गाड़ी, मोबाईल इत्यादि की सुविधा का बच्चों द्वारा गलत उपयोग किया जा रहा है। पैंरेंटस् जिन वस्तुओं को अपने बच्चों को जरूरत हेतु मुहैया कराते हैं, वहीं वस्तुएॅ बच्चों को गलत दिषा में ले जाती है। कई बार देखने में आता है कि जो बच्चे बहुत अच्छा प्रदर्षन करते रहे हैं वे भी युवा अवस्था में अपनी दिषा से भटक कर अपना पूरा कैरियर खराब कर देते हैं। यदि बच्चों के व्यवहार में अचानक बदलाव दिखाई दें, जैसे बच्चा अचानक गुस्सैल हो...
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बालरिष्ट योग

बच्चे तथा उसके माता-पिता द्वारा किए गए पूर्व जन्म के दुष्कृत्यों से संचित शिशु की जन्मकालिक क्रूर ग्रह स्थिति आदि को रिष्ट या अरिष्ट कहा गया है। रिष्ट तथा अरिष्ट का अर्थ शब्दकोश के अनुसार शुभ और अशुभ है, किंतु आयु निर्णय में इसका अर्थ अशुभ योग ही है। इन रिष्ट योगों में से कुछ रिष्ट योग केवल शिशु को, कुछ शिशु की माता को, कुछ पिता को, कुछ पिता और शिशु दोनों को, कुछ माता-पिता और शिशु तीनों के लिए कष्टकारक या मरणप्रद माने गये हैं। कुछ ऐसे भी...
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क्यूॅ होता है व्यवसाय में उतार-चढाव –

आज के व्यवसायिक क्षेत्र की स्पर्धाओं के चलते किसी जातक के व्यवसाय का महत्व घट सकता है, क्योंकि नित्य कई संस्थाएॅ इस क्षेत्र में पदार्पण करती जा रही है, जिससे समान क्षेत्र में कार्य के साथ महत्व एवं पहचान बनाये रखना पहले की तुलना में कठिन होता जा रहा है। किसी भी क्षेत्र में बहुत अच्छी स्थिति से अचानक उतार दिखाई दे तो सबसे पहले कुंडली की गणना करानी चाहिए क्योंकि कार्य हेतु ज्योतिष विष्लेषण के अनुसार वाणिज्यकारक ग्रह बुध, ज्ञानकारक ग्रह गुरू, वैभवकारक ग्रह शुक्र तथा जनताकारक ग्रह शनि...
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ईष्या का ज्योतिषीय कारण –

इन्सान की फितरत है कि वो दूसरे को अपने से अधिक अकलमंद नहीं समझता। साथ ही दूसरो की सफलता, प्रसिद्धि, सुंदरता या व्यवहार को लेकर लगातार तुलना करता रहता है, और उसके मन की यही प्रवृति दूसरों के प्रति ईष्या का कारण बनती है। उसकी ईष्या से दूसरों का तो कुछ बुरा होता, लेकिन उसकी इस ईष्या से वो मानसिक और शरीरिक रुप से परेशान जरुर होता है। इन्सान को ईष्या के कारण अपने भले बुरे का ज्ञान भी नहीं होता। व्यक्ति को हमेशा ही ईष्या से दूरे रहना चाहिए...
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बच्चे को सर्वगुण संपन्न बनाने हेतु कराये बचपन में ही कुंडली का विश्लेषण –

बच्चे को सर्वगुण संपन्न बनाने हेतु कराये बचपन में ही कुंडली का विश्लेषण - आज बच्चे का सर्वगुण संपन्न होना अनिवार्य आवश्यकता हो गई है। बच्चे को यदि एक क्षेत्र में महारत हासिल है तो उससे अपेक्षा की जाती है कि अन्य क्षेत्रों में भी वह दक्षता हासिल करे। संगीत, कला, साहित्य, खेल, रचनात्मक योग्यता, सामान्य ज्ञान ये सारी पाठ्येत्तर गतिविधियों में तो वह कुशाग्र हो साथ ही वह विनम्र और आज्ञाकारी भी बना रहे इसके साथ उसमें अनुशासन तो आवश्यक है ही। यदि आप भी अपने बच्चे में एक...
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कृतध्न होना भी है असफलता का कारक – कुंडली से जाने कृतज्ञ हैं या नहीं –

भारतीय संस्कृति में व्यक्ति को तीन ऋणों उऋण होना अनिवार्य बताया गया है, ब्रम्ह, देव व पितृ ऋण। इसके लिए प्रत्येक को पंच महायज्ञों को करना अनिवार्य होता है। वस्तुतः भारतीय संस्कृति में यज्ञ कृतज्ञता का ही प्रतीक है। हमारे यहाॅ तैतीय कोटि देवता कहे गए हैं जिसमें पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाष, वायु इत्यादि को भी देवता माना गया है। देवता अर्थात् जो देता है वहीं देवता है। इसलिए प्रकृति के वे तत्व जो हमें जीवित रखने में सहयोग देते हैं हम उसे देवता मानकर उसके प्रति कृतज्ञ होते हैं।...
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एल्कोहोलिक होने के कारण और ज्योतिषीय उपाय –

कुछ व्यक्तियों का व्यक्तित्व विशेष ढंग का होता है जिसमें पहले से ही कुछ ऐसे लक्षण विद्यमान रहते हैं, जो उसे शराबी बना देती है और वह तनाव की स्थिति से समायोजित होने के लिए कोई दूसरी सुरक्षात्मक प्रक्रिया का उपयोग नहीं कर पाता। इसे अल्कोहोलिक व्यक्तित्व कहा जाता है। व्यक्ति अपने शराब पीने पर नियंत्रण नहीं रख पाते, इसका कारण मनोवैज्ञानिक है। असामाजिक व्यक्तित्व तथा अवसाद ये दो ऐसे चिकित्सकीय लक्षण है जो अत्यधिक मद्यपान करनेवाले व्यक्तियों में पाये जाते है। ये लक्षण किसी व्यक्ति की कुंडली में दिखाई...
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ज्योतिष में राहु द्वारा निर्मित योग और उनका फल

ज्योतिष में राहु नैसर्गिक पापी ग्रह के रूप में जाना जाता है। राहु को Dragon's Head तथा North Node के नाम से भी जाना जाता है। राहु एक छाया ग्रह है। इनकी अपनी कोई राषि नहीं होती। अतः यह जिस राषि में होते हैं उसी राषि के स्वामी तथा भाव के अनुसार फल देते हैं। राहु केतु के साथ मिलकर कालसर्प नामक योग बनाता है जो कि एक अषुभ योग के रूप में प्रसि़द्ध है। इसी प्रकार यह विभिन्न ग्रहों के साथ एवं विभिन्न स्थानों में रहकर अलग-अलग योग बनाता...
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