कार्तिक पूर्णिमा - कार्तिक शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोषव्यापिनी उत्सव विधान से मनाने का आदि काल से महत्व है। पूर्णिमा का व्रत गृहस्थों के लिए अति शुभ फलदायी होता है। प्रायः स्नान कर व्रत के साथ भगवान सत्यनारायण की पूजा कथा कर दिनभर उपवास करने के उपरांत चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अध्र्य देने के साथ खीर का भोग लगाकर मीठा भोजन ग्रहण करने का रिवाज है। इस दिन महादेव ने त्रिपुरासुर नामक राक्षस का संहार किया था, इसलिए इसे त्रिपुरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। धार्मिक मान्यता के...
भाईदूज का त्योहार कार्तिक मास की शुक्लपक्ष की द्वितीया को मनाया जाता है। इस दिन बहनें भाई के कल्याण के लिए व्रत कर पूजा करती हैं और भाई बहन की रक्षा का वचन देता है। आज के दिन बहन भाईयों को तेल मलकर नदी में स्नान करना चाहिए। इस दिन भाईयों को बहन के यहाॅ ही भोजन करना चाहिए। बहने भाई को भोजन कराकर टीका करती हैं और भाई उनसे आर्शीवाद प्राप्त करते हैं तथा रक्षा का संकल्प करते हैं। एक बार की बात है कि सूर्य की पत्नी छाया...
कार्तिक मास और गोवर्धन पूजा -;अन्नकूटद्ध कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन उत्सव मनाया जाता है। इस दिन बलि पूजा, अन्नकूट, मार्गपाली आदि उत्सव भी मनाये जाते हैं। अन्न कूट और गोवर्धन पूजा द्वापर में भगवान कृष्ण द्वारा प्रारंभ की गई। इस दिन गाय, बैल आदि पशुओं का स्नान कराकर मिठाई खिलाकर उनकी आरती उतारी जाती है। गोबर से गोवर्धन पर्वत बनाकर षोडशोपचार से इसकी पूजा की जाती है और रात्रि में तेल का दीपक जलाकर उसकी परिक्रमा करते हैं। एक बार की बात है कि गोपिकायें...
कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली का पर्व मनाया जाता है। इससे पूर्व लक्ष्मीजी को प्रसन्न करने के लिए घरों की साफ-सफाई की जाती है। कहाॅ जाता है कि इस दिन भगवान रामचंद्र चैदह वर्ष का वनवास पूरा कर रावण को मारकर अयोध्या लौटे थे। अयोध्या वासियों ने खुशी में दीपमालायें जलाकर महोत्सव मनाया था। इसी दिन उज्जैन सम्राट विक्रमादित्य का राजतिलक भी हुआ था। तभी से विक्रमी संवत का आरंभ माना जाता है। यह नव वर्ष का पहला दिन होता है। आज के दिन व्यापारी खाते बदल कर नये...
आज के दिन नरक से मुक्ति पाने के लिए तेल लगाकर अपामार्ग के पौधे सहित जल में स्नान करना चाहिए और संध्या काल में दीप दान करना चाहिए। इस दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर नामक दैत्य का वध किया था। एक बार रंतीदेवी नामक राजा हुए थे। वे बड़े धर्मात्मा और दानी थे। उनकी अंतिम काल में यमदूत उन्हें नरक ले जाने के लिए आयें, राजा ने यमदूतों से इस बारे में प्रश्न किया तो यमदूतों ने बताया कि तुम्हारे द्वार से एक ब्राम्हण भूखा लौट गया था, इसलिए तुम्हे...
कार्तिक मास की त्रयोदशी धनत्रयोदशी के रूप में मनाई जाती है। इस दिन धनवंतरी समुद्र से अमृत कलश लेकर आये थे, इसलिए वैद्य जन आज के दिन धनवंतरी की पूजा करते हैं और इसे धनवंतरी जयंती कहते हैं। आज के दिन धरतेरस के पूजन और दीपदान को विधि पूर्वक करने से अकाल मृत्यु से छुटकारा मिलता है ऐसा यमराज ने यमदूतों को बताया। इस दिन यम की पूजा भी होती है। इस दिन स्त्रियाॅ आटे का चर्तुमुख तेल का दीपक बनाकर दरवाजे पर प्रज्जवलित करते हैं। इस दिन लक्ष्मी कुबेर...
रंभा एकादषी व्रत - कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की एकादषी को रंभा एकादषी के रूप में मनाया जाता है। इस एकादषी के व्रत को करने से अनेकों पापों को नष्ट करने में समर्थ माना जाता हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का विधान है। इस व्रत के दिन मिट्टी का लेप कर स्नान कर मंदिर में श्री कृष्ण पूजन करना चाहिए। इस व्रत में दस चीजों के त्याग का महत्व है जिसमें जौ, गेहूॅ, उडद, मूंग, चना, चावल और मसूर दाल, प्याज ग्रहण नहीं करना चाहिए। मौन...
वाराह चतुदर्शी व्रत - आष्विन मास की शुक्ल पक्ष की चतुदर्शी को वाराह चतुर्दषी व्रत किया जाता है। भूत-प्रेत, पाप मुक्ति तथा सुख ऐष्र्वय प्राप्ति हेतु वाराह चतुर्दशी का व्रत भगवान विष्णु के वाराह स्वरूप की प्रियता के लिए किया जाता है। इस दिन निराहर रहते हुए भगवान वाराह की प्रतिष्ठा कर विधिवत पूजा कर धतूरा, बेलपत्र, धूप, दीप चंदन आदि पदार्थो से आरती उतारकर भोग लगायें। आष्विन मास में चतुर्दषी को प्रेत बाधा अथवा आकस्मिक हानि या कष्ट जिसका कारण भूत-प्रेत की छाया को माना जाता है हेतु जो...
पद्मनाथ द्वादषी पूजन - मनवांछित फल प्राप्ति का अचूक तरीका- आष्विनी शुक्ल मास भगवान विष्णु की पूजा तथा व्रत का मास माना जाता है इसकी द्वादषी में की गई पूजन, व्रत तथा दान बहुत फलदायी होता है। शास्त्रों में विष्णु की नाभी से उत्पन्न कमल को पद्मनाभ कहा गया। जिसमें तप दान से सभी कल्याण करने वाला बताया गया है। आष्विनी शुक्ल मास के हर दिन में किए गए तप का अपना अलग ही महत्व होता है। आष्विनी शुक्ल मास में मनवांछित फल प्राप्ति हेतु पद्मनाथ द्वादषी पूजन का बहुत...
पापांकुषा एकादषी - आष्विन मास की शुक्लपक्ष की एकादषी को पापांकुषा एकादषी के रूप में मनाया जाता है। पद्यपुराण के अनुसार पाप रूपि हाथी को महावत रूपी अंकुष से बेधने के कारण इसका नाम पापांकुषा एकादषी पड़ा। चराचर प्राणियों सहित त्रिलोक में इससे बढ़कर दूसरी कोई तिथि नहीं है, जो कष्ट से संबंधित दुखों को हर सके। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। सुबह स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने के पष्चात् श्री का ध्यान करना चाहिए। सबसे पहले धूप-दीप आदि से भगवान की...
विजयादसमी - विजय दसमी का व्रत या दषहरा का पर्व आष्विन मास की शुक्लपक्ष की दषमी को मनाया जाता है। इस पर्व को भगवती के ‘‘विजया’’ नाम पर विजय दषमी कहते हैं। इस दिन रामचंद्रजी ने लंका पर विजय प्राप्त की थी, इस लिए भी इस दिन को विजयदषमी कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि आष्विन शुक्ल पक्ष की दषमी को तारा उदय होने के समय ‘‘विजय’’ नामक काल होता है। यह काल सर्वकार्य सिद्धि दायक होता है। इसलिए सायंकाल में पूजन का विधान है, जिससे जीवन में कार्यसिद्धि...
आरोग्य और यष की देवी-माॅ कूष्माण्डा - माॅ दुर्गा के चैथे स्वरूप का नाम कूष्माण्डा है। अपनी मंद्र हल्की हॅसी द्वारा अण्ड अर्थात् ब्रम्हाण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। देवी कूष्माण्डा ने ही अपने ‘ईषत्’ हास्य द्वारा ब्रम्हाण्ड की उत्पत्ति की थी, जिसके पूर्व सृष्टि का अस्तित्व ही नहीं था। इनकी शरीर की कांति तथा प्रभा सूर्य के समान ही देदीप्यमान और भास्वर है जिसके कारण इनका निवास सूर्यमंडल के भीतर लोक में है। सूर्यलोक में निवास करने की क्षमता...
माॅ दुर्गा जी के तीसरे शक्तिरूप का नाम ‘‘चंद्रघण्टा’’ है। नवरात्रि उपासना में तीसरे तीन परम शक्तिदायक और कल्याणकारी स्वरूप की आराधना की जाती है। इनके मस्तक में घण्टे के आकार का अर्धचंद्र है, इस कारण माता के इस रूप का नाम चंद्रघण्टा पड़ा। इनके शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है। इनके दस हाथ हैं तथा सभी हाथों में खड्ग आदि शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित है। इनका वाहन सिंह है। इनकी मुद्रा यु़द्ध के लिए उद्यत रहने की होती है। इनके घण्टे की सी भयानक चण्डध्वनि...
स्नान -दान-श्राद्ध की अमावस्या - भाद्रपद मास की पूर्णिमा से आष्विन मास की प्रति तथा आष्विन मास की अमावस्या तक का समय अपने पितरों तथा पूर्वजो को पूजन, याद करने तथा उनकी मुक्ति हेतु दान करने का होता है। इस माह में किए गए दान एवं पूण्य जीवन में सुख तथा समृद्धिदायी होती है साथ ही कष्टों को दूर करने वाली होती है। आष्विन मास के अमावस्या को पितृपक्ष का अंतिम दिन माना जाता है। पूरे 15 दिवस चलने वाले इस पितरतर्पण का विसर्जन आष्विन मास की अमावस्या को किये...
चतुर्दषी का श्राद्ध करके पायें जीवन मे आषांतित सफलता - स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली...
त्रयोदषी का श्राद्ध-षनि प्रदोष - ज्योतिषषास्त्र में कालपुरूष के जन्मांग में सूर्य हैं राजा, बुध हैं मंत्री, शनि हैं जज, राहु और केतु प्रशासक हैं, गुरू हैं मार्गदर्शक, चंद्रमा हैं मन और शुक्र है वीर्य। जब कभी भी कोई व्यक्ति अपराध करता है तो राहु और केतु उसे दण्डित करने के लिए तत्पर हो जाते हैं। पर शनि के न्यायालय में सबसे पहला दण्ड प्राप्त होता है। इसके बाद अच्छे व्यवहार से और सदाचरण से शनि को प्रसन्न करके बचा जा सकता है। शनि के दया के व्यवहार से प्रसन्न...
इंदिरा एकादषी व्रत एवं श्राद्ध - आष्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादषी को इंदिरा एकादषी व्रत तथा श्राद्ध किया जाता है। इस एकादषी के व्रत को करने से अनेकों पापों को नष्ट करने में समर्थ माना जाता हैं। माना जाता है कि आष्विन माह के कृष्ण पक्ष की एकादषी को भटकते हुए पितरों की गति सुधारने वाली एकादषी कहा जाता है। इस दिन भगवान शालीग्राम की पूजा का विधान है। इस व्रत के दिन मिट्टी का लेप कर स्नान कर भगवान शालीग्राम की पूजा कर तुलसीपत्र चढ़ाया जाता है।...
अन्नवष्टका का श्राद्ध - आष्विन मास की कृष्ण पक्ष की नवमी को मातृनवमी या अन्नवष्टका का श्राद्ध किया जाता है। जिस प्रकार पुत्र अपने पिता, पितामह आदि पूर्वजों के निमित्त पितृपक्ष में तर्पण करते हैं, उसी प्रकार से घरों की बहुएॅ या पुत्र वधुएॅ अपनी दिवंगता सास, माता या पूर्वज स्त्रीपक्ष की निमित्त हेतु श्राद्ध करती हैं। नवमी के दिन माता, सास या पितरों की आत्मषांति हेतु ब्राम्हणी को दान आदि से संतुष्ट कर माता की इच्छानुसार दान दिया जाता है। इस तिथि को चावल, जौ, तिल आदि से हवन...
भानुसप्तमी- सप्तमी का श्राद्ध - भाद्रपद की पूर्णिमा एवं आष्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तक का समय पितृपक्ष कहलाता है। इस पक्ष में मृतक पूर्वजो का श्राद्ध किया जाता है। पितृपक्ष में मरण तिथि को श्राद्ध किया जाता है। सप्तमी का श्राद्ध भानुसप्तमी के नाम से किया जाता है। जिसमें श्राद्धकर्म करने से सूर्यग्रहण में किए गए पुण्य के बराबर फल मिलता है और आने वाले वंष को शारीरिक कष्टो से छुटकारा मिलकर स्वास्थ्य एवं समृद्धि की प्राप्ति का योग बनता है। किसी भी प्रकार से...
आपके सोच की दिषा और ज्योतिष - यजुर्वेद तथा भगवदगीता के अनुसार हमारा व्यवहार, विचार, भोजन और जीवनषैली तीन चीजों पर आधारित होती है वह है सत्व, तमस और राजस। सात्विक विचारों वाला व्यक्ति निष्चित स्वभाव का होता है जोकि उसे सृजनषील बनाता है वहीं राजसी विचारों वाला व्यक्ति महत्वाकांक्षी होता है जोकि स्वभाव में लालच भी देता है तथा तामसी व्यवहार वाला व्यक्ति नाकारात्मक विचारों वाला होने पर गलत कार्यो की ओर अग्रसर हो सकता है। मानव व्यवहार मूल रूप से राजसी और तामसी प्रवृत्ति का होता है, जिसके...
भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की पंचमी को ऋषि पंचमी मनाई जाती है। इसे भादोषुदि भी कहते हैं। भगवान षिव एवं पार्वती का पूजन करते हैं। सूक्ष्म जीवो को आहार प्रदान किया जाता है। इसके लिए प्रातःकाल ब्रम्ह मुहूर्त में जागरण कर नदी का स्नान आदि कर गणेषजी तथा षिवपार्वती जी की पूजन करें। सोलह प्रकार के सप्तऋषियों की पूजा करें। इस दिन माता अरूंधति के नाम का जाप कर पूजन तथा हवन करने की भी प्रथा है। रात्रि में कथा सुनें तथा रात्रि जागरण करके षिव-पावर्ती, सप्तऋषि तथा माता अरूंधति...
हरतालिका तीज व्रत भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को विवाहित महिलाएॅ तीज का व्रत करती हैं। इस दिन शंकर-पावर्ती की बालू की मूर्ति बनाकर पूजन किया जाता है। सुदंर वस्त्रों कदली स्तंभों से गृह को सजाकर नाना प्रकार के मंगल गीतों से रात्रि जागरण कर शंकरजी तथा पावर्ती की पूजा की जाती हैं। निर्जला व्रत करने तथा पूजन आदि से पावर्ती के समान सुखपूर्वक पति रमण कर शिवलोक प्राप्ति की कामना की जाती है। कथा - इस व्रत के माहात्म्य की कथा भगवान शंकर ने पार्वती को उनके...
स्कूल षिक्षा तक बहुत अच्छा प्रदर्षन करने वाला अचानक अपने एजुकेषन में गिरावट ले आता है तथा इससे कैरियर में तो प्रभाव पड़ता ही है साथ ही मनोबल भी प्रभावित होता हैं अतः यदि आपके भी उच्च षिक्षा या कैरियर बनाने की उम्र में पढ़ाई प्रभावित हो रही हो या षिक्षा में गिरावट दिखाई दे रही हो तो सर्वप्रथम व्यवहार तथा अपने दैनिक रूटिन पर नजर डालें। इसमें क्या अंतर आया है, उसका निरीक्षण करने के साथ ही अपनी कुंडली किसी विद्धान ज्योतिष से दिखा कर यह पता करें कि...
जीवन में आर्थिक कष्ट और खराब होते रिष्तें - आसान उपाय - अर्थस्य अर्थोलोके अर्थात् इस अर्थ युगीन दुनिया में कहीं ना कहीं धन की बड़ी महत्ता समझ में आती है। चाहें वें पारिवारिक रिष्तें हों या सामाजिक जिम्मेदारियाॅ सबकुछ पैसों पर आश्रित होता है। आर्थिक पक्ष के कमजोर होने पर सभी आवष्यक कार्य में रूकावट आती हैं तो वहीं रिष्तें भी खराब होते ही हैं। कुंडली में लग्नेष एवं सप्तमेष का 6, 8 या 12 भाव में हो तो आर्थिक कष्ट या धन संबंधित कमी से जीवन बाधित होता...
वर्तमान दौर में प्रत्येक व्यक्ति को किसी ना किसी रूप में आर्थिक परेषानी तथा कमी का सामना करना पड़ता है। आज के आधुनिक दौर में सभी आवष्यक कार्यो जैसे दैनिक दैनिंदन कार्य, बच्चों की षिक्षा विवाह के लिए हो या मकान वाहन के लिए आर्थिक संकट हो सकता है। इन परिस्थितियों में कई बार कर्ज लेना जरूरी हो गया है। कई बार कुछ कर्ज आसानी से चुक जाते हैं तो कई कर्ज बोझ बढ़ाने का ही कार्य करते हैं। अतः यदि कर्ज लेते समय नक्षत्र, लग्न एवं राषि पर विचार...
स्वतंत्र व्यवसाय हेतु ज्योतिष योग - हर व्यक्ति अपना तथा परिवार का पालन उच्च स्तर पर करने का इच्छुक होता है। जहाॅ कई बार व्यक्ति सरकारी नौकरी के लिए उत्सुक होता है। वहीं कई जातक उच्च महत्वाकांक्षा तथा सुख-साधन की पूर्ति हेतु व्यवसाय करना चाहता है। जब तक जातक की कुंडली में ग्रहयोग व्यवसाय हेतु उपयुक्त ना हो, जातक को सफलता प्राप्त होने में बाधा होती है। प्रायः देखने में आता है कि कोई व्यवसाय बहुत लाभ देते हुए अचानक हानिदायक हो जाता है। अतः कुंडली के ग्रह योगों तथा...
साथी से रिष्ता लाभ या सुख का, जाने ज्योतिष से - प्रत्येक व्यक्ति की यह कामना होती है कि उसका साथी उसके लिए लाभकारी तथा सुखकारी हो, किंतु कई बार सभी प्रकार से अच्छा करने के बाद भी साथ वाला व्यक्ति आपके लिए दुख का कारक बन जाता है। ज्योतिष से जाने कि आपके साथी के के साथ व्यवहार कैसा होगा। किसी कुंडली के सप्तम भाव, सप्तमेष तथा सप्तमस्त ग्रह तथा नवांश के अध्ययन से मूलभूत जानकारी प्राप्त की जा सकती है। सप्तमभाव या सप्तमेष का किसी से भी प्रकार...
मंगल की आक्रामकता - भारतीय वैदिक ज्योतिष में मंगल को मुख्य तौर पर ताकत और आक्रमण का कारक माना जाता है। मंगल के प्रबल प्रभाव वाले जातक आमतौर पर दबाव से ना डरने वाले तथा अपनी बात हर प्रकार से मनवाने में सफल रहते हैं। मंगल से मानसिक क्षमता, शारीरिक बल और साहस वाले कार्यक्षेत्र होते हैं। मंगल शुष्क और आग्नेय ग्रह है तथा मानव के शरीर में अग्नि तत्व का प्रतिनिधि करता है तथा रक्त एवं अस्थि का प्रतीक होता है। मंगल पुरूष राषि को प्रदर्षित करता है। मकर...