बीजात्मक तन्त्र दुर्गा सप्तशती
बीजात्मक तन्त्र दुर्गा सप्तशती ॥ ॐ श्रीगणेशाय नमः ॥ यदत्रस्खलितङ्किञ्चित् प्रमादेन भ्रमेण वा । तत्सर्वं शोधयन्त्वार्यां कस्यनस्खलितम्मनः ॥ १॥ गच्छतस्खलनङ्क्वापि भवत्येव प्रमादतः । हसन्ति दुर्जनास्तत्र समादधति सज्जनाः ॥ २॥ विनीत- शिवदत्त शास्त्री प्रसङ्गवशश्रीदुर्गासप्तशती के पाठ में आवश्यक सङ्केत- कवच, अर्गला, कीलक के पूर्व शापोद्वारौत्कीलनं तथा मृत सञ्जीवनी विद्या का जप का विधान है, किन्तु विद्वत्परम्परा का सिद्धान्त यह है कि यदि श्री दुर्गासप्तशती का षडङ्ग ( कवच, अर्गला, कीलक तथा त्रयोदशाध्याय के बाद रहस्यत्रय) सहित पाठ कर लिया जाय तो श्रीदुर्गासप्तशती में शापोद्धारादि की कोई भी आवश्यकता नहीं है ।...